गंगवार तो साथी है अपना जितवा दो या ठुकरा दो(संस्मरण-5)

ये संस्मरण ,यू पी के पूर्व मंत्री चेतराम गंगवार के बारे में है जो उनकी बेटी विमलेश गंगवार ‘ दिपि ‘ द्वारा लिखा गया है जो एक सुप्रसिद्धि लेखिका हैं ।

दिन और महीने बीत गये इन्तजार करते करते थक गये पर इस्तीफा ज्यों का त्यों पड़ा रहा किसी ने हाथ ही नहीं लगाया ।मतलब मंजूर नही किया ।पिता जी अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर पचपेड़ा जा चुके थे ।
अम्मा और दादी श्री मती शांति देवी जी को पिता जी पर गुस्सा आने लगी थी ।
अरे जब वह इस्तीफा मंजूर नहीं कर रहे हैं तो क्या घर में पड़े रहोगे … जाओ लखनऊ ….कुछ काम धाम करो ।सरकार से नाराजगी है तो जनता के काम करो विधायक तो उन्हीं ने बनाया है । सामान लेकर फिर वापसी हो गई 1,कालिदास मार्ग , लखनऊ में उसी सरकारी आवास में
नैतिकता पूर्ण सभी काम काज चलते रहे ।सरकार के भी और जनता के भी ।पर वह बात नहीं रही जो पहले हुआ करती थी ।मन उदास रहता था ।अपने नबाव गंज वालों से दिल खोल कर बात करते सुना था मैंने यह लोग क्यों नहीं इस्तीफा स्वीकृत कर लेते हैं ।मुसीबत में डाले हैं मुझे ।वे सम्भ्रान्त लोग कहते कि शान्त रहो तनाव में काम मत करो तसल्ली से काम करो ।
अब दिन बीत गए और चुनाव का समय आ गया शायद 1980 का समय था वह ।टिकट बट गये ।इनका नाम गायब । इनके ही एक रिश्तेदार को कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रत्याशी बनाकर उतार दिया गया ।
इस खबर को सुनकर पिता जी तो कम नबाव गंज अतिशय शोकाकुल हुआ।क्रोध की चिंगारियो ने नहीं अपित ज्वालाओं ने वातावरण को दग्ध कर दिया ।
पिता जी ने सपरिवार सामान बांधा और फिर हमेंशा के लिये पच पेड़ा आगये ।
अब यह तो घर में सो रहे थे ।नबाव गंज रात और दिन जाग रहा था ।रोज 50 /100 शुभ चिंतक घर आने लगे ।चौका अम्मा और दादी के वश में नहीं रहा तो उन दिनों मिनी हलवाई की व्यवस्था कर ली गई ।सैकड़ों की तादाद में खाना नाश्ता बनने लगा ।
यह सब सप्ताह भर चलता रहा पर पिता जी ने सबको हजारों समस्यायें बता दी ।बेटियों की शादी करनी है ।जमीन बन्जर हुई जा रही है वह ठीक करनी हैं ।बटाई पर न देकर अपनी देखभाल में खेती करवानी है आदि आदि
एक दिन सुबह सुबह चमरौआ मुझैना टहा रतना नन्दपुर अटंगा हरहर पु र अहमदाबाद नबाव गंज सेंथल फैजुल्ला पुर हरदुआ हाफिज़ गंज गुरगांव लामीखेड़ा चन्दुआ रिछोला चौधरी और दूसरा रिछोला ताराचंद कृष्ना पुर आदि गाँवों के तमाम बुजुर्ग लोग सलाह करके एक साथ आ गये । यह तो इन्होंने सोचा ही नहीं था यह बुजुर्ग लोग आ जायेंगे ।
पिता जी अन्दर से बाहर बैठक में आगये और बिना कुछ बोले कई मिनट तक हाथ जोड़े खड़े रहे ।
एक सज्जन आगे बढ़ कर बड़े गुस्से में बोले
तो क्या तुम चुनाव नही लड़ोगे
चच्चा आप बैठ जाओ पहले ।और सब लोग भी बैठ जाओ ।पिता जी बोले ।
वह बोले हमें फुरसत नहीं है बैठने की तुमने हमारे बुढ़ापे की भी नहीं सोची ।यह पूछने आये हैं कि तुम चुनाव लड़ोगे कि नहीं
यह घर के सेवकों को पुकारने लगे ……..राम पाल ईश्वरी गंगा देई पानी लाओ चाय बनवाओ और फिर भोजन का इन्तजाम कराओ ।
वह सज्जन फिर चिल्लाये ।अरे चेत राम हमें पानी नहीं पीना ।बताओ चुनाव लड़ोगे या नही सभी लोगों ने चिल्ला कर एक ही सवाल पूछा ।
यह बेचारे अकेले पड़ गये और वह लोग बे लोग थे जिनका कहा यह टाल नहीं सकते थे ।
लड़ेंगे चच्चा चुनाव लड़ेंगे । जरूर लड़ेंगे ।
विना चुनाव लड़े ही पचपेड़ा जिंदाबाद के नारों से गूंजने लगा । शेष आज शाम को या कल …..l

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