भावना सिंह ‘भावनार्जुन ‘ की कविताएँ

भावना सिंह “भावनार्जुन”
लेखिका व साहित्यकार ।।
एम.एस.डब्ल्यु. लखनऊ विश्वविद्यिलय .
लखनऊ
।।

“खुद की स्याही से ” काव्य संग्रह’
“स्वयं प्रवाह ” काव्य संग्रह
रवीना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं ।
इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्र मे एक स्वतन्त्र लेखक के रूप मे हमारे लेख व कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं ….।।

             【गंगा के घाटों पर 】

“गन्दगी के कितने पनाले जुडे़ –
और गंगा की सफाई के हैं लाले पड़े ।।

आदमी की नियत –
गंगा की सेहत ,
दोनों हैं बिगड़ी ,
न परवाह करने वाला है कोई –
और न फिक्र है किसी को ,
बस स्वार्थ और लोभ की –
पक रही है खिचड़ी ।।

गंगा के घाटों पर –
जुट रहीं करोड़ो की भीड़ है ,
घुट रहा है दम –
टूट रहीं पवित्रता की रीड़ है ।।

मची है हापा -धापी –
घबराये से हैं सारे पापी ,
घाट-घाट का पानी पी वो –
गंगा के घाट पर पहुंचे हैं ।।

मल से मैला मन वो लेकर –
मल-मल कर नहाते हैं ,
सीधी-साधी गंगा में जाकर –
पाप सारे धो आते हैं ।।

इतना तो बोध है –
कि पाप एक बोझ है ,
पाप धोना सभी चाहते हैं-
मुक्त होना सभी चाहते हैं ।।

पर –
पाप करना नहीं छोडे़गें –
लिप्त होना नहीं छोड़ेगें ।।

इंसानियत तार-तार –
विवेक हुआ क्षीण है ,
चारों ओर दिख रही –
बस भीड़ ही भीड़ है ।।

वो बार – बार जाते हैं –
हर बार नहाते हैं ,
लौट कर दोबारा –
उन्ही गलियों में खो जाते हैं ,

फिर पाप कमाते हैं –
फिर धोने आते हैं ।।

परमात्मा की भावना –
देखे सब तमाशा है ,
हर आत्मा के भीतर –
मुक्ति की पिपाशा है ।।

देखो इस संगम का हर दृश्य –
है बड़ा ही विहंगम ।।

परमात्मा की भावना –
देखे सब तमाशा है ,
हर आत्मा के भीतर-
मुक्ति की पिपाशा है ।।

गन्दगी के कितने पनाले जुड़े –
और गंगा की सफाई के हैं लाले पड़े।।”

【आप सूर्य हम किरणें आपकी 】

“निष्कपट व्यवहार –
निर्मल निश्छल प्यार ,
जैसे कोई अभेद् सी दीवार –
जो है सम्पूर्ण सुरक्षा का सार ।।

तपती गर्मियों को –
बगैर पंखे के गुजारते देखा ,
पूरी शिद्दत से हम बच्चों के लिये –
जीवन के साधन जुटाते देखा ।।

न जाने कितना बोझा –
अपने कांधों पर उठाते देखा ,
हर बार हमने आपको अपना –
सर्वस्व लुटाते देखा ।।

शब्द कहां से लाऊँ –
भावनाओं को व्यक्त कैसे कर पाऊँ ,
‘पापा ‘ सीमाओं के पार तक –
मेहनत का पसीना बहाते देखा ।।

अपनी परवाह किये बगैर –
बस काम में जुटे देखा ,
गल्तियां क्यों निकालें –
मोर्चे पर आपको बस डटे देखा ।।

साइकिल के पहिये मार-मार –
सड़को को नापते देखा ,
फटी हुई उन चादरों से –
इज्जत को ढ़ापते देखा ।।

समस्यायें तो बे-हिसाब थीं पर -आपको हारते कभी नहीं देखा ,
एक समर्पित भाव से आपको –
खुद को मिटाते देखा ।।

आपके दोनों कांधों पर –
अपने भाई संग बैठ ,
भीड़ में सबसे ऊपर उठ –
राम की बारात को जाते देखा ।।

रोज सुबह नहा-धोकर –
आपकी पालथी में बैठ कर –
हृदय में भक्ति को बोना सीखा –
हाँ पापा आपसे हमने –
जीवन को जीना सीखा ।।

कर्तव्यों के निर्वाहन में –
आपमें राम को जागृत होते देखा ,
आने की महज आहट में ही –
अनुशासन को सजते देखा ।।

बेफिक्री से समस्याओं को थामते देखा-
हालात कैसे भी हों हमने ,
वनवास में राम की तरह –
आपको शिद्दत से मुश्कराते देखा ।।

गल्तियां मर्यादापुरुषोत्तम से हो गई-
दाग तो चाँद में भी नजर आ जाता है,
सम्पूर्ण सिर्फ परमात्मा होता है –
मेरे लिये सोलह कला सम्पन् हमारे पिता हो तुम ।।

अगर आँसू कभी आँखों में –
छलकें जो आपके ,
तो सुख के हों , खुशियों के हों –
गर्व के हों ,उत्सव के हों ।।

मैं मूर्ख कभी झगड़ती हूँ आपसे –
लेकिन सच तो ये है कि –
आपसे अच्छे दूसरे पापा –
हो ही नहीं सकते ।।

आपके आशीष में –
परमात्मिक तासीर है ,
आपकी जिन्दगी साक्षात –
एक नजीर है ।।

आपके हाथ –
सुरक्षा का छत्र हैं ,
स्वंय परमात्मा द्वारा लिखा हुआ-
जैसे सुगन्धित कोई पत्र हैं ।।

शायद पिछले जन्मों का ये –
कोई पुण्य प्रताप है ,
कि आपके जैसे पिता का मेरे –
सिर पर रक्खा हाथ है ।।

खींच कर गड्ढों से जिन्दगी को –
आसमां पर सजाते देखा ,
हराकर मुश्किलों को –
चमत्कार सा झिलमिलाते देखा ।।

सुगमता से चले जीवन –
अब न कोई व्यवधान मिले ,
आये कोई समस्या अगर तो –
तुरंत उसका समाधान मिले ।।

आप सूर्य हम किरणें हैं आपकी –
आप वृक्ष हम शाखा हैं आपकी ,
मेरे हर विचार में थाप है आपकी –
मेरे व्यक्तित्व में निखरती सी आभा है आपकी ।।

हाँ पापा हमने आपको –
अपना सर्वस्व लुटाते देखा ,
हर वक्त बस जीवन का –
सामान जुटाते देखा ……..।।”

【जनसंख्या -नियन्त्रण 】

“कुछ भ्रष्टाचार और शोषण से –
कुछ बेशुमार प्रदूषण से ,
कुछ मर जायेंगे भूख से –
कुछ जेठ की धूप से ,
कुछ हाड़कपांती पूस की ठंडी में –
जो बच भी गये तो चौमास –
उन सबके लिये हैं बड़े खास ।।

कुछ डूब के कुछ बह के –
कुछ प्रकृति का कहर सह के ,
नदियां बेचैन पहाड़ जर्जर हो गये –
कहीं धरा खिसक रही –
कहीं बादल फट रहे –
प्रलय का आलय –
शैलाब में सब हो रहा विलय ,

बारिश के बाद की बीमारिया़ं-
उन्हें छोड़ेंगीं कहां ?
बच्चों से लेकर बड़े तक –
सब मौत के निशाने पर हैं यहां ।।

समस्यायें उफन रहीं –
कहां बचा समाधान है ??
जिन्दगी हार रही –
सब मौत का विधान है ।।

बाकी बो दिये हैं हमने –
तमाम जहर के बीज भी ,
धर्म-जाति, भेद-भाव ,
और ऊँच -नीच भी ।।

कौन कहता है –
जनसख्यां नियन्त्रण कानून की –
आवश्यक्ता है यहाँ ??
एक दूसरे को मिटाने पर सब अमादा हैं यहाँ ।।

कहिलों की रीढ़ यहां बेकार है –
जाहिलों की भीड़ यहां तैयार है ,
बेरोजगारी बेहिसाब दुश्वारी –
गिरती अर्थव्यवस्था की मन्दी भी है जारी ।।

और भी बहुत से कारण मौजूद हैं –
जनसंख्यां नियन्त्रण के –

कभी चमकी बुखार –
कभी बेबसी की मार ,
कभी मजबूरियों का प्रहार –
कभी सपनों की
और भी बहुत से कारण मौजूद हैं –
जनसंख्यां नियन्त्रण के –

कभी चमकी बुखार –
कभी बेबसी की मार ,
कभी मजबूरियों का प्रहार –
कभी सपनों की हार –

उमड़ता विषाद –
बढ़ता अवशाद ,
तनाव हो रहे मुकम्मल –
आत्महत्याओं में देश हो रहा अव्वल ।।

बिखरती गंदगी बढ़ता प्रदूषण –
हर तरफ है शोषण ,
खान-पान में मिलावट –
हर दिल में है घबराहट ।।

नई-नई बीमारियां –
चुनौतियां और दुश्वारियां,
आपको लगता है –
कोई जी सकेगा यहां ??

हर तरफ बस बातों के बताशे हैं-
बिखरे पड़े जिन्दगी के तमाशे हैं।।

कह़ी आबरू लुट रही –
कहीं जिंदगी घुट रही ,
सपनों की दुकाने सिमटने लगी हैं –
मौत जिंदगी से निपटने लगी है ।।

अनिश्च्तताओं ने सुकून को छीन लिया है –
अनियमितताओं ने चैन को निगल लिया है ।।

और देखो टूटी-फूटी सब सड़कें हैं –
एक दूसरे को सब झिड़के हैं,
यातायात का कोई नियम नहीं –
जल्दी में हैं सब कोई किसी से कम नहीं ।।

दुर्घटनाओं का पूरा जाल बिछा है-
जैसे मौत का काल रचा है ,
मानसिकतायें सारी दूषित हैं –
बच्चे सब कुपोषित है ।।

जीना हुआ कम रोज –
मरना यहां जारी है ,
हर कदम पर देखो कैसी –
दुश्वारी है ।।

पूरा प्रायोजन ही इस बात का है –
कि आदमी जी न सकेगा ,
फिर परिवार नियोजन की –
क्या आवश्यक्ता है ।।

और भी बहुत से कारण मौजूद हैं –
जनसंख्या नियन्त्रण के ,
और भी बहुत से कारण मौजूद हैं –
जनसंख्या नियन्त्रण के ……….।।”

प्रेम

“प्रेम सिर्फ सच्चा ही होता है –
जो झूठा होता है वो कुछ और ही होता है ,प्रेम नहीं ।।

प्रेम पारदर्शी होता है
ऐक दम स्वच्छ ऐकदम निर्मल
प्रेम सरल होता है
प्रेम तरल होता है
धीरे धीरे भीतर भीतर
उतरता चला जाता है
सहज ही गहराई में समा जाता है
असीम सौन्दर्य से परिपूर्ण
बस सुकून ही सुकून
प्रेम जिसे भी हो जाये
वो इस दुनिया का नहीं रह जाता है
वो किसी और ही दुनिया का बासिंदा हो जाता है
क्योंकि ये दुनिया प्रेम करने वालों के लिये बनी ही नहीं है
यहाँ प्रेम को सबकी नज़रों से बचाना पड़ता है
उसे सबसे छिपाना पड़ता है
अगर जरा भी भनक लग गई किसी को
तो सब के सब इस प्रेम को खत्म करने पर
उसे मिटाने पर अमादा हो जाते हैं

इस दुनिया में तो छल है
कपट है दिखावा है
सब कुछ नकली है यहाँ
सब कुछ बनावटी है यहाँ
प्रेम एक अनुभूति है जो
भीतर से उठती है और
भीतर तक समा जाती है
जब प्रेम पनपता है
तो एक अनन्त विस्तार को पाता है
इसका न आदी नजर आता है
न अन्त समझ में आता है ………।।”

【हर पुत्र शिवाजी बना देना 】

” बिगड़ रहा महौल है –
उड़ रहा मखौल है,
हो रहा चरित्र हनन –
करना होगा गहन मनन ।।

बनकर झांसी की रानी –
दोहरा दे फिर वही कहानी ,
तुझमें ममता की क्षमता –
है एक वीरांगना सी सानी ।।

आबरू के जो बने लुटेरे –
उनको सबक सिखाना होगा ,
अपनी सूझबूझ से अब –
एक नया समाज सजाना होगा ।।

उठाना होगा तुझको बीड़ा –
पुरूष चरित्र निर्माण का ,
शंख बजाना ही होगा –
भीतर के इंसान का ।।

क्योंकि तू ही है जननी –
अपनी हर एक औलाद की,
जो बढ़ रहा है व्याभिचार –
सबका करना है उपचार ।।

अब पालन पोषण के –
नये तरीको को अपनाना होगा ,
अपने सभी पुत्रों को –
नैतिकता से सजाना होगा ।।

सभी माँ-बहन और बेटी –
बड़ीं हों उम्र में या हों छोटी ,
सबका सम्मान वो करना सीखें-
पवित्र दृष्टी से सबको देखे ।।

छोटे-छोटे बालकों को –
प्रारम्भ से सब सिखाना होगा ,
नन्हें-नन्हे कदमों को –
सुन्दर पथ बतलाना होगा ।।

उनके व्यक्तित्व की हर ईट में –
संस्कारों का गारा भरना ,
बने सुसज्जित और सम्पूर्ण –
जैसे शीतल सा झरना ।।

जीवन के चाक पर अच्छे से जमा देना-
सधे हाथ की थाप से सुंदर आकार बना देना ,
बिखरी हुई माटी से उसे –
एक योग्य पात्र बना देना ।।

तेरे हाथों में अद्भुद शक्ति है-
तुझमें ममता की असीम भक्ति है ,
बस भीतर की जीजाबाई को जगाकर –
हर पुत्र को शिवाजी बना देना ।।

राम की मर्यादा घोल –
घुट्टी में चटा देना ,
न लांघें कोई लक्ष्मण रेखा –
ये पाठ उसे रटा देना ।।

हर द्रौपदी की वो लाज बचाये –
ऐसा कृष्ण सा सजा देना ,
एक-एक माँ बस फक्र करे –
सच्चा वो मर्द बना देना ।।

पटेल सी दूरदर्शिता –
बुद्ध सा धैर्य हो ,
अशोक सी जीवटता-
प्रताप सा शौर्य हो ।।

शास्त्री सा हो समर्पण –
सभ्यता संस्कृति की,
रक्षा की खातिर –
कर दे जो सब कुछ अर्पण ।।

ध्रुव सी भक्ति –
हनुमान सी शक्ति ,
विवेकानन्द सा विवेक –
अब्दुल कलाम सा हो वो नेक ।।

शुभ सौम्य संस्कारों की बूंद बूंद से –
उनका व्यक्तित्व सजा देना ,
रुच रुच कर करना पालन पोषण-
एक अटल अस्तित्व बना देना ।।

गूंध-गूंध आटे में नेक नियति –
मेहनत की आग में सेंक रोटी ,
डुबो-डुबो इंसानियत के साग में-
हर निवाला उनको खिला देना ।।

शालीनता भरी तहज़ीब के –
शस्त्रों को धारण करवा देना ,
सभ्य मानव बन जाने के –
सब शास्त्र उसे पढ़ा देना ।।

तू जननी है उसकी –
उसकी तू रचनाकार है ,
होना तेरे ही हांथों –
नव-निर्माण का स्वप्न साकार है ।।

दे उसको अद्भुद आकार –
कर जिम्मेवारी स्वीकार ,
अब करना ही होगा –
हर अनैतिकता का संघार ।।

दे धार -तू दे धार –
अपने कर्तव्यों को,
देश की पावन भूमि पर –
कर उपकार।।

जगाकर भीतर की माता को –
उनमें मनुष्यता के अकुंर उगा देना ,
बनाकर उसको दिव्य तेजस्वी –
नव-युग की दुदुम्भी बजा देना ।।

उनके कार्य गूँज गूँज –
शुभ – शंख ध्वनि प्रेषित करें ,
हर माँ का गौरव बढ़ता जाये –
हर कदम प्रखर प्रेरित करे ।।

तेरे हाथों में अद्भुद शक्ति है –
ममता की असीम भक्ति है ,
बस भीतर की जीजाबाई को जगाकर-
हर पुत्र को शिवाजी बना देना..
हर पुत्र को शिवाजी बना देना ..
हर पुत्र को शिवाजी बना देना ।। “

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