शत – प्रतिशत ईमान की कविताएँ
काव्य संग्रह: कारक के चिन्ह
लेखक : डॉ संतोष पटेल
प्रकाशन: नवजागरण
डॉ संतोष पटेल का कविता संग्रह कारक के चिन्ह को कविता का करेंट अफेयर्स की संज्ञा दिया जा सकता है। कवर पेज से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अंदर क्या सामग्री होगी ।
समाज का आह्वान करते हुए संतोष पटेल कहते हैं
” लिखो भाई कि कलम अब तुम्हारे हाथ आई है
अपने इतिहास को करो जीवंत
जो अब तुमने ताकत पाई है ।”
सोशल मीडिया के युग में लिखना और अपनी बात कुछ लोगों तक पहुंचाना बहुत आसान हुआ है । यह भी सच है जब तक शिकारी हिरण का इतिहास लिखेगा तो वह हिरण को दोयम दर्जे का ही बतलाएगा ।अब जब हिरणों के हाथ में कलम आई है तो क्यों न वे शिकारियों के चरित्र को बेनकाब करें ।यह तभी होगा जब लिखा जाएगा और भोगा हुआ यथार्थ कहा जाएगा और सही इतिहास बताया जाएगा ।
कवि की दृष्टि में प्रेम की सार्थकता तभी है जब व्यक्ति की व्यैक्तिकता ,सार्वभौमिकता में तब्दील हो जाए ,जैसा जायसी के काव्य में होता है जहां इश्क ए मजाजी से इश्क ए हकीकी तक की बात होती है ।
मानुष प्रेम भयो बैकुंठी ।
प्रेम है ही ऐसी क्रिया जो दूसरों से कनेक्ट करती है ।प्रेम से ऐसी दृष्टि विकसित होती है जिसमें दशरथ मांझी जैसे साधारण व्यक्ति एक पहाड़ के बीच से सड़क निकालने में कामयाब होते हैं । कवि ऐसे प्रेमियों की भर्त्सना भी करते हैं जो प्रेम को एक निहित स्वार्थ की तरह लेते हैं ।
लोक नर्तकों और लोक कलाकारों का समर्थन भी कवि करते हैं ।बॉलीवुड और हॉलीवुड के ज़माने में लोक परपराओं और लोक कलाओं को हेय दृष्टि से देखने वाले लोग बहुतायत में मिल जाते हैं । लौंडा नाच के प्रसिद्ध कलाकार पदम श्री राम चंद मांझी को उन्होंने एक पूरी कविता समर्पित की है ।
साहित्य की गुटबाज़ी पर उनकी कविता ” अपनी अपनी टोली ” एक आईना दिखाती हुई कविता है ।बड़े ही सधे और स्पष्ट शब्दों पर वे गुटबाज़ी पर तीव्र प्रहार करते हैं ।
चुप्पी हमारे समय की विशेषता है ।सब देख सुनकर हम चुप हैं और हमारी चुप्पी हमें घोर अंधेरे में धकेल रही है ।गूंगे हो गए हैं हम सब । उनकी कविता चुप्पी विशेष रुप से उल्लेखनीय है ।
समाज और साहित्य के क्षेत्र में दोगलेपन पर वे प्रहार करते हुए इसकी बखिया उधेड़ देते हैं ।किस तरह से समाज दोगलेपन की अटूट श्रृंखला में सदियों से जिए जा रहा है,यह बताते हुए वे कहते हैं
मैं नारियों का सम्मान करता हूं
लेकिन मायावती का नाम आते ही मुझे बहुत गुस्सा आता है
मैं पिछड़ों का बहुत सम्मान करता हूं
लेकिन पता नहीं
लालू यादव का नाम सुनते ही
मेरे देह में आग लग जाती है ।
संतोष जी कविताएं स्वाभाविक रूप से विद्रोह की कविताएं हैं ,व्यवस्था बदलने की कविताएं हैं ।परंपरावादी साहित्यकारों या पाठकों को ये कविताएं बिल्कुल अच्छी नहीं आने वाली हैं लेकिन अगर आप जियो और जीने दो के दर्शन में विश्वास रखते हैं तो निश्चित रूप से यह कविताएं आपको पसंद आएंगी ।
अबुआ दिशोम रे अबुआ राज
यानि कायम हो हमारा स्वराज
धरती आबा
धरती आबा
बताए तुम्हारे राह पर
ज़ारी रहेगा
उलगुलान
उलगुलान
उलगुलान ।
हिंदी और भोजपुरी के सशक्त साहित्यकार एवं भोजपुरी भाषा को उसको वाजिब हक दिलाने के लिए संघर्षरत डॉ संतोष पटेल जी को बहुत बहुत बधाई।
2 Comments
बेहद सटीक व सार्थक टिप्पणी…. आपकी बातों से सहमत हूं।।
बहुत ही उत्कृष्ट समीक्षा
सादर