प्रेमचंद को याद करते हुए

तेज प्रताप नारायण

अब भी याद आ जाते हैं प्रेमचंद
उनका गबन और गोदान
उनका गोबर,होरी
धनिया ,झुनिया
माता दीन और सिलिया
मालती और मेहता
समाज की विषमता

होरी की एक गाय के लिए तड़प
ज़मीदार,महाजन और पुरोहित की आपसी एकता और झड़प
सत्ता और शासन के लिए फैलाया गया प्रदूषित विचार

साँस का जाम हो जाना
एक किसान की ज़िंदगी हराम हो जाना
सुबह से शाम पड़ता ग़ुलामी का कोड़ा
कभी ज़्यादा और कभी थोड़ा

चाहे 1935 का हिंदुस्तान हो
या आज का भारत और इंडिया
बहुत कुछ नहीं बदला
किसान फिसलता ही रहा
अब तक न संभला
ग़ुलामी ज़ारी है
शोषण की नित्य बीमारी है
पहले किसान गाय के लिए मरता था
आज भी गाय के लिए लोग मारे जाते हैं
पहले किसान दीन हीन थे
आज भी ग़रीबी से पहचाने जाते हैं
गोदान, किसान से मजदूर बनने की कहानी है
और वही खेल आज भी जारी है

प्रेम चंद!
तब भी चंद लोग प्रेम करते थे
आज भी वैसा है
तब भी समाज नहीं शर्मिंदा था
आज भी नहीं शर्मिंदा है
ज़मीर मर चुका है लेकिन
इंसान फिर भी जिंदा है ।

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