वन्यजीव संरक्षण में नवीन तकनीक का महत्व


डॉ आरके सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ


वन्यजीव विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियों से खतरे में हैं, जैसे निवास स्थान विनाश, अवैध वन्यजीव व्यापार, इनवेजिव प्रजातियों और बीमारियों का प्रसार, और इससे अधिक पृथ्वी की जलवायु पर मानव का प्रभाव, जो जंगली आवासों की प्रकृति को बदल रहा है। प्रौद्योगिकी में प्रगति वैज्ञानिकों और आम जनता को सुविधाएं अवश्य देती है। पर वन्यजीवों व उनके आवासों को कई प्रकार से खतरों में भी डालती है। यदि हम चाहें तो आधुनिक तकनीक से वन्यजीवों को बेहतर ढंग से समझने का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी के उपयोग को पशु पारिस्थितिकी और संरक्षण के लिए प्रयोग करके वन्यजीव संरक्षण के प्रमुख कारकों को पहचाना जा सकता है।
वन्यजीव के संरक्षण हेतु कई प्रकार से कार्य किये जाते रहे हैं। परंतु यदि आधुनिक तकनीक से वातावरण का नुकसान हुआ है तो उसका उचित प्रयोग वन्यजीव संरक्षण में मील का पत्थर भी साबित हो सकता है। लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण के लिए पहला पहलू है प्रजातियों को उनके आवास के भीतर संरक्षित करना, और दूसरे में संरक्षित प्रजनन और दुर्लभतम प्रजातियों की देखभाल शामिल है।
एक्स-सीटू संरक्षण यानी प्राकृतिक आवास से बाहर संरक्षण यानी प्राणिउद्यानों में संरक्षण में तकनीकी अनुप्रयोगों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे कि उपग्रह इमेजिंग और आधुनिक प्रजनन प्रौद्योगिकियां वन्यजीव संरक्षण को बढ़ाने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। इनका उपयोग पशु कल्याण और चिड़ियाघर के आगंतुकों को संरक्षण संबंधी जागरूकता को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। वन्यजीवों के संरक्षण की बढ़ती मांगों को देखते हुए यह उचित समय है कि इस दिशा में प्रयास किया जाए कि ‘तकनीकी का उपयोग करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है’?
पृथ्वी को एक प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के साथ विशाल विविधता को भी उपहार में दिया गया है। जिसमें शामिल हैं, जंगली वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों की एक विशाल श्रृंखला। फिर भी, वैश्विक पर्यावरण जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण और भूमि के विभिन्न अप्राकृतिक उपयोग पौधे और पशु जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। आज के समय में पशु जगत विशेषकर वन्यजीव अधर में है।
आज स्तनधारियों की लगभग 1200 से अधिक प्रजातियाँ, पक्षियों की 1400 प्रजातियां, 2000 सरीसृप प्रजातियां और मछलियों की 2300 से अधिक प्रजातियों को खतरा है । अवैध वन्यजीव व्यापार जैसी गतिविधियाँ, इनवेज़िव प्रजातियों और नए रोगों का प्रसार, और पृथ्वी वातावरण पर मानव प्रभाव; जलवायु व जंगली आवासों की प्रकृति को बदल रही हैं। इसके चलते विभिन्न प्रकार की रणनीतियां, पहल की गईं हैं पर तकनीकी समाधान का उपयोग अभी भी कम ही हुआ है। वन्यजीव सुरक्षा के लिए दो अलग अलग दृष्टिकोण इन-सीटू और एक्स-सीटू संरक्षण का उपयोग किया जाता है। इन-सीटू यानी वन्यजीवों का उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षण व एक्स-सीटू यानी कृत्रिम आवास जैसे प्राणिउद्यान में संरक्षण आदि।
एक आदर्श दुनिया में पर्यावास संरक्षण (सीटू संरक्षण में) पर अत्यधिक प्रयास हमेशा होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि संपूर्ण पर्यावरण की रक्षा के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए और इस हेतु सबसे महत्वपूर्ण कार्य यानी वन्यजीव संरक्षण पर एकल दृष्टिकोण स्थापित किया जाए।
हालांकि वन्यजीव प्रजातियों का बाह्य स्थान संरक्षण यानी एक्स-सीटू संरक्षण या प्राणिउद्यानों में संरक्षण आवश्यक है पर प्राकृतिक स्थानों का समर्थन करने वाले लोगों ने इसे कभी पसंद नहीं किया है। पर चिड़ियाघरों के वन्यजीव संरक्षण का महत्व और इस दिशा में पिछले तीन दशकों में उनकी भूमिका काफी बढ़ी है। इसकी भूमिका में प्राणिउद्यानों के वे अनुसंधान शामिल है जो संरक्षण, संरक्षण परियोजनाओं के ज्ञान, अभ्यास एवम जागरूकता को आम जनमानस में बढ़ाता है, और इस प्रकार उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षण के प्रति जनमानस को जागरूक करता है। एक आधुनिक चिड़ियाघर को रणनीतिक रूप से एक्स-सीटू और इन-सीटू संरक्षण दोनों को ही एकीकृत कर कार्य करना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में प्राणी उद्यान और एक्वैरियम, तितली पार्को में मौलिक रूप से वृद्धि हुई है। जिनमें वन्यजीव कल्याण में सुधार के प्रयास, पशु व्यवहार और विभिन्न प्रकार के तकनीकी अनुप्रयोग वर्तमान में किया जा सकता है।
आम जनमानस को शिक्षित करने के लिए चिड़ियाघर एक विशेष माध्यम हैं। जनता के रूप में वे सालाना लाखों आगंतुकों को आकर्षित करते हैं और वन्यजीव संरक्षण जागरूकता में एक सशक्त माध्यम बन सकते हैं।

तकनीक उपयोग का मुख्य उद्देश्य उन उपकरणों पर केंद्रित होना चाहिए जिन्हें दोनों एक्स-सीटू व इन-सीटू में लागू किया जा सकता है। उद्देश्य यह भी होना आवश्यक है कि प्रजातियों के संरक्षण में प्रौद्योगिकी और कैसे प्रौद्योगिकी का विकास लोगों को वन्यजीव संरक्षण में उपयोग में ला सकता है। जैसे बायो-लॉगिंग और बायो-टेलीमेट्री सूचना एकत्र करने के विभिन्न रूप हैं, दोनों से व्यवहारिक रूप से पर्यावरण व वन्यजीवों की निगरानी की जा सकती है। टैगिंग और रिमोट सेंसिंग उपग्रह, जो अधिक सटीक और तेज़ सूचना प्रदान करते हैं, को वन्यजीवों के पारिस्थितिक तंत्र व बायोडायवर्सिटी के अध्ययन व पर्यावरण के अध्ययन व रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए किया जा सकता है। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की तकनीक मानव वन्यजीव संघर्ष की स्थिति में अभूतपूर्व रूप से सहायक सिद्ध हो रही है।
जीपीएस टेलीमेट्री के माध्यम से एक वन्यजीव के सटीक मूवमेंट पैटर्न, वन्यजीव के स्थान और सर्वेक्षण स्थलों से इसकी दूरी को मापा जा सकता है । यह ऐसी तकनीक है जो संकटग्रस्त प्रजातियों के पुनर्वास में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है। पशु-जनित प्रौद्योगिकी, पशु-जनित वीडियो और पर्यावरण डेटा संग्रह प्रणाली, उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटासेट आदि के उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। जो वन्यजीवों के शरीर विज्ञान, व्यवहार को माप सकते हैं।
वन्यजीवों में रेडियो कॉलेरिंग व पक्षियों में हल्के जियोलोकेटर या उपग्रह ट्रांसमीटरों ने इनके संरक्षण में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। बड़े और छोटे पक्षियों के लिए प्रवासी मार्गों और सर्दियों के क्षेत्रों का पुनर्निर्माण में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जो प्रवासन रणनीतियों के बारे में भविष्यवाणियों का परीक्षण करने का अवसर प्रदान कर सकते हैं। वन्यजीवों सम्बंधित भविष्यवाणी के लिए पशु-जनित उपकरण भी फायदेमंद होते हैं और पक्षियों के संरक्षण में बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं। इसी तरह कैमरा ट्रैप रिमोट डिवाइस होते हैं जो मोशन या इंफ्रारेड सेंसर से लैस होते हैं एवम छवियों या वीडियो को स्वचालित रूप से रिकॉर्ड करते हैं। आज वे एक महत्वपूर्ण वन्यजीव अनुसंधान उपकरण बन गए हैं। नई तकनीकी शोधकर्ताओं को अतिरिक्त अवसर देती है की किस प्रकार वे वन्यजीवों की निगरानी करें और बड़ी संख्या में वन्यजीव मानव आबादी तक न पहुंचें। पारंपरिक तकनीकें जैसे वन्यजीवों की पकड़ने और फंसाने के तरीके, श्रम-गहन होते हैं और जिसमें सैकड़ों या हजारों ह्यूमन ऑवर की आवश्यकता होती है; जबकि, कैमरा ट्रैप इस क्षमता को कई गुना बढ़ा सकते हैं। वन्यजीवों के बारे में कई सवालों के जवाब देने के लिए कैमरा ट्रैप एक व्यावहारिक उपकरण हैं। इससे पशु आबादी के घनत्व या अनुमान के अलावा पशु व्यवहार का अध्ययन भी किया जा सकता है। कैमरा ट्रैप हमें समझने में मदद कर सकता है कि विभिन्न प्रजातियां अपने आवास का उपयोग कैसे करती हैं।
दुनिया जैव विविधता के एक खतरनाक नुकसान का सामना कर रही है, जहां वन्यजीवों के विलुप्त होने की दर मुख्य रूप से मानवीय जनित क्रियाओं द्वारा संचालित होती है। नवीन प्रौद्योगिकी के माध्यम से नेशनल पार्क, वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, चिड़ियाघर और एक्वैरियम विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नई तकनीक के प्रयोग से कैप्टिव प्रजनन और पुनरुत्पादन संरक्षण में कहीं कहीं प्रजातियों की संख्या में वृद्धि दर्ज की जा रही हैं; हालाँकि, प्रजातियों के संरक्षण में नवीन तकनीक का योगदान इससे कहीं अधिक हो सकता है।
अवेयरनेस प्रोग्राम व वन्यजीव शैक्षणिक संस्थानों में प्रौद्योगिकी का उपयोग अत्यंत आवश्यक है। कई नेशनल पार्क, प्रोटेक्टेड एरिया, जूलॉजिकल पार्क और एक्वैरिया संस्थान लंबे समय से इनका उपयोग कर रहे हैं । पर उनकी संख्या में वृद्धि की आवश्यकता है।
चिड़ियाघरों द्वारा संचालित लाइव वेब कैमरे चिड़ियाघर में जानवरों के वीडियो प्रदर्शित करते हैं और ऐसी वेबसाइटें, जो आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध हैं वन्यजीव संरक्षण में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
प्राकृतिक व कैप्टिव वातावरण में प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग, जैसे कि पशु व्यवहार और पशु संरक्षण का अध्ययन, का उद्देश्य वन्यजीव कल्याण और अपरोक्ष रूप से मानव कल्याण को बढ़ाना है और इन क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान का लाभ उठाना आवश्यक है।
उल्लेखनीय रूप से पिछले 10 वर्षों में चिड़ियाघरों व नेशनल पार्क में शोधकर्ताओं द्वारा पशु-संलग्न प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ा है । पशु कल्याण के लिए उनके व्यवहार के बारे में वैज्ञानिक अब आसानी से निगरानी कर सकते हैं। उनके मोवमेंट के पैटर्न, लोकोमोटर गतिविधि, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, प्रजनन व्यवहार, और अन्य व्यवहार की एक श्रृंखला का अध्ययन कर वन्यजीव संरक्षण को व्यवहारिक रूप प्रदान किया जा सकता है। वन्यजीवों के विभिन्न पहलुओं के बारे में सवालों की जांच करने के लिए वन्यजीवों में जीपीएस जैसे उपकरण लगाए जाते हैं।
एक अन्य प्रौद्योगिकी है जेनेटिक इंजीनियरिंग, कृत्रिम गर्भाधान व एम्ब्रायो ट्रांसफर, जिसका उपयोग वन्यजीव संरक्षण में मील का पत्थर साबित हो सकता है। हालांकि, इन तीनों के उपयोग से पहले विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। क्योंकि प्रकृति से छेड़छाड़ मानव प्रजाति के लिए घातक भी सिद्ध हो सकती है। परंतु संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने में यह अभूतपूर्व रूप से एक बहुत ही उपयोगी शस्त्र भी साबित हो सकता है। इनके प्रयोग से पूर्व यह पता कर लेना आवश्यक है कि प्रजाति विशेष मानव जनित कारणों से संकट में हसि अथवा प्रकृति जनित कारणों से, हालांकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रकृति जनित कारक गौण ही हैं। तत्पश्चात ही इन तकनीक के प्रयोग से वन्यजीव कल्याण सम्भव है।
इन-सीटू और एक्स-सीटू कंज़र्वशन दोनों की प्रभावकारिता को समझने की गंभीर आवश्यकता है। यदि मानव को अपना संरक्षण करना है तो उससे पहले पर्यावरण संरक्षण करना आवश्यक है। तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु वन्यजीव संरक्षण एकमात्र विकल्प हैं। इस हेतु तृण मूल स्तर तक कार्य कर आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए सभी को संवेदनशील बनाना व जागरूक करना ही अंतिम उपाय है, क्योंकि मानव तृष्णा असीमित है।

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