जुगाड़ टेक्नोलॉजी

तेज प्रताप नारायण

अगर आपसे कहा जाए कि वह कौन सा आविष्कार है जिसे पूरी तरह मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया कह सकते हैं तो आप क्या कहेंगे ?
ख़ैर आप जो भी कहेंगे सो कहेंगे ।लेकिन हम यही कहेंगे कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी   में हमारा कोई सानी नहीं ।। यह सौ प्रतिशत भारतीय है और जिसके आविष्कार का श्रेय सिर्फ़ हम सबको जाता है ।यहां ज़िंदगी सिर्फ़ और सिर्फ़ जुगाड़ से चलती है ।किसान का गल्ला,सरकारी गल्ला मंडी में तब तक सही दाम पर नहीं बिकता है जब तक उसका तहसीलदार,लेखपाल,बी डी ओ , एस डी एम आदि से जुगाड़ न हो ।कोई इंसान,पंच,प्रधान तब तक नहीं बन सकता है जब तक उसके पास वोट खरीदने का जुगाड़ न हो । किसी पार्टी के कार्यकर्ता को पार्टी तब तक टिकट नहीं देती है जब तक उसके पास पांच दस करोड़ का जुगाड़ न हो । कई बार सोचता हूं कि लोक तंत्र का नाम बदलकर पैसा तंत्र कर दिया जाना चाहिए । पैसा फेंक तमाशा देख। यहाँ कोई भी काम सिस्टम से नहीं जुगाड़ या पैसे से होता है । जुगाड़ सिस्टम को शॉर्ट सर्किट करता रहता है और सिस्टम पैसे के हाई वैल्यू करेंट से जल भुन कर राख हो जाता है ।

यह इंडिया में ही हो सकता है कि डीज़ल से चलने वाली गाड़ी मिट्टी के तेल से चल सकती है । मोटर सायकिल जिस पर दो लोगों के बैठने की जगह है वहाँ पाँच-सात लोग जुगाड़ लगा लेते हैं । एक कमरे में 10लोग रह सकते हैं ।

आगे बढ़ना है,सफलता पानी है तो मेहनत भले ही न करो लेकिन जुगाड़ करो और जुगाड़ के लिए कभी किसी से न बिगाड़ करो । मेहनत सफलता की छोटी सीढ़ी हो सकती है तो जुगाड़ सफलता की लंबी ,बड़ी सीढ़ी है ।जिसका जुगाड़ जितना मज़बूत उसको उतनी ही बड़ी सफलता ।
जुगाड़ से कई फ़ायदे हैं ।जैसे जुगाड़ एक स्वदेशी तकनीक है जो देश भक्ति का सबसे बड़ा सुबूत है। सरकार खुश ,जनता खुश, रहीम खुश,हकीम खुश ,भक्त खुश और भगवान खुश ।

जुगाड़ इतना ज़रूरी है जैसे जीने के लिए हवा और रोगी के लिए दवा ।कोई असफल हो जाए तो यह पूछना व्यर्थ है कि मेहनत कम रह गई थी क्योंकि यह ऑब्वियस है कि मेहनत जितनी भी रही हो जुगाड़ ज़रूर कम रह गया होगा।

जुगाड़ को भी लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में मान लिया जाना चाहिए क्यों कि कम से कम हमारा लोकतंत्र तो जुगाड़ से ही चल रहा है। बहुत सारे भाई बंधु इसलिए इसको जुगाड़ तंत्र का भी नाम दे चुके हैं।
जुगाड़ तंत्र में हर कोई जुगाड़ करता हुआ मिल जाता है ।कोई खाने का जुगाड़ , कोई पीने का जुगाड़,कोई जीने का जुगाड़ और कोई जुगाड़ के लिए जुगाड़ कर रहा होताहै ।जिसका जुगाड़ जितना मज़बूत वह उतना ही सफल ।
ऐसा नहीं है कि जुगाड़ के पीछे मेहनत नहीं होती है ।बहुत ज़्यादा काम करना पड़ता है जुगाड़ के लिए भी। बहुतों का चरण वंदन,प्रात अभिनंदन । जुगाड़ के लिए बहुत बड़ा चमचा भी बनना पड़ता है । अच्छी बटरिंग और जी हुज़ूरी भी आनी चाहिए। फिर पद,पैसा ,सफलता,यश कीर्ति आपके चरणों में लोटेंगे और आपके अच्छे दिन लौटेंगे ।
जो लोग पूछते हैं कि अच्छे दिन कब आयेंगे उनसे मेरा यही प्रश्न है कि आप जुगाड़ कब लगाएंगे । आप तो ख़ाली प्रश्न पूछते हैं ?

जुगाड़ के उत्पति की भी अद्भुत कथा है ।समुंद्र मंथन के समय जुगाड़ नामक एक पदार्थ की उत्पत्ति हुई ।कहते हैं कि देवताओं ने जुगाड़ को ग्रहण कर लिया और तब से हर काम के लिए,हर हार को जीत में बदलने के लिए वे जुगाड़ करने लगे । कभी शिव और कभी विष्णु के सामने जाकर त्राहि माम करने लगे । विष्णु भी कभी मोहिनी बनकर ,कभी सुंदरी बनकर देवताओं को अमृतपान कराते रहे और जुगाड़ की महिमा गाते रहे ।
आज भी फेसबुक पर कितने सारे मोहन , मोहनी का रूप धारण करके अपने फेक नयन वाणों से घायल करते हुए कुछ जुगाड़ने के फेर में रहते हैं ।कुछ लोग तो हज़ारों डॉलर लुटा देते हैं ।अब दिल लूट लिया किसी ने तो फिर डॉलर की क्या चिंता ?बस गड़बड़ यही होता है कि मोहिनी रूप धरे मोहन का सम्मोहन तभी ख़त्म होता है जब पैसे भी चले गए और मोहिनी भी न मिली ।

लुट गए हम तेरी मुहब्बत में
ऐसा क्या गुनाह किया ।

जैसे ईश्वर की की व्याख्या नहीं हो सकती है वैसे जुगाड़ की भी व्याख्या नहीं हो सकती है ।बस जुगाड़ के प्रभावों को समझा जा सकता है जो सर्वविदित है ।
जुगाड़ तकनीक के पीछे के विज्ञान और उसके सिद्धांत पर अध्ययन के लिए कोर्स शुरू करने की ज़रूरत है । जितना इस पर रिसर्च होगा उतना ही जुगाड़के विभिन्न रूपों का पता चलेगा ।जिनके दिमाग जुगाड़ू दिमाग़ नहीं हैं उन्हे भी जुगाड के कुछ तत्वों को दिमाग़ में डालने में सहायता मिलेगी ।

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