भाषाओं का हैंड शेक
तेज प्रताप नारायण
14 सितम्बर का दिन था। पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा था ,हर ओर हिंदी ,हिंदी ,भारत माँ के माथे की बिंदी हो रहा था।कहीं निबंध प्रतियोगिता हो रही थी ,कहीं चुटकुला सम्मेलन (कवि सम्मलेन)हो रहा था । पर हिंदी उदास थी और हो भी क्यों न ,वर्ष भर उपेक्षा झेलने के बाद एक दिन हिंदी दिवस की औपचारिकता बड़ी अज़ीब सी होती है ।
अन्य भाषाएं हिंदी को मुबारक़ बाद दे रही थी ।हिंदी भरे मन से सबको शुक्रिया कह रही थी लेकिन मन की उदासी को चेहरे से नहीं हटा पा रही थी ।
हिंदी को उदास देख कर अंग्रेजी ने पूछा ,”क्या हुआ हिंदी ! आपको तो आज खुश होना चाहिए ।”
“खुश होने का कोई कारण नहीं दिखता । अफ़सोस होता है ख़ुद पर ।”
“क्यों ?”
“आपको नहीं पता है क्या ?जो जले पर नमक छिड़क रही हो ।”
“आपकी उदासी का कारण ,मुझे कैसे पता होगा ?”
“कोई बात नहीं ।”
“आज 125 करोड़ लोग आपको याद कर रहे हैं ।आपको तो खुश होना चाहिए ।” अंग्रेजी ने माहौल हल्का करने का प्रयास किया ।
“मेरी उदासी और बर्बादी का कारण आप हो अंग्रेजी !” हिंदी भड़क उठी
अंग्रेजी शॉकड होकर बोली , “मैं कैसे?”
“बड़े आश्चर्य की बात है । एक तो चोरी और ऊपर से सीना जोरी ।”
“मतलब ,चोरी किसने की ।”
अन्य भाषाएँ तमिल ,तेलगू ,भोजपुरी आदि सब चुप चाप खड़ी थी ।
“तुमने !” हिंदी तुम पर उतर आई थी
अंग्रेजी शांत होकर बोली , “यह निराधार आरोप है ।”
“क्यों आपने मेरे पाठक नहीं छीने ।मेरे लेखको को बेरोज़गार नहीं किया ।”
“नहीं ,बिलकुल नहीं ।आपके लेखक कभी तर्क और विज्ञान के दायरे में लिखते ही नहीं ।उनका फोकस,धर्म ,आध्यत्म,तिलिस्म और परलोक की बातों पर अधिक रहता है ।अब जैसे जैसे विज्ञान फैलेगा तो लोग यह सब पढ़ना कम तो करेंगे ही ।”
“ऐसा कैसे ?”
“हिंदी ! आप ही बताइए ।हिंदी वालों ने विज्ञान,इन्जीनीरिंग में कितनी प्रगति की है ।कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की कितनी भाषाएं दी हैं ।कितना विज्ञान का साहित्य है । कितने अविष्कार किए हैं ।”
हिंदी के पास कोई उत्तर न था ।
“और हिंदी के कितने लेखक तर्क और विज्ञान के दायरे में ,कहानी,कविता और उपन्यास लिखते हैं ।”
“क्यों ?मेरे पास सूर,तुलसी,केशव ,घनानंद जैसे लेखक हैं ” हिंदी गर्व से बोली
“यही तो समस्या है हिंदी ,आप तुलसी को तो याद करते हो लेकिन कबीर जैसे वैज्ञानिक कवि को खंडन मंडन का कवि कहकर नकारते हैं ।”
भोजपुरी ने भी कुछ कहना चाहा ।लेकिन दोनों ने उसे अनसुना कर दिया ।
“इसमें नकारने की क्या बात है ।”
“सच कड़ुवा होता है ,हिंदी ।”
“कोई बात नहीं ,सुना ही दो आज सच ।”
“सच यह है कि आपके साहित्य के केंद्र में धार्मिक साहित्य है ।ऐसे साहित्य में अधिकतर जनसँख्या को दोयम दर्जे का माना गया है और देश का बहुसंख्यक तबका अपने से रिलेट नहीं कर पाता है ।वहीँ प्रभुत्व वर्ग अपने को उच्च साबित करने के लिए मुझे अपनाता है । फिर आपके पास बचता कुछ नहीं है।”
“और कुछ ??”
“कहने को तो बहुत कुछ है । जैसे हिंदी डिक्शनरी में केवल 20000 के आस पास शब्द हैं और अधिकतर शब्द तो देवी देवताओं के लिए हैं । वैज्ञानिक शब्द गायब है ।वही अंग्रेजी में 1 लाख के आसपास शब्द है ।मैंने अपना दिल और दिमाग खोल रखा है ।मै हर भाषा के शब्द ग्रहण करती हूँ। ”
“आप तो मेरे में ही कमी निकालती जा रही हो ।जैसे आप दूध की धुली हो ।”
नहीं ,कमी किसमें नहीं होती है ।मुझमे भी कमी है और मुझे पता है । जैसे लिखा कुछ जाता है पढ़ा कुछ और जाता है । but को बट तो put को पुट ।”
“चलो अच्छा है ,आपने भी गलती मानी ।” हिंदी हँसते हुए बोली
“गलती मानेंगे , तभी सुधार होगा ।”
“अच्छा ,अंग्रेजी आप ही बताओ ,मैं क्या करूँ ।मैं मरना नहीं चाहती हूँ ।”
हिंदी परेशान होकर बोली
“बहुत सी चीज़े हैं ,हमारे alphabets देख लो और अपनी वर्ण माला ।हिंदी बोलने वालों को भी वर्ण माला याद नहीं होगी ।इसकी जटिलता कम कीजिए ।”
“और कुछ??” हिंदी ने पूछा
संक्षेप में यही है कि छुआ छूत कम करिए ।सभी भाषाओँ को बढ़ने दीजिए और सभी के शब्दों को ग्रहण कीजिये ।इंग्लिश के शब्दों के अनुवाद के पर न जाने कितने जोक्स बन रहे हैं ।जैसे प्रेजिडेंट का अनुवाद राष्ट्र पति ,मतलब पहले से मान लिया गया कि राष्ट्र प्रमुख पुरुष ही होगा ।इससे स्त्री विरोधी मर्दवादी भाषा लगने लगती है ।”
“और लेखकों ,पाठकों को कैसे आकर्षित किया जाए ।” हिंदी ने जानना चाह
“भाषा जितनी जन ग्राहय होगी ।हर वर्ग के लेखकों का सम्मान करेगी तभी आगे बढ़ेगी ।जब साहित्य के इतिहास में कुशवाह कांत जैसे उपन्याकारों को इग्नोर कर दिया जाएगा ।फणीश्वर नाथ रेणु जैसे उपन्यास कार को साहित्य अकेडमी अवार्ड तक नहीं मिलता है और आंचलिक उपन्यासकार कहकर सीमित कर दिया जाएगा ।तब कैसे हिंदी का प्रसार होगा ।”
हिंदी ने अपना सिर पकड़ लिया ।
” चिंता मत करों ।हम सभी भाषा एक साथ मिल कर आगे बढ़ेंगी ,एक दूसरे की पूरक बन कर ज़िंदा रहेंगीं।”
“हाँ हाँ ,हम सब एक दूसरे का साथ देंगे । “भोजपुरी,तेलगू,तमिल,मलयालम और अन्य भाषओं ने समर्थन किया ।
“ठीक है,हिंदी ।take care .हम लोग फेस बुक और व्हाट्सएप्प पर हैं ।कोई बात तो कॉल या मेसेज करते रहेंगे ।”
बाय बाय ।
हिंदी ने आगे बढ़कर सभी से हैंडशेक किया ।
2 Comments
बहुत अच्छा प्रस्तुतीकरण, आपका बेबाक होकर हिन्दी और अन्य भाषाओं का हैन्डसेक आज के यथार्थ का वर्णन करता है।
बहुत सुंदर