भारत की जर्जर अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय द्वंद

स्तम्भकार:दिनेश कुमार सिंह

यह लेखक के अपने विचार हैं

करोना एक दैवीय आपदा है इसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता!मगर सरकार की अदूरदर्शिता इस आपदा से उत्पन्न आर्थिक अब्यवस्था के लिए जरूर जिम्मेदार है!देश बहुत ही कठिन आर्थिक दौर से गुजर रहा है ऊपर से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तनाव , चीन की धमकी और अमेरिका का दादागिरी वाली ऐठ।
अमरीका और इकसठ यूरोपीय देशों के साथ मिलकर कोरोना के उद्गम स्थल चीन के विरुद्ध रिव्यू की सहमति देना भारत को भारी पड़ रहा है ।

हालिया सीमा विवाद इसी का नतीजा है । दूसरा महत्वपूर्ण कारण मोदी सरकार का ट्रेड वार में चीन के विरुद्ध अमरीका का साथ देना है ।

मोदी सरकार चीन अमरीका ट्रेड वार की असली वजह को नहीं समझ कर चीन के विनिर्माण क्षेत्र को अपने देश में लाने के लोभ में भारत ने चीन को भड़का दिया है ।

उसके पहले, विदेशी कंपनियों के द्वारा भारत में निवेश की शर्तों को अमरीका के इशारे पर बदल कर भारत ने पहले ही चीन को भड़का चुका है ।

मोदी सरकार यह समझने में असमर्थ रही कि चीन से उठकर अधिकांश निर्माता भारत जैसे देश में कभी नहीं आएंगे । कारण स्पष्ट है । विदेशी पूँजीपति इतने मूर्ख नहीं होते कि उस देश में जाएँ जहां सरकारें सांप्रदायिक दंगे करवाती हो और आम जनता के जीने के अधिकार के भी ख़िलाफ़ हो ।

कोरोना रोकने के नाम पर, बग़ैर आमराय बनाए, किए गए दुनिया के सबसे सख़्त लॉकडाउन ने सामाजिक ताने बाने को छिन्न कर मज़दूरों को पूरी तरह से भिखारी बना दिया हो ।

संविधान और क़ानून की धज्जियाँ उड़ाकर श्रम और फ़ैक्ट्री क़ानूनों में संशोधन को भी पश्चिमी जगत बुरा मानता है।

मोदी सरकार को इतना भी नहीं मालूम कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम क़ानूनों को नहीं पालन करने वाली संस्थाओं और फ़ैक्टरियों के माल , सेवा या उत्पादों को यूरोप और अमरीकी कंपनियाँ नहीं खरीद सकती । उनके अपने देश का क़ानून ही इसके विरुद्ध है । यही कारण है कि अज़ीम प्रेमजी और कई अन्य उद्योगपतियों ने इन बदलावों का विरोध किया है । सेवा क्षेत्र और निर्माण क्षेत्र से जुड़ी ऐसी इकाइयाँ जो निर्यात पर निर्भर हैं, वे इसलिए इन बदलावों के ख़िलाफ़ हैं ।

एक तरफ़ ये सरकार विदेशी उद्योगपतियों को निमंत्रण दे रही है और दूसरी तरफ़ ऐसे क़ानून बना रही है जिनके चलते यहाँ कोई आ ही नहीं पाएगा ।

धीरे धीरे जब बात समझ आई तो एक तरफ़ अपनी सरकार के श्रम मंत्रालय से और श्रमिक यूनियनों से इन बदलावों का विरोध करवाया गया और दूसरी तरफ़ आत्मनिर्भरता का राग शुरू किया गया । चेहरा बचाने के लिये ये ज़रूरी था ।

अब सरकार बुरी तरह से फंस चुकी है । शहर और औद्योगिक, विनिर्माण क्षेत्र मज़दूरों से ख़ाली हो गए । जीडीपी गोता खा
गई है। कोरोना कॉंट्रोल नहीं हुआ और मध्यम वर्ग भी तबाह हो गया ।

अब भी अगर सरकार सोचती है कि सप्लाई साईड इकोनोमिक्स और क्रोनी कैपिटलिज्म के सहारे टिकी रह सकती है , तो वह स्वप्नों की दुनिया में जी रही है । पिछले साल ही जानकारों ने कहा था कि अपनी ग़लत आर्थिक नीतियों के चलते यह सरकार पाँच साल नहीं पूरा कर पाएगी। आज वह सच होता दिख रहा है ।

चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार की असली वजह बता दूँ । इसकी असली वजह है चीन द्वारा विकसित सेमी कंडक्टर तकनीक है, जिसके बगैर उद्योग में 5 जी तकनीक का प्रयोग संभव नहीं है । साधारण भाषा में यह रोबोट के ज़रिए खानों और फ़ैक्टरियों में काम करने की तकनीक है । चीनी कोयला खानों में इसके सफल प्रयोग के बाद वहाँ की फ़ैक्टरियों में भी इस तकनीक का सफल परीक्षण किया गया । जापान, यूरोप और अन्य देशों में इसकी भारी माँग से अमरीका बौखलाया हुआ है । इसलिए, कोरोना के बहाने चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए वह दुनिया पर दवाब बना रहा है ।

गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने भी कृत्रिम बौद्धिकता की दिशा में बहुत काम किया है, लेकिन जब उन्होंने देखा कि इस प्रक्रिया में रोबोट अपने आप ही समस्या और उसके समाधान ढूँढने लगे तो उन्होंने इस प्रयोग को रोक दिया ।

चीन यहीं पर बाज़ी मार गया और अमेरिका को अपदस्थ कर एक मात्र महाशक्ति बनने की राह पर चल पड़ा । उसे रोकना अब नामुमकिन है । अमरीका ने भारत के आत्म मुग्ध शासक को बड़ी चालाकी से भारत के ही खर्च पर चीन के विरुद्ध उलझा दिया । यही हासिल रहा नमस्ते ट्रंप का ।

ख़ैर, चीन भारत युद्ध नहीं होगा । डिप्लोमेसी की भाषा में चीन जो सीमा पर अभी कर रहा है उसे बन्दर घुड़की कहा जा सकता है ।

सिर्फ़ एक ही हालत में युद्ध हो सकता है, अगर चीन, मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की ठान ले तो । सवाल ये है कि क्या चीन अमरीका के साथ-साथ भारत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलना चाहेगा ?
मुझे नहीं लगता ।

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