शजर पर वापसी
युवा कवि अभिषेक पटेल ‘अभी ‘ इलाहाबाद बैंक में अधिकारी हैं ।विभिन विषयों पर अनवरत लिखते रहते हैं।
हम सभी मकानों से अब, अपने प्यारे घरों में आ गए ।
कुछ दिन को ही सही, शजर पर लौट परिंदे आ गए ।।
जिनके लिये कमाने को दर दर फिरते रहते थे ।
वक़्त नही मिलता तुम हर एक शै से कहते थे ।
सुकून मिलेगा कब तक, यह तलाश भी जारी थी ,
फ़क़त अंधी दौड़ भाग से तेरी हरदम यारी थी ।
अब सुकून के साथ खुद का वक़्त बिताने आ गए ।
हम सभी मकानों से अब, अपने प्यारे घरों में आ गए ।
कुछ दिन को ही सही, शजर पर लौट परिंदे आ गए ।।(1)
दौलत शोहरत और अमानत की हवस सी रहती थी ।
तू तो था बेसब्र परिंदा , दुनिया कफ़स सी रहती थी ।।
घर तलाशी जब जब लेता तू कभी न मिल पाता था ।।
चाहा बहुत मगर तूने पर जरा सा हिल न पाता था ।।
आमंत्रण से भरे सफर से लौट मुसाफिर आ गए ।
हम सभी मकानों से ,अपने प्यारे घरों में आ गए ।
कुछ दिन को ही सही, शजर पर लौट परिंदे आ गए ।।(2)
रिश्तों को किश्तों में निभाना भी दस्तूर हुआ था ।
तू पैसों की दौड़ में संवेदना से बहुत दूर हुआ था ।
रहा गलतफहमी में कि ऐसे ही तो मशहूर हुआ था ।
लेकिन घरवालों की आस में आंखों का नूर हुआ था ।
विकास की अमावस हटा कर चाँद तारे आ गए ।
हम सभी मकानों से अपने ,प्यारे घरों में आ गए ।
कुछ दिन को ही सही, शजर पर लौट परिंदे आ गए ।।(3)
अभिषेक पटेल “अभी”