है तभी दीवाली

तेज प्रताप नारायण

अंतस में जब दीप जले
मन रौशनी से भरे
अज्ञान की अमावस्या छटे
पूनम का चाँद उगे
है तभी दीवाली

ऊँच नीच का धुआँ छटे
एक हों जो हैं बंटे
असमानता का बाँध टूटे
इंसानियत की नदी बहे
है तभी दीवाली

जो पीछे हैं वें आगे बढ़े
शिक्षा की सब नाव चढ़ें
अन्याय का घाव भरे
गलतफहमियों के मेघ छटें
है तभी दीवाली

जब प्रेम का पुष्प खिले
नफ़रत के शूल मिटें
प्रीत आए जब सावन में
संगीत बजे हर आँगन में
है तभी दीवाली

मन मयूर जब करे नर्तन
आनंदित हो जाए हर तन मन
ऊर्जा का संचार हो जीवन मे
आशा उत्साह हो मन -मन में
है तभी दीवाली

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published.