अवसाद

इं दिनेश कुमार सिंह

अवसाद किसमे नही होता बस हर आदमी उसको अपने हिसाब से समायोजित करने की कोशिश करता रहता है।
विश्व में अवसाद से लगभग ३०० लाख लोग प्रभावित हैं! अवसाद के लक्षण, कारण और उपचार के विषय में अवसाद की परिभाषा जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति कम ज़्यादा जानता है और समस्या की जड़ भी यहीं से प्रारम्भ होती है जिसको अवसाद नहीं पता, उसको ये कम होता है ये एक अवसर वादी रोग है जो महत्वाकांक्षी लोगों में ही अधिक पाया गया है यहाँ महत्वाकांक्षी का साधारण और नकारात्मक अर्थ मेरे विचार से उस सांसारिकता और सम्बंध से क़दम से क़दम मिलाने का प्रयास है, जिसके लिए आपकी शरीर, मानसिकता, परिस्थितियाँ, समय और अक्सर क्षमता भी उपयुक्त नहीं होती!

श्रम आधारित अर्थव्यवस्था और धर्म आधारित सामाजिक व्यवस्था वाले भारतीय उपमहाद्वीप के लिखित इतिहास में अवसाद के चरम परिणति आत्महत्या का उल्लेख ना के बराबर ही मिलता है,तो क्या लोग इस स्तर के दुःख में नहीं थे,तो क्या अविकसित समाज ही सुखी था,अफ़सोस पर सत्य यही है कि समेकित, सर्वांग , बहुआयामी और समुचित विकास ना करके लोगों ने उन्नति करी है सिर्फ़ उन्नति
जीवन कला से जुड़े एक ऐसे अवसाद नें सुशांत को शांत कर दिया, जिसमें प्रेम भी संसार जैसा चाहिए था, धन भी और नाम भी ,सब कुछ सापेक्ष! कुछ भी निरपेक्ष नहीं!कुछ भी मूल सनातनियों जैसा नहीं।

एकाकी की साँढ की आँख, जिसने समाज को एकाकी ही अधिक किया है शांति नहीं सन्नाटा भेट किया है और एक ऐसे ही एकाकी सन्नाटे नें सुशांत के गले में फंदा डलवा दिया क्लिनिकल साइकोलाजी की दवा भी उसको रोक नहीं पाई, सुनने में तो ये भी आ रहा है कि आनुवंशिक तत्व भी इस अवसाद में हैं मतलब साफ़ है, आप अपनी संतान को भी इसको ट्रान्स्फ़र कर सकते हैं।

देखिए ना ! कोरोना माता के गीत गाने वाली वो औरतें, जो रिपोर्टर के सामने थोड़ा शर्म कर रही थीं, उनमें कोई भी अवसाद में नहीं जाएगा, उनपर हँसने वाले चाहे गोली मार लें ख़ुद को ।
मेरे गुरुजन मित्र और पारिवारिक सदस्य
अवसाद में नहीं जाएँगे क्योंकि वो कर्म में विश्वास करते है क्या मिला क्या नही, उसकी चिंता नही करते बस जो आज है उसी में मस्त है।

मेरे बहुत से परिचित है जो सुअर के माँस की फ़ोटो भी डालते पर मुझे कोई परहेज़ नहीं हैं मैं गाय कुत्ते की फोटो डालू तो उन्हें कोई दिक्कत नही,मुझे कभी अवसाद नहीं घेर सकता ।क्योंकि मार्क्सवादी बौद्धिकता उनको किसी को गरियाने की हिम्मत देती है लेकिन सड़क पर भूखे प्यासे नंगे पैर चिलचिलाती धूप में एक एक व्यक्ति को कोरोना काल में निकालने का श्रम करने से नहीं रोकती। प्राकृतिक सब्ज़ियों और
मिक्स वेज में यही अंतर है क्योंकि मिक्स वेज़ में दुर्गन्ध सबसे पहले आती है। उदाहरण बहुत हैं आपके आस पास भी मिल जाएँगे!

आधुनिक बनिए, सापेक्ष बनिए बुद्धत्व के स्तर के बनने की कोशिश कीजिए और यदि ऐसा बनना या ऐसों का अनुसरण करना सम्भव ना हो तो अंदर से मूल सनातनी बनिए! लसर फसर लोगों के दोस्त न बने!
भगवान से ज्यादा कर्म में आस्था रखिए! सुख दुख आता जाता रहेगा!
आपके मनोविज्ञान को सबसे सरलता से पुष्ट भी कर्म ही करेगा

सुशांत प्रसिद्ध व्यक्ति थे; अन्यथा सैंकड़ों लोग प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं, इस देश में उनमें पता नहीं कितने भविष्य के सुशांत छिपे बैठे रहे हों
आत्महत्या कायरता है यह पलायन वादी मानसिकता किसी भी योग्य नहीं होती, पर दुःखी हूँ आज

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