डॉ.हरेराम सिंह की कविताएँ
रोहतास ,बिहार के डॉ हरेराम सिंह भोजपुरी और हिंदी के कवि हैं ।इनकी अब तक बीस किताबें प्रकाशित हो चुकी हैैं ।।
【 जादू 】
दुनिया कितनी जल्दी बदल जाती है,
प्रेमिका के अधर कितना जल्द बता देते हैं।
जब कोई दोस्त दगा करता है,तो भी पता चलता है,
जब अनजाना व्यक्ति हाथ बढाता है,तब भी पता चलता है,
दुनिया रोज बदलती है ,जादू की तरह
और खूबसूरत लगती है गुलमोहर फूल की तरह,
पर,जब आप रोते हो और कोई चुप कराने पास आता है,
तब ऐसा लगता है-कोई तो है जिसे अब अपना कह ,
इठला सकता हूँ ।
【रब से मांग लो】
मांगना है रब से तो मांग लो मुहब्बत,
ताकि यह सनद रहे कि मैंने भी कुछ मांगा है,
और क्या मांगा है लोग सुनते ही कह दें
कि क्या आदमी है!
जो न मांग रहा है धन,न दौलत,न घर,न द्वार,
मांगा है तो सिर्फ मुहब्बत!
जो सबके लिए उतनी ही जरुरत है जितना मेरे लिए,
जिसे हर जाति,हर कौम पाकर निहाल हो जाती है,
वह है मुहब्बत, और रब से इसे ही हमें पाना है!
【दो कमरों की चाह】
कितने पापड़ बेलने पड़े
कि जीवन संवर जाए,
दो जून की रोटी नसीब हो जाए,
दो जोड़ी कपड़ा उपलब्ध हो,
कहीं आने-जाने के लिए आज के जमाने में,
एक मोटरसाइकिल हो,
पर,क्या हो पाए?
नहीं न!
फिर भी जाने कैसे परिवार वाले समझते रहे
कि बहुत माल कमाके रखा है,
अमीर होना चाहता है,
बस इतने पर कि एक तरकारी और बढ़ा दी,
दाल बनने लगी रोज,
और मैं आँख की किरकिरी हो गया,
सबके लिए,
कि अपने लिए कैसे खरीद ली,
आधा कट्ठा जमीन,
और कैसे बना लेगा,
इस दुनिया में निजी घर?
क्या इतना स्वार्थी होती है दुनिया?
कि एक झोपड़ी भी बनने नहीं देती,
फिर परिवार होकर,
वह कैसे सहन नहीं कर पाती परिवार का बनना,
कि किचरकांव रोज शुरु कर देती है,
कि दो कमरे की चाह ही मरने लगती है,
इतना हो हल्ला मचा देती है
समाज में,
कि बेईमान है,
तभी तो कर रहा अलग अपनी व्यवस्था?
और इसकी स्वीकृति में दुनिया हिला देती है गर्दन,
और इस गर्दन हिलाने की प्रक्रिया में,
खुद की गर्दन उखड़ क्यों न जाए,
पर गर्दन हिलाना नहीं छोड़ती दुनिया!
.