जीवन-यान की पायलट

सीमा पटेल,दिल्ली

स्त्रियों के अब आंसू नहीं बहते
बहते भी है तो नज़र नही आते
समझ आ गया है उनको
अपने आसुंओ का मोल

बना देते है ये आँसू
स्त्री के व्यक्तित्व को कमज़ोर
हो कोई भी वज़ह
नहीं बहाती है अब ये आँसू
बना लिया है अंतर्मन को
पहले से ज्यादा सुदृढ

अब लड़ती हैं जूझती हैं
और फिर जीतती हैं
विषम परिस्थितियों से
अपनी आत्मशक्ति से
इसलिए,अब हो रही हैं मुक्त
अहंकारियों के कुठाराघात से

अब नहीं माँगती भीख
किसी से मदद की
नहीं बनती याचक
किसी सुरक्षा कवच की
अब बन गयी है पायलट
अपने जीवन-यान की
इसीलिए नहीं सुहाती अब
सत्तारूढियों को ये
स्वाबलंबी स्त्रियां ।

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