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उजियारों से अन्धियारों तक रस्ता ढूंढ रहा हूँ थोड़ा तुममें थोड़ा खुद में इंसा ढूंढ रहा हूँ राहों की उड़ती धूलों में बचपन की भोली भूलूं में रस्ता ढूंढ रहा हूँ उजियारों से अन्धियारों तक रस्ता ढूंढ रहा हूँ नानी की वह किस्सों वाली खुद के ही कुछ हिस्सों वाली सब है एक रंगी तो […]Read More
मेरे युवा दोस्तों, अपने शिक्षा, अपने करियर पर ध्यान दें। अपने फील्ड में ईमानदारी से अपना बेस्ट देना ही आपकी सच्ची देशभक्ति होती है। लोग खेल कर, जीवन में अथक मेहनत और दृढ़ निश्चय से खेलों में देश के लिए मैडल जीतते हैं, उनके पीछे जन गण मन की धुन बजती है, तिरंगा लहरा रहा […]Read More
लेखक अपर जिला जज के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं ।साहित्य में गहरी अभिरुचि है । जन्नत तो नहीं पता, पर ये माँ! तेरी गोंद से ज्यादा, शुकून कहीं भी नहीं। नहीं चाहिए हमें, कहीं हो भी कोई स्वर्ग तो। माँ तेरे साये में ही, सारी क़ायनात नज़र आती है। दुनिया के प्यार […]Read More
1.मसान – एक •••••••••••• खून से भीगी हुई कविताओं के पन्ना-दर-पन्ना को चिता की लौ से सेंकते हुए कवि तुम स्पार्टा और एथेंस को भूल गये स्पार्टा कभी जीवित नहीं रहा… एथेंस तुम्हारी धमनियों में दौड़ता है आज तक। आपादमस्तक, यातना के गर्भ में सना हुआ रचता रहा जीवन और मृत्यु के गीत और राग […]Read More
1.पुनर्जीवन” काया पलट पेड़पेड़ असहाय साक्षी बना सूखा खड़ान पत्ता न कोपल पतझड़ से ये घिराहर आने-जाने वाले पर नज़रें है टिकायेएक आस लगाये कोई तो रुकेगाउठाकर नज़रें भर देखेगाहर कोई उसको अनदेखा सा किएनिकला जा रहा है पेड़ घूरता दूर तक उम्मीद लगायेकसमसाता देख रहा हैयकायक आशा में बदली निराशा उसकीउदासी छोड़ सोचने लगाआख़िर […]Read More
आलोचक :सन्तोष पटेल अन्तरवृर्तिनिरूपमयी भाव सार्वभौमिकता से जुड़ा है। यानी ऐसा गीतिकाव्य जो व्यष्टि से समष्टि का भाव गेयता के साथ कांता सम्मत उपदेश वाली भावना से दूसरों तक सहजता से सम्प्रेषित हो। प्रो गमर ने गीतिकाव्य के बारे में लिखा है कि वह अन्तरवृर्तिनिरूपमयी कविता है जो व्यक्तिक अनुभूति से आगे बढ़ती है। डॉ […]Read More
तुम कब रुकोगे ‘स्पीड’ करना चाहिए मनन कभी जरूरी है ध्यान से विचारना उलझा रखा है जिस शब्द ने मानव जीवन को बेतरतीब तरीके से कहते हैं सभी गति ने गति दी है जीवन स्तर को गति दी है बहुमुखी विकास को दिया है उसे नया आयाम पर आये हैं साथ में इसके भी कुछ […]Read More
1..हल की धार को याद कर लेती हूँ– बहुत पहले मां नेकहा था किकुछ बनाते समयउसको याद कर लेना चाहिएजो उस काम कोअच्छे से करता होतो मैंखाना बनाते समयमाँ को याद कर लेती हूँजिंदगी की कड़वाहट कम के लिएपानी को याद कर लेती होजिंदगी को समतल बनाने के लिएहल की नुकीली धार कोऔर दुःख को […]Read More
1.एक समय के बाद असंभव हो जाता है सच्चे प्यार का मिलना फूलों का महकना निग़ाहों का निगाहों से मिलना पलकों का उठना -गिरना स्नेह की बूंदे गिरनी बंद हो जाती हैं सावन में बिजलियों का चमकना बंद हो जाता है बादल में मासूमियत और मोहक अदाएं दिल को बिल्कुल न भाएं पहुंच से जो […]Read More