समाज में व्याप्त बुराइयाँ

धर्मेश कुमार,लखनऊ
दहेज कुप्रथा
हमारे समाज में बहुत सी बुराइयाँ व्याप्त है। उनको अब बन्द करने का समय आ गया है।
जैसे बिना दहेज के शादी करना। जो जितना अधिक सक्षम हैं वो उतना ही अधिक दहेज की मांग करता है। जिसके लिए कई लोगों को कर्ज लेना पड़ता है जिसकी वजह से उनके परिवार को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दहेज प्रथा के कारण बहुत से परिवार उजड़ रहे हैं। लोग दहेज के लिए एक नारी की हत्या कर देते हैं। तलाक देते हैं क्या ये उचित है। मेरे विचार से दहेज की मांग करना ही अपराध है। दहेज प्रथा नहीं बल्कि दहेज कुप्रथा है इसको बन्द होना चाहिए।
शादी में दिखावे के लिए किया जाने वाले खर्च को कम किया जा सकता है? हो सके तो शादी दिन में करें तो रात की अपेक्षा खर्च कम होगा।
कोरोना काल में किसी भी शादी में व्यर्थ का खर्चा नहीं हुआ है। तो क्या आने वाले समय में इसी प्रकार शादियां नहीं की जा सकती है?
ये एक गंभीर विषय है समाज को इस विचार करने की आवश्यकता है।
मृत्यु भोज
हमारे समाज में मृत्यु भोज की प्रथा सदियों से चली आ रही है। यदि किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तो वह परिवार मृत्यु भोज का आयोजन करता है। जिसके लिए परिवार पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। कई बार तो परिवार के कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के उपरांत
उस परिवार की कमाई का साधन ही नहीं रहता है और उसके बाद मृत्यु भोज परिवार पर दोहरी विपत्ति पड़ती है।
कोई भी सभ्य समझदार व्यक्ति शोकाकुल परिवार में मृत्यु भोज का आनंद कैसे ले सकता है ?
समाज को चाहिए कि शोकाकुल परिवार के उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक हर सम्भव मदद करें ना कि परिवार को गर्त में ले जाने वाले मृत्यु भोज का आनंद ले।
हम सबको समाज के कोढ़ मृत्यु भोज का बहिष्कार करना चाहिए और समाज को बंद करने के लिए समाज को जागरूक करना चाहिए।
अस्थि विर्सजन
1. हिन्दू धर्म में मुर्दो को जलाने की प्रथा है। इसके अनुसार मुर्दे चिता में जलाया जाता है। जलाने के बाद चिता की भस्म (राख) को एकत्र करके किसी नदी में बहा दिया जाता है।
2. कुछ लोग लाश को सीधे ही नदी में फेंक देते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है।
चिता की राख या फिर सीधे लाश को ही नदी में डालने से नदियाँ प्रदूषित होती हैं। जिससे नदी में रहने वाले जीव तथा अन्य जंतु जो नदियों पानी पीते हैं उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
यही प्रदूषित पानी शहरों में पीने के लिए उपयोग किया जाता है जिससे मनुष्यों में भी बहुत सी बीमारियाँ फैल रही हैं।
चिता की राख नदियों में डालने के बजाय उस राख को किसान अपने खेतों में डाल सकते हैं या मरने वाले के नाम पर कुछ पौधे लगाकर राख को उन पौधौं में डालने से मरने वाले का नाम हमेशा हमेशा के लिए अमर हो जायेगा।
लाश को नदी में डालने से बेहतर है कि उसको दफना दिया जाये। दफनाने से जल और वायु प्रदूषण की समस्या नहीं होगी।
ऐसा करने से मानव सभ्यता और नदियों को बचाया जा सकता है।
धर्मेश कुमार