आलाकमान के आत्मघाती फ़ैसलों से ज़मीन खोती कांग्रेस :::जगन, सिंधिया और सचिन की कहानी
कानपुर के युवा कवि और कथाकार विक्रम प्रताप सिंह का लेख ।ज़िन्दगी सियासत के शामियाने में और टेम्पो हाई है इनकी बहुचर्चित किताबें हैं ।
ये लेखक के अपने विचार हैं ।
2009 का दौर था, मेरा आशियाना हैदराबाद में था। उसी दौरान लोकसभा चुनाव हुये। आँध्रप्रदेश में काँग्रेस का बोलबाला रहा, जहाँ तक मुझे याद है 45 में 42 सीट काँग्रेस की झोली में आयी। काँग्रेस की भारी जीत का श्रेय मुख्यमंत्री YSR के हिस्से आया। आना भी चाहिये था, YSR बेहद लोकप्रिय थे। इस जीत से YSR राष्ट्रीय स्तर पर जाने गये। ख़ैर समय गुजरा सितम्बर का महीना काल बनकर आया, नल्ला-मल्ला की पहाड़ियों में। YSR का हेलिकॉप्टर ग़ायब हो गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण अटकलों का बाज़ार सजा। देश का सबसे बड़ा सर्च ऑपरेशन लॉंच हुआ।
YSR का हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था। YSR नहीं रहे, खबर आम होते ही आँध्रप्रदेश में कोहराम मच गया।कथित तौर पर सैंकड़ों लोगों ने आत्महत्या कर ली। उस समय के अख़बार यही लिखते थे। YSR के जमीदोश होते ही हैदराबाद में सियासत धधक उठी। मुख्यमन्त्री पद के बड़े दावेदारों में शुमार थे YSR के पुत्र ‘जगन मोहन रेड्डी’ YSR के समय भी युवाओं के बीच जगन लोकप्रिय थे। उस समय कड़प्पा से सांसद भी थे शायद। दूसरे दावेदार थे किरण रेड्डी।
तमाम दावों और दावेदारों के बीच काँग्रेस आलाकमान ने जगन और किरण दोनों किनारे कर दिया। उस समय के सबसे बुजुर्ग ‘के रोसैया’ की ताजपोशी कर दी।
यहाँ आलाकमान ने भारी गलती कि और अपनी आत्महत्या की पटकथा लिखदी। जगन बाग़ी हुये, सड़क घूमे लोगों से मिले। काँग्रेस ने जगन को इसकी सजा दी, तमाम मुक़दमे लगा कर उन्हें जेल में बन्द रखा एक अरसे तक। आज लगभग 10 दस बरस बाद जगन सूबे मुख्यमन्त्री है। काँग्रेस
उसी सूबे में ख़त्म हो चुकी है। कोई नामलेवा नहीं बचा। जगन आगे भी मुख्य धारा में रहेंगे। काँग्रेस आसार नहीं दीखते।
जगन के मामले में दोहरे मानदण्ड दिखे, जहाँ राहुल युवराज हुआ करते थे भावी प्रधानमंत्री के दावेदार दीखते थे वहीं जगन के मज़बूत दावे की नकार कर आलाकमान ने पार्टी को गर्त में ढकेल दिया।
यही चरित्र मध्यप्रदेश में और फिर राजस्थान में दोहराया गया। चुनावों के बाद ऐसा लगा की एम॰पी॰ में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट की ताजपोशी होगी। पर फिर से आलाकमान अपना आला लटकाये नयी बॉटल में पुरानी शराब भर गया। और वहीं से बेड़ा गर्क होने की शुरुआत हुई। आज के हालात कोई भी रणनीतिकार इन्ही दोनो युवाओं को मुख्यमन्त्री बनाने की बात करता। पर आलाकमान कमान खींचे फिरता रहा।
दोनो युवा नेता काबिल है, भविष्य दीखता उनमें ख़ासकर सचिन पायलट। पर आलाकमान ने एक बार आँध्रप्रदेश वाला एपिसोड दोहराया। आने वाले समय में दोनों प्रदेशों में मुख्यधारा में रहने के लिये काँग्रेस की संघर्ष करना पड़ेगा। कोई बड़ी बात नहीं की विलुप्तप्राय हो जाये।
ये ऐसी रणनीतिक ख़ामियाँ है जो अस्तित्व संकट में का सकती है। पर दिल्ली से राजनीति करने वाले दस जनपथ के भरोसेमन्द सब गुड़ गोबर किये है। दिल्ली से भेजे जाने वाले आलाकमान के प्रतिनिधि ज़मीन पर है ही नहीं। कोई जनाधार नहीं। पर बड़े निर्णय लेते है, यह चरित्र आत्मघाती है।
नोयड़ा में जहाँ रहता हूँ यहाँ से 2-3 KM की सीमा में एक गाँव है वैदपुरा, सचिन पायलट के पिता और क़द्दावर नेता राजेश पायलट यही के मूल निवासी थे। राजनीति में उनका चढ़ाव ज़मीन से हुआ। एक समय आंतरिक सुरक्षा राज्यमन्त्री रहते हुये उन्होंने चन्द्रास्वामी को गिरफ़्तार कर सियासी भूचाल ला दिया था। सचिन भी उसी क़द के नेता है। महत्वाकांक्षाए ज़ाहिर है। पर उन्हें किनारे लगाया गया।
सचिन और ज्योतिरादित्य के साथ काँग्रेस ने अपनी ज़मीन काट ली। अगर गलती सुधरी तो समझिये की अमेठी की तरह काँग्रेस देश से जायेगी। अगले चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी होने पर ख़तरा मँडरा उठेगा।
काँग्रेस की आलाकमान सनद रखे की राजा बिना सिपहसलारों के अदना हो जाता है, बस नामभर का।