फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का

राधा कुमारी,दिल्ली
जब कभी लगता है जान गई हूं तुम्हें ऐ जिंदगी…
तब अचानक से तुम लौट के आ जाति हो…
ये केसी कश्मकश है ये केसा फासला है…की…
जिसमे तुम्हें चाहने का भी दिल है और कभी रूठ जाने का भी….
कभी रंगीन तुम इन्द्रधनुष के जैसी ….
कभी बेरंग बनकर मुझे सताती हो….
कभी कभी दूर होती हो बेशक मुझसे…
और अंत मैं फिर मुझमें ही मिल जाती हो….
खूबसूरत तुम और तुम्हारी बातें हैं…
ख़ूबसूरत मुझे बेशक तुम ही बनाती हो…
ये आईना हो या हकीकत हो तुम…
जो तुम्हारी हर अदा तुम मुझपर आजमाती हो…..
ऐ जिंदगी तुम बहुत सताती हो।
1 Comment
Bhut acha likha hai dear