लेखिका ,ऋतु रानी , केंद्रीय विश्वविद्यालय महेंद्रगढ़ ,हरियाणा में शोधार्थी हैं ।भारतीय रंगमंच कहते ही हमारे जहन में शास्त्रीय रंगमंच की एक छवि उभरकर आती है। लेकिन ‘लोक’ को भारतीय रंगमंच का पर्याय बनाने में हबीब तनवीर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। देखा जाए तो हबीब तनवीर ने शास्त्रीय रंगमंच की तकनीक […]Read More
एक दौर था जब जानकारी प्राप्त करने और मनोरंजन के सीमित संसाधन हुआ करते थे हम बच्चों के पास। एक टी वी चैनल, उसपर भी अत्यंत सीमित से कार्यक्रम, सीमित विज्ञापन। इंटरनेट किस चिड़िया का नाम, कुछ अता पता ही नहीं था। लेकिन इन सीमित संसाधनों के बीच वैचारिक स्तर पर, आत्मिक स्तर पर विस्तार […]Read More
रजनीश संतोष चर्चित ग़ज़लकार, कवि और लेखक हैं ।समसामयिक मुद्दों पर अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं ।.लोकतंत्र नुमाइश और लफ़्फ़ाज़ी की चीज़ न होकर समाज के चरित्र का हिस्सा हो तब ही ऐसे नज़ारे सम्भव हैं. लोकतंत्र न तो कोई व्यवस्था है और न नियम क़ानून. प्रधानमंत्री से लेकर व्यापारी, अधिकारी, किसान, मज़दूर […]Read More
रचना चौधरी कवयित्री और कहानीकार हैं । कोरोना से बचना एक हद तक संभव है शायद। किंतु इस कोरोना काल में अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरी बीमारी दबे पाँव पसर रही है , जिसका नाम है अवसाद! जिसके परिणामस्वरूपआत्महत्या या सामूहिक आत्मदाह जैसी घटनाएं घटित हो रही हैं। और परिस्थितियों को देखते हुए ये कहना […]Read More
डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक ,आलोचक,लेेेखक और बौद्ध दार्शनिक हैं । दर्शन के क्षेत्र में जो स्थान बुद्ध का है… राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान सम्राट अशोक का है…साहित्य के क्षेत्र में वहीं स्थान कबीर का है। हिंदी साहित्य के पहले इतिहासकार गार्सां द तासी ने 19 वीं सदी में कबीर के […]Read More
बुद्धिजीवी तथा प्रबुद्ध वर्ग– ‘बुद्धिजीवी’ तथा ‘प्रबुद्ध'(प्रज्ञावान या विवेकशील या Intellectual)इन शब्दों का प्रयोग करते समय हम सामान्यतः इनके वास्तविक अर्थ पर ध्यान नहीं देते और फिर हम जो कहना चाहते हैं,उसका पूरा का पूरा मतलब ही बदल जाता है।वस्तुत: ‘बुद्धिजीवी’ का मतलब है वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका बौद्धिक कार्य करके अर्जित करता है, […]Read More
तेज प्रताप नारायण अक्सर हम एक जाति को दुश्मन दूसरी जाति का मानते हैं ।यहाँ जाति मतलब caste ही नहीं बल्कि धर्म,मज़हब,स्त्री ,पुरुष ,पशु ,पक्षी ,देश जैसे प्राकृतिक और कृत्रिम विभाजनों को अलग अलग जाति का मान कर अपनी बात रख रहा हूँ ।जैसे स्त्री ,पुरूष को अपना दुश्मन मानती है ,एक कास्ट दूसरी कास्ट […]Read More
समाज में स्त्रियों की सामाजिक स्वतंत्रता तथा आत्मनिर्भरता की स्थिति लाने में उनकी आर्थिक स्वतंत्रता का बहुत बड़ा योगदान है | फाइनेंसियल फ्रीडम अपने आप में एक वृहद् विषय है | और उसका सम्बन्ध व्यक्ति की फाइनेंसियल कंडीशन की सुदृढ़ता की एक स्थिति से है , किन्तु यहाँ पर स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता का तात्पर्य […]Read More