मुक्तिबोध, राजनादगाँव और ब्रह्मराक्षस अथवा यक्षोन्माद का सत्य

 मुक्तिबोध, राजनादगाँव और ब्रह्मराक्षस अथवा यक्षोन्माद का सत्य

सुशील द्विवेदी
1.
स्मृति का खेल भी बड़ा निराला है | कई बार लाख कोशिशों के बाबजूद भी तथ्यों का स्मरण नहीं होता है | अगर स्मरण हो भी जाये तो सीधे-सीधे नहीं, बल्कि आड़े-तिरछे, भ्रमित तथ्य मानस में उभरते हैं | आप कहेंगे कि यह निरापागलपन है या किसी प्रकार की व्याधि है | भला इस उम्र में विस्मृति का भ्रम होना भी कोई होना है | महाकवि कालिदास भी किशोर वय में स्मृति क्षय से ग्रसित थे | जिन तथ्यों का उन्हें अभ्यास करवाया जाता था उसे वे भूल जाते थे | बाद में अनवरत अभ्यास के उपरान्त उन्हें शास्त्र ज्ञान हुआ, उन्होंने विश्वप्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की | स्मृति क्षय से ग्रसित मनस को बहुत सामान्य अर्थ में मूढ़ मति कहा जाता है | हालाँकि मनोविज्ञान में इस स्मृति क्षय के अनेक लक्षण और कारण बताये गये हैं | उस विवरण से भला यहाँ क्या प्रयोजन? मैं सिर्फ तथ्यों के विस्मृति की बात कर रहा हूँ | विगत दिनों से मेरे एक मित्र को सड़क पार करते हुए यह आभास होता है कि कोई उनका पीछा कर रहा है और उनकी हत्या कर देना चाहता है | वे इस व्याधि से छुटकारा पाने के लिए भांति-भांति यत्न कर रहे हैं | कई बार इससे मुक्ति के लिए मंत्र-तंत्र का सहारा लेते हैं | जरा विचार कीजिये, ऐसा उनके साथ ही क्यों घटित होता मेरे या किसी अन्य मित्र के साथ क्यों नहीं ? ऐसा इसलिए कि वह अख़बारों,पुस्तकों और टीबी सीरियलों के क्राइम आधारित तथ्यों और घटनाओं से घिरे हुए हैं | ये तथ्य उनके मनस में क्राइम का अंतर्जाल बुनते हैं | जिससे बाहर निकलना उनके लिए संभव नहीं है | क्या आपने मकड़ी को जाल बुनते हुए देखा है ? वह बेचारी अपने ही बुने हुए जाल में फसती चली जाती है | हम स्वयं क्राइम आधारित फिल्मों, टीबी सीरियलों और पुस्तकों का चयन करते हैं, इसमें उनका क्या दोष देना| हाँ इतना अवश्य है कि इनमें तीव्र गति से अपनी ओर आकर्षित कर लेने की अद्भुत शक्ति होती है | इधर क्राइम या हॉरर आधारित कहानियों, उपन्यासों या फिल्म देखने-सुनने, पढ़ने का फैशन चल पड़ा है | किसी सिनेमाघरनुमा हॉरर हाउस में युवा भय महसूस करने या भूत-प्रेतों के क्रियाकलाप के परीक्षण के लिए जाते हैं | इसी तरह अन्य हंटेड हाउस या टॉर्चर चैम्बर में प्रताड़ना सहने या प्रताड़ित करने के लिए जाते हैं | एनबीसी की खबर के मुताबिक ‘मैककैमई’ (यूएस) ऐसा ही एक टॉर्चर चैम्बर है, जिसके क्रियाकलापों को देखकर 31100 युवाओं ने उसे बंद करने की अपील की है | दिल्ली में भी इसी तरह के सैकड़ों चैम्बर देखने को मिल जायेंगे | आज से सात-आठ वर्ष पूर्व सोखाई के तंत्रलोक को करीब से देखने अवसर मिला | सोखाई के तन्त्रलोक में भूत प्रेत जैसी अदृश्य शक्तियों से छुटकारा दिलाने का उपक्रम है | उसमें भोक्ता की भाव भंगिमाएं, रंग-परिवर्तन, स्वर-परिवर्तन और क्रियाकलापों पर गौर करना चाहिए | कई बार कृशकाय व्यक्ति के हाथ पटकने से धरती में बड़ा गड्ढा हो जाने या मोटी मोटी लौह-सकरियों को तोड़ देने की अकूत शक्ति आ जाती है | कई बार वे जलाशय या नदी के जल में उलटे सीधे तैरते, उछलते-कूदते ऊधम मचाते दिख जायेंगे | वे सिरफिरी भाषा में आपको गाली दे सकते हैं या किसी बात की बार-बार पुनरावृत्ति कर सकते हैं | यह सब देखते हुए आपको बड़ा अजीब लगेगा, बहुत संभव है कि भोक्ता के पागल प्रलाप पर आपको क्रोध आ जाये और आप उसे दण्डित करने लगें | आपके उग्र होने की यह अवस्था मानसिक असंतुलन का परिचायक है | असंतुलन की यही मानसिक अवस्था व्याधि है | हमारा जीवन व्याधियों और व्यसन का संकुल है | हम इससे निजात पाने के लिए ध्यान-योग जैसे अनुशासनों के शरण में जाते हैं |
ध्यान-योग सामान्य जन के लिए दो कौड़ी की चीज है | इससे मनुष्य काम धंधा त्याग कर वैरागी हो जाता है | उनकी धारणा है कि वैरागी मनुष्य से समाज नहीं चल सकता है | कोई असाधारण और दुर्लभ जन ही वैरागी होते हुए समाज चला सकता है | राजा जनक ऐसे ही वैरागी जन थे | वे वैरागी होते हुए भी राजकाज बखूबी चलाते थे | इधर के औद्योगिक वैरागियों में ध्यान-योग महज धनार्जन करने का उपक्रम भर है | उनमें राजा जनक जैसी बात कहाँ हो सकती है | न इनमें इतना धैर्य है और न जनकल्याण की भावना | शहरों में रक्तचाप, मधुमेह या मोटापा से निजात पाने के लिए ध्यान योग करते हुए युवक युवतियों की दिनचर्या का आकलन कीजिये | उनका अधिकांश समय इसी चिंता में बीतता है और वे मानसिक व्याधियों के मेघ से सिंचित होते रहते हैं | कई बार अनियंत्रित मेघ क्रीडाओं से व्युत्पन्न दामिनी उनकी काया में सीधे प्रवेश कर जाती है, परिणामस्वरूप उन्हें काल का ग्रास बनना पड़ता है |
इन तथ्यों पर गौर कीजिए और सोचिए क्या हम संतुलित हैं ? आप पाएंगे कि आप संतुलित नहीं हैं | इसका आशय है कि आप मानसिक व्याधि के शिकार हो गये हैं | सामान्य जन के लिए प्रत्येक अवस्था में मानसिक संतुलन असंभव है | योग शास्त्रों के अनुसार हमारे शरीर का तीसरा भाग ‘ऊर्जा शरीर’ है जिसमें 72000 नाड़ियों (आभासिक अन्तर्जाल) के माध्यम से अनियंत्रित ऊर्जा का उद्गार होता है | इसी अनियंत्रित ऊर्जा के माध्यम से अनगिनत भावों का जन्म होता है | यही भाव जिसे नाट्यशास्त्र में संचारी भाव कहा गया है, हमारे जीवन में अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं | जब हम किसी व्यक्ति से ईर्ष्या रखते हैं तो क्या उसका प्रभाव केवल उस व्यक्ति पर पड़ेगा या हमारे जीवन में भी ? ऊर्जा का संचरण केवल एक दिशा में नहीं होता | उसके संचरण की गति दोहरी है | वह दोहरी दिशा में प्रभाव उत्पन्न करती है | इस सचराचर जगत में सब कुछ ऊर्जामय है | ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमें ऊर्जा न हो | देखिये, आप राख के बारे में सोच रहे होंगे | राख में भी ऊर्जा होती है, किन्तु वह हमें दिखाई नहीं देती | हम केवल उसके प्रयोगों द्वारा उसका परीक्षण कर सकते हैं | ऊर्जा जिसे शास्त्र की भाषा में आत्मा कह सकते हैं, के दूसरे आयामों के बारे में विचार कीजिए | आप किसी शारीरिक पीड़ा गुजर रहे हैं और उसके उपचार हेतु आप किसी मौलवी के पास जाते हैं | वह आपको एक गिलास अभिमंत्रित जल देता है | आप जल ग्रहण करते हैं और ठीक हो जाते हैं | सामान्य अर्थ में, जिस प्रतिकूल ऊर्जा के कारण आपको पीड़ा का अनुभव होता है या आप अनियंत्रित हो जाते हैं उसे भव बाधा या ऊपरी बाधा कहते हैं | कौल/वाम कर्म में इसके विभिन्न नाम हैं यथा मूठ, मरी, टोना, ब्रह्मराक्षस, चुड़ैल, यक्षोन्माद वगैरह | इसमें कुछ नाम जाति-सूचक हैं तो कुछ क्रिया-सूचक |
जाति-सूचक नाम लम्बे सांस्कृतिक विघटन के उपरान्त इस रूप में आये हुए हैं | राक्षस, यक्ष, गन्धर्व, देव ये सभी जाति सूचक नाम हैं | विचार कीजिये, राक्षस नाम सुनते ही आपके मन में उनका कौन सा रूप, रंग व भाव-भंगिमाओं का चित्र उभरता है ? राक्षस को लेकर हमारे मन में विशालकाय, लम्बे-लम्बे बाल-नख और पैने दांत वाला डरवाना चित्र अंकित होता है | उन्हें मनुष्य और देव गणों का शत्रु बताया गया है | मत्स्यमहापुराण के अनुसार देव और राक्षस एक ही पिता की संताने हैं | राक्षसों को यज्ञ भाग से वंछित रखा गया जबकि देवों को यज्ञ आदि का भाग मिलता रहा | धीरे-धीरे उन्हें पाताललोक (जहाँ समस्त मूलभूत आवश्यकताओं से वंछित) में रहने के लिए विवश किया गया | इसी तरह नृत्य और संगीत से जुड़ी जातियाँ गन्धर्व, शास्त्र और संगीत से जुड़ी जातियां यक्ष जिन्हें आज सामान्यतः एक ही रूप में जाना जाता है | सुदीर्घ सांस्कृतिक विघटन के उपरान्त ये जाति-सूचक शब्द मुहावरों तदनंतर नकारात्मक रूपकों में ढ़लते चले गये | वाल्मीकि रामायाण में राक्षस को रक्ष धर्म का अनुयायी कहा गया है | इन्हें रक्तपिपासु, हिंसक, हड़प निति में विश्वास करने वाला बताया गया है | एक बात ध्यान देने योग्य है कि इनमें जातीय गौरवबोध के साथ-साथ, आपसी सामंजस्य, बन्धुत्व और राज्य-विस्तार की जबरदस्त भावना थी | ये दूसरी संस्कृति को अंगीकार करने वाले न थे किन्तु जो भी अपनी संस्कृति की अवहेलना कर दूसरी संस्कृति को स्वीकार करता था, उसे प्रताड़ित भी अवश्य किया जाता था | यही लक्षण अन्य जातियों के भी थे | शुक्राचार्य जोकि देव जाति के थे, असुरों और राक्षसों की पक्षधरता के कारण उन्हें दण्डित और अपमानित करके देव जाति से च्युत कर दिया गया था | कृत्या के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया गया था | ऐसे अनेक उदहारण ग्रंथों में मिल जायेंगे |
जन के सुकोमल ह्रदय में कौल-कर्म असुर-राक्षस जातियों की नकारात्मक छवि सृजित करता है | इन जातियों का तांत्रिक साधना में प्राकृतिक शक्ति के रूप में रूपांतरित हो जाना कोई सामान्य घटना नहीं है | इन जातियों का मृत्यु के उपरान्त प्रेतात्मा और उसके बाद केवल प्रेतात्मा के रूप में सामान्य जन में व्याप्ति किसी जाति के लिए इससे बड़ा अभिशाप क्या हो सकता है ? चरक सहिंता जिन मानसिक व्याधियों को औषधि और यौगिक क्रियाओं के माध्यम से उपचार करता है, उन्हीं व्याधियों की उत्पत्ति और उसके प्रभावों को कार्य-कारण के आधार पर कर्म विपाक जातिसूचक संज्ञा का प्रयोग करता है | उसके लिए यह केवल मानसिक व्याधि नहीं रह जाती है अपितु ऊपरी शक्ति का अनियंत्रित भौतिक स्वरुप, जो भोक्ता के अन्दर घटित हो रही है | इसी प्रकार का अन्य ग्रन्थ गरुण पुराण है | यह ग्रन्थ भी मृत्यु के उपरान्त आत्मा के क्रियाकलाप पर आधारित है | भारतीय चिंतन में आत्मा के पुनर्जन्म की अवधारणा है | वह पुराने जीर्ण शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है –
वासांसि जीर्णानि यथाविहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ||
एक चर्चा के दौरान प्रो. चंद्रदेव यादव जी ने कहा कि भारतीय चिंतन में आत्मा सम्बन्धी विचार अंतर्विरोधों से भरा हुआ है | यही बात ऊर्जा संक्षण के नियम के अनुसार प्रमाणित होती है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं, वह केवल रूप बदलती है | मैंने पहले कहा कि आत्मा को दूसरे शब्दों में ऊर्जा ही माना जाये | रूप परिवर्तन की स्थिति में समय-पश्चात्यता की सम्भावना बढ़ जाती है अर्थात जब आत्मा एक घट को त्यागकर दूसरा घट धारण करती है तो परिवर्तन की इस स्थिति में आत्मा का अपने संचरण की दिशा में विचलन हो जाता है | विचलन की यही स्थिति भव बाधा या ऊपरी बाधा है | इसके प्रभाव क्षेत्र से गुजरने पर हमारे भीतर हलचल पैदा होती है जिसके कारण हम असंतुलित हो जाते हैं | आप जानते हैं कि मैंने ऊपर कहा है, ‘असंतुलन के कारण मानसिक व्याधि उत्पन्न होती है’ | हम जिसे मानसिक व्याधि कह रहे हैं, उसे दूसरे शब्दों में भवबाधा के कारण उत्पन्न असंतुलन भी कह सकते हैं | इसे मानने में कोई समस्या नहीं होगी |
श्रीमद् भागवत महापुराण की धुंधुकारी की कथा आपने अवश्य सुनी होगी | कुकर्म के कारण धुंधकारी को स्त्रियों ने उसे भयानक यंत्रणाएँ देते हुए जला दिया था | बाद में वह बवंडर का रूप धारण कर दिगंत में चक्कर काटता रहा | आज भी लोक में बवंडर को प्रेत का पर्याय माना जाता है | इसी तरह मत्य्स महापुराण जैसे शतादिक ग्रंथों में प्राकृतिक असंतुलन को प्रेत या राक्षस का रूपक बताया गया है | मानव शरीर में प्राकृतस्थ- असंतुलन को नाना प्रकार के प्रेत-योनि की संज्ञायें दी जाती हैं | आप सोच रहे होंगे कि यह असंतुलन केवल मनुष्य में होता है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है | ऐसी क्रियाएं पशुओं में भी होती हैं | आँखों का लाल हो जाना, थन में तीव्र कसाव, ऐंठन या फिर दूध की जगह रक्त का स्राव, लार बहाना, खुराव करना या फिर पागल हो जाना जैसी अनेक क्रियाएँ पशुओं में देखी जाती हैं | ऐसी स्थिति में गोपालक अभिमंत्रित वस्तुएं खिला देता है और वे ठीक हो जाते हैं | जब यही असंतुलन मनुष्य में होता है उसके भी अनेक लक्षण परिलक्षित होते हैं | जैसा की मैंने पहले कहा है कि चरक संहिता में इसके अनेक लक्षण और उपाए बताये गये हैं | सभी लक्षणों का जिक्र यहाँ नहीं किया जा सकता है, मात्र दो प्राकृतिक -असंतुलन के लक्षणों का यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ – ब्रह्मराक्षस और यक्षोन्माद |
यक्षोन्माद के लक्षण –
• बार- बार सोना, रोना, हँसना, नाचना गाना एवं बाजा बजाना चाहता है |
• स्त्रोत-पाठ-कथा, स्नान माला-धारण, इत्रलेपन आदि पसंद करता है |
• भोजन का प्रेमी, ब्राह्मण एवं वैद की निंदा करता है, अपना रहस्य बतलाता है |
• आँखें लाल तथा सजल होती हैं |

ब्रह्मराक्षस के लक्षण –
• हँसी- मजाक करने वाला, नर्तक, देव, ब्राह्मण एवं वैद्य द्वेषी एवं तिरस्कर्ता |
• स्त्रोत-पाठ, वेदमंत्र पाठ और शास्त्र वचनों का पाठ करने वाला |
• लकड़ी के डंडे से अपने शरीर को पीटने वाला |

क्रमशः
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