डॉ शिवेंद्र कुमार मौर्य की अवधी कविताएं

डॉ शिवेन्द्र कुमार मौर्य
पूर्व शोध छात्र, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
संप्रतिः शिक्षक, श्री रणंजय इंटर कॉलेज,अमेठी, उत्तर प्रदेश।
संपादक: “उन्मेष” अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका
मो नं 8004802456

[ राम राज आइ गवा ]

राम कै चोला राम कै झोला राम नाम कै डंडी
राम नाम से देश चलावै सच मा बा पाखण्डी।
जनता मूरख बाटै पूरक अंधभक्ति मा चूर
सोचिस अब तौ पल भर मा सब होइ जाए दुख दूर।
नाम इ जपना फेंकिस सपना धन्य धन्य हे राम
भरी जवानी मा घर छोड़िस औ सधुवाइ गवा
हे भाई! राम राज आइ गवा।।

रेल का बेचिस गेल का बेचिस बेचिस एयरपोर्ट
लालकिला का कब ऊ बेचिस बोल न पाई कोर्ट।
धीरे धीरे सब बिक जाए बिके न पर ई देश
कहिस जुबानी जनता मानी घूमिस जाइ विदेश।
देश कै सेवक धनपति खेवक भीतर से व्यापारी
संतन कै ऊ बनिके संत कइसेन भरमाइ गवा
हे भाई! राम राज आइ गवा।।

बढ़िस मंहगाई मंदी छाई नोटबंदी के कारण
भूखन मरें तबहूं गुण गाएं धन्य धन्य हे चारण।
राम कै नारा कश्मीर हमारा तीन तलाक पुकारा
दंगा बचिगा हिस्ट्री रचिगा जय हो भाईचारा।
किसान विरोधी शिक्षा रोधी रोजगार कै भक्षक
निजीकरण कै कर्ता धर्ता मंहगाई बढ़ाइ गवा
हे भाई! राम राज आइ गवा।।

राष्ट्रवाद कै ओढ़ि के चोला भेष बनाए घूमै भोला
खूब कहै पर करै न एकौ मुंह से बा बहुतै बड़बोला।
तानाशाही युग निर्माता आपहि सेवक आप विधाता
छप्पनभोग करै बन निर्धन पर ऊ छप्पन इंच दिखाता।
आंख मा आंसू भरि के धांसू कपड़ा पहिन फकीर
पूरी दुनिया का भारत कै औकात देखाइ गवा
हे भाई! राम राज आइ गवा।।

गोरू चरैं किसान मरैं भै खेती बारी ठूठ
रामराज कै सपना अपना लागै अब तौ झूठ।
देश लूटि के भगें दास एक चौकीदार बस बचा साफ
किसानन कै कर्जा अब तक न एक्कौ रुपिया भवा माफ।
देश कै गाड़ी दिहिस पछाड़ी नोबेल बिन ऊ रक्खिस दाढ़ी
भक्त खुशी ह्वै झूमैं गावैं ‘शिव’ का रोवाइ गवा
हे भाई! राम राज आइ गवा।।

[ खेती बारी भै चउपट ]

उहै किहानी कहब आज हम हमपै जवन कटी बाटै
लिहिन बैंक से रुपया कर्जा अबहूं नहीं पटी बाटै।
केतना दिन होइगा चुकवत ई अबहूं नहीं चुकी ससुरी
एही बात कै टेंसन बाटै एही बात कै है झंझट।
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी भै चउपट।।

मउसम कै का हाल बताई उहौ हवा बेइमान
खेतेन मा सब गोहूं सरिगा नाही उपजा धान।
थोर बहुत जौ बचा रहा ओहका समझिन भगवान
पीसि खाय सब खतम किहिन बचा नहीं कूरा करकट।
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी है चउपट।।

झूरा पानी के राहत मा बांटिस कुछ पइसा सरकार
बीचेन मा सब डाका परिगा हम तक न पहुंचिस बउछार।
रामखेलावन निमरू गहरू सब दसा का हमरे पहुंचि गयें
मेहनत मजदूरी कइ के हैं सांझी के लउटे खट खट।
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी भै चउपट।।

व्यउहारे मा ठाकुर से कुछ अनाज हम सेत लिहिन
लाठी लइ के दउरायें हर बर्धा आपन बेंच लिहिन।
तंग हाल मा‌ भूख कचोटत बिलिल बिलिल है आंख करें
हाल चाल अब इहै अहै कि सांस चलै सरपट सरपट
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी भै चउपट।।

मलकिन हमरे ताना मारैं बेटवा बिटिया गरियावैं
नहीं गये परदेस कबौ अब ठेलि ठेलि सब पहुंचावैं।
एहिउ उमिर मा लगा गहन बा कहां जाइ अब का करी
इहै बात मुंह से निकली का घरहिन मा होइ गै खटपट।
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी भै चउपट।।

रामजियावन कहत रहें ई खेती आटै लहर बहर
छोड़ि छाड़ दा एहका बचवा घूमा टहरा जाइ सहर।
बात नहीं माने उनकै अपनी मर्जी कै किहिन खूब
घरहिन से बेघर होइके टुकुर-टुकुर ताकी अब पट।
काव बताई तुहसे भइया खेती बारी भै चउपट।।

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  • शिवेंद्र मौर्य हिंदी व अवधी के कवियों में अपनी खास पहचान रखते हैं.उनकी ये अवधी कविताएँ वाह्याडंर व आधुनिकतावाद की धज्जियाँ उखाड़कर रख देती है.

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