डॉ दीपा की कविताएं
डॉ० दीपा
शिक्षा
पीएच.डी., एम. फिल., एम.ए. हिंदी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
पी.जी. डिप्लोमा कोर्स अनुवादक अंग्रेजी-हिंदी-अंग्रेजी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
पी.जी. सर्टिफिकेट कोर्स पत्रकारिता (दिल्ली विश्वविद्यालय)
प्रकाशन
•”दीपांजलि” (एकल काव्य संग्रह)
•”मासूम सपने” (सम्पादित काव्य संग्रह)
•किन्नरों के जीवन पर शोधपरक पुस्तक प्रकाशनाधीन
•विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशन
हिंदी काव्य सम्मेलनों में ऑनलाइन एवम ऑफलाइन नियमित रूप से भागीदारी :
1 काव्यकला ऑनलाइन मंच
2 रसमंजरी
3 कवितांगन
4 साहित्य संचेतना मंच
5 हिंदी साहित्य अकादमी मुम्बई आदि।
हिंदी में काव्याभिव्यक्ति सम्बन्धी ऑनलाइन पेज
एहसास : @फेसबुक पेज 84000 फॉलोवर
मेरे एहसास 2019 : @इंस्टाग्राम
सम्प्रति:
दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय में सहायक आचार्या
सम्पर्क:
हिंदी विभाग,श्री अरबिन्द महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय), नई दिल्ली-110017
ई-मेल
deepa_neemwal@rediffmail.com
deepaneemwal@gmail.com
- बस आ जाना
सुनो! किंचित भी
भ्रमित न होना तुम
मैंने तुम्हें
हृदय में प्रवेश की
स्वीकृति दे दी है।
जब आओ
ले आना
गुलाब नहीं
मुझे फूलों को तोड़ना
पसन्द नहीं है
उनका पत्तों से
डाली से जुदा होना
नहीं भाता मुझको।
मुझे वो वहीं बेहद खूबसूरत,
लुभावने और सुशोभित लगते हैं
किसी के लिए उनका
अलग होना
अपनी अस्मिता से
मुझे किंचित नहीं भाता।
हाँ अगर लाओ
कुछ ऐसा लाना
जिससे तुम्हें कागज़ पर
उकेर सकूं मैं
खोलकर रख सकूं
मन की हर व्यथा
हर खुशी, हर दर्द
हर उमंग को
भर सकूं उड़ान
तुम तक जो पहुंचती हो।
हाँ अगर लाओ
तो ले आना
कुछ ऐसा
जिसे तन से लपेट सकूं
तुम्हारे होने का
एहसास करा पाये जो।
ले आना कुछ
उन आँखों के लिए
जो लुभाती हैं तुम्हें
जो जागती हैं
तुम्हारे लिए
सर्वस्व न्यौछावर किये
तुम्हारे आने की
बाट जोहती हैं।
अगर आओ
ले आना कुछ
उस हृदय को
सुकून दे जो
सुनो! बस तुम आ जाना
अमल धवल सा प्रेम लिए
निष्कपट, निश्छलता,
निर्मलता लिए
भले कुछ मत लाना
पर आना
मेरे होने के लिए
एहसास भरे आलिंगन से
मुझको कृतज्ञ करने के लिए
बस आ ही जाना
आ ही जाना
आ ही जाना
सुनो! बस अब आ जाना।
- पिता तुम बिन कुछ भी नहीं मैं!
पिता तुम बिन कुछ भी नहीं मैं
तेरी प्यारी सी नन्हीं परी मैं
तेरी बांहों में ये संसार देखा
तेरी उंगली पकड़कर चली मैं
तुम बिन अधूरा हर त्यौहार
तुम बिन सूना ये मन और घर-द्वार
ये दीप तुम बिन अधूरा
तुम्ही सर्वस्व मेरा!
पिता तुम बिन कुछ भी नहीं मैं
सुरक्षित थी सदा मैं संग तुम्हारे
तुम्हारे होते न कोई भय सताया
जीवन की बोझिल राहों को
तुमने खुद पर लेकर
उनको मेरे लिए था सहज बनाया
जब भी डगमगाए कदम
आगे बढ़कर मेरा मनोबल बढ़ाया
सही न जाने कितनी बातें
मेरे लिए पर
उन्हें न कभी दिल से लगाया
मुझे केवल आगे
आगे और आगे बढ़ाया
पिता तुम बिन कुछ भी नहीं मैं
तेरी प्यारी सी नन्हीं परी मैं।
3.हार ना जाना तू!
ढल जाएगी रात अंधेरी
तू घबराना ना
आती-जाती सांसों से
बोझिल हो जाना ना।
तमस छटेगा एक दिन
वो दिन लौट के आएंगे
हारने से पहले
पर तू हार ना जाना हाँ।
छाएगी उदासी जब भी
तू घबराना ना
हारने से पहले पर
तू हार ना जाना।
मानव मन की वेदना
जब जब तुझे सताएगी
भूलकर भी उसको ना
गले लगाना तुम।
वृक्षों सा आनंदित रहना
और लहराना तू
प्रकृति की गोद में रहना
भूल ना जाना तुम।
हाँ भूल ना जाना तुम……।
- विडम्बना!
वो बेबस माँ बाप/
कहाँ जानते थे
आज हाशिये पर होंगे
कल/
कहाँ जानते थे??
पाला-पोसा,
जिनको सींचा
खून से था
वही आज/
नाशुकरी का/
प्रमाण होंगे।
रातों को जिनके लिए
सोये नहीं थे जो
आज/
उनकी बदतमीजियों/
का
वो शिकार होंगे।
पता था कब कहाँ माँ को
वो उधड़न/
जिसकी सीलती है
वही औलाद/
चिथड़े तक
उसके छीन लेती है।
जागती खुद
रातों को/जो
लोरी उसको सुनाती थी
सुबह उसके लिए जो भागकर
वापिस जुट जाती थी।
वही औलाद छलनी आज
सीना उसका कर देगी
शब्दों के कटु खंजर से
उसको छलनी कर देगी।
पिता खपता रहा
जिसके
कुशल-मंगल के लिए/
जीवनभर/
वही औलाद/
उनको आज
घर से बाहर का रस्ता/
दिखा देगी।
आज देखा था
एक मंज़र/
जो अंदर से हिलाता है
मारकर माता-पिता को वो
तीरथ स्थान जाता है।
पुण्य आत्माओं को/दुःख देकर
वो पुण्य कमाता है
खबर उसको नहीं शायद
जन्नत इन्हीं से है
जो पूरी होगी/उसकी/वो
मन्नत उन्हीं से है।
बड़प्पन उनका देखो/तुम
फिर भी/ उन्हें
आशीष देते हैं
जो बच्चे/
पल-पल उनका
तिरस्कार करते हैं।
- मैं ज़िंदा हूं
मैं लिखती हूँ,
क्योंकि मैं ज़िंदा हूँ।
संवेदनाएँ अभी चुकी नहीं हैं…
शेष हैं मुझमें………
मेरे भीतर का इंसान……
अभी बाक़ी है….
आँखों में नमी
हृदय में तूफ़ान..,.
अभी बाक़ी है..
यूँ तो हर रोज़ मैं
पिघलती हूँ
रोज़ जीती हूँ
रोज़ मरती हूँ
शायद मेरे अंदर का
इंसान अभी बाकि है
मेरी रगों में खून
हृदय मैं उफान लेता है।