हरीश अग्रवाल ‘ ढपोर शंख ‘ की कविता

न्याय का द्वार एक लालाजी की दुकान पर रखे आटे को एक बकरी चर गयी, उनकी दुकान से आटे को खाते देख वो लालाजी‌ को अखर गयी, लालाजी ने एक छोटी डडीं से उसे मारकर भगाया, दुर्भाग्य लालाजी का,डंडी की मार से बकरी मर गयी, बकरी के मालिक ने जाकर दरोगा जी को रिपोर्ट लिखाई, […]Read More

अवधेश यादव का संस्मरण

अनजाने शहर में कुछ अपने से लोग। शाम के 7 बज रहे है।दिल्ली में, जी.टी.बी. नगर से बत्रा की ओर जानें वाली सड़क पर तेजी से गाड़ियाँ दौड़ रहीं है।मुखर्जी नगर से 500 मीटर पहले एक इंद्राविहार कालोनी पड़ती है,जिसके ठीक सामने डीयू का गर्ल्स हॉस्टल है।अगर पता समझने में आटो वाले को इंद्राविहार नाम […]Read More

जिनमें है दम उनके साथ हैं हम

राजीव चौधरी (लेखक, Delhi Technological University में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं। कविता,कहानी और व्यंग्य लिखने में आपकी रुचि है ।) इस विषय में ही अपने आप में बड़ा दम है, बड़ी सम्भावनाएं है, जो अच्छी भी हैं और बुरी भी, जो अपने लिए तो सच हैं ही, लोगों, देश और समाज पर भी लागू […]Read More

प्रसिद्ध भाषाविद डॉ राजेंद्र प्रसाद का लेख

सिद्ध कवियों की संख्या 84 थी। नाथों की 9 थी। सिद्ध और नाथ कवियों में सर्वाधिक शूद्र थे। मछुआरे, चर्मकार, धोबी, डोम, कहार, दर्जी, लकड़हारे और बहुत से शूद्र कहे जाने वाले कवि थे। रामचंद्र शुक्ल ने इनकी कविताओं को सांप्रदायिक माना और लिखा कि सिद्धों और नाथों की कविताएँ शुद्ध साहित्य नहीं है। अर्थात […]Read More