डॉ अनुराधा ओस की कविताएँ
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1..हल की धार को याद कर लेती हूँ–
बहुत पहले मां ने
कहा था कि
कुछ बनाते समय
उसको याद कर लेना चाहिए
जो उस काम को
अच्छे से करता हो
तो मैं
खाना बनाते समय
माँ को याद कर लेती हूँ
जिंदगी की कड़वाहट कम के लिए
पानी को याद कर लेती हो
जिंदगी को समतल बनाने के लिए
हल की नुकीली धार को
और दुःख को हराने के लिए
समुद्र को
काँटे हटाने के लिए
हंसिया और दराती को
उधड़ी सीवन ठीक करने के लिए
पेड़ की छाल को
कतरन -कतरन जोड़ कर
तुरपाई करने के लिए
मकड़ी को याद करती हूँ
मन की बर्फ पिघलने के लिए
कुम्हार के आंवा को।
2.गिलहरी के चावल–
आती है सर्र से
किसी हल्की आहट से
भागती है सर्र से
रसोई में रखे चावल
की गंध खींचती है तुम्हे
वैसे ही जैसे
बुद्ध को ज्ञान
जैसे धरती को पानी
एक मुट्ठी चावल
रोज धर देती हूँ
तुम्हारे लिए
अपना प्राप्य तुम्हे प्रिय होगा ही
चिड़िया के लिए
किसान जैसे छोड़ देता है
कुछ दाने खेतों में
जैसे तालाब बचा के
रखता है पानी
अपने आत्मीय के लिए
उसी तरह
कुछ कर्ज चुका देती हूँ तुम्हारा।।
कभी बतियाते हैं!
एकांत में गिरे
उस फूल से
जिसकी झड़ती पंखुरियों ने
बचाया है
न जाने कितनी मुस्कानों को
और चलना निरन्तर
उस चींटी की तरह
जिसकी जिजीविषा ने
न जाने कितनी बार
जीना सिखाया है
प्रकृति का दिया
उसे सूद समेत लौटाते हैं
जीवन से कुछ क्षण
बतायाते हैं
मूक रहकर
पर्वत की तरह ,बादलों को
लिखतें हैं पत्र
नाव के काठ की
तरह पानी-पानी
हो जातें हैं
फूल सी कोमलता
हो मन मे हमारे
जितना पाया धरा से
कुछ धरा को लौटाते हैं ।।
4.दवाई ढूढ़ लाते हैं……
समय की मार से
फ़टे जख्मों की
सिलाई हो सके जिससे
वो धागे ढूढ़ लाते हैं।
जहर पीकर धरा
मूर्छित पड़ी है आज
चलो शिव की जटाओं से
वो गंगा ढूढ़ लाते हैं।
पड़े हैं पाँव में छाले
सफर कब खत्म ये होंगे
भरेंगे घांव ये जिससे
वो दवाई ढूढ़ लाते हैं।
न कोई रोग हो
घृणा और द्वेष भी न हो
सबक हो प्यार का जिसमें
वो पढ़ाई ढूढ़ लातें हैं।
अंधेरा ढंक रहा है अब
चमकते चाँद तारों को
धुलेगा आसमां जिससे
वो सूरज ढूढ़ लाते हैं ॥
12 Comments
नमस्कार मैम,
बहुत ही गहराई होती है आपकी रचनाओं मे।
पढ़कर एक अजीब सी शांति का अहसास होता है।
ऐसी शांति जिसकी तलाश हर किसी को हर वक्त रहती है। मै आपको हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देती हूँ आप ऐसे ही दिल को छूने वाली रचनाएँ हम सबके लिए लिखती रहें।।
धन्यवाद
शाहाना परवीन…✍
बहुत धन्यवाद शहाना जी
शहाना जी बहुत -बहुत धन्यवाद
नमस्कार मैम,
बहुत ही सुंदर कृति है। हमारे जीवनशैली की सुंदरता का इतना सुंदर वर्णन एक कवि की लेखनी ही कर सकती है..ये रचनाये हमे अपनी जड़ों से जोड़ती हैं तथा आनंद कीअनुभूति भी देती हैं।
किस तरह से जीवन के अनेकों उतार चढ़ाव से होते हुए हम आगे बढ़ते हैं….
आपको अनंत शुभकामनाएं और लेखनी को स्नेह….
बहुत ही मार्मिक और सजीव रचनाएं..
सभी को मैंने देखा पढ़ाई किया… बहुत ही अच्छा लगा… मुन्नी बेटी को अनंत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाइयाँ और आशीर्वाद
अनुराधा ओस की कविताओं में कुदरत और कुदरती भावनाओं की बहुलता रहती है। वे न तो गम्भीर भाषा अपनाती हैँ न ही कोई कठिन शिल्प का प्रयोग करती हैं।
मैंने सारी रचनाओं को देखा और पढ़ाई की.. बहुत ही सजीव और रोचक.. सामयिक.. बहुत ही अच्छी लगी और समाज के लिए अत्यंत उपयोगी… इसी तरह से कविता लेखन में आप और आगे बहुत आगे जाओ…. बहुत बहुत शुभकामनाये और आशीर्वाद मेरी तरफ से
बहुत ही बढ़िया लिखी हैं कविताएं दीदी ! ढेर सारी शुभकामनाएं आपको !
सभी को बहुत बहुत आभार रचना पसन्द करने हेतु ,सादर अभिनन्दन
सुंदर! प्राकृतिक गंध से सनी कविताएँ! बधाई।
डॉ अनुराधा ओस जी की कविताएं समाज के सहज, सरल वातावरण से निकल कर मुद्दों का गहन, बारीक, संवेदनशील वर्णन करती हैं आपकी कविताएं विद्रोही नारा ना होकर , चुपके से समाधान की राह दिखा जाती हैं।
गिलहरी के चावल, हल की धार को याद कर लेती हूं सहित चारों कविताएं अपने कहन के आलोक में अथाह संसार समेटे हुए हैं
सरल और प्रवाहमय भाषा मे आप अपनी बात पाठक तक पहुँचाने मे सफल है। आपकी कविता जितनी सरल है उनमे उतनी ही गंभीरता है। बहुत उम्दा कविताएँ। बहुत बहुत बधाई