भ्रमशील समूहों की शल्य क्रिया

कर्नल सुबोध कुमार (रि.)

मैंने बचपन से ही भ्रमशीलों की क्रिया-कलापों की शल्य-क्रिया करनी शुरू कर दी थी ।
मैं पांचवीं क्लास में था । रबी फसल कट कर अनाज गांव- घर में आ चुका था ।और फिर शुरू हुई भ्रमशीलों के टीड्डों की झुंड का गांव पर आक्रमण ।
एक जादूगर आया और टोले में डमरू की आवाज सुनकर मैं भी। जादू देखने के लिए दौड़ पड़ा । नजदीक पहुंचा तो पाया कि जादूगर एक सूप के ऊपर सफेद कपड़ा बिछा रखा था और उसपर चावल रखा और फिर जादू शुरू । उसने सूप हिलाना शुरू किया और कपड़े के नीचे सेएक तरफसे मूढ़ी (लैया) निकलना शुरू हुआ तो दूसरी ओर से चावल गायब होना ।शो के बाद कुछ दर्शकों ने पैसे दिए तो अधिकांश ने अनाज ।वह अपना सामान बांध कर दूसरे टोले की ओर चल पड़ा । मेरे बाल मन में ये दृश्य कुछ जंचा नहीं ।सो मैं भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा । दूसरे टोला पहुंच, डुगडुगी बजी, भीड़ इकट्ठी हुई और जादू शुरू ।अब मैं गौर से जादूगर की क्रिया-कलापों को देखने-परखने लगा । मैंने देखा कि वह लोगों को अपनी बातों में उलझाकर अपने बातें हाथ की उंगलियों से कपड़े के नीचे से धीरे-धीरे बाहर निकलने में मदद कर रहा था । फिर क्या था मैंने झट उसका बायां हाथ पकड़ लिया । सूप के ऊपर से कपड़ा हटाया तो नीचे मूढ़ी मिली । बेचारा शर्म के मारे गांव तीसरा शो ना दिखाकर अगले गांव की रुख कर लिया ।
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दूसरा वाक्या 1982-83 की है। मैं फौज में अफसर(2Lt)बन चुका था और गर्मी में छुट्टी पर गांव(घर) आया हुआ था । फिर वहीं श्रमशीलों की भीड़ । सुबह 9बजे का समय होगा । घर के बाहर जोरों से अलख निरंजन की आवाज आई । भाभी देखकर आई और बोली आपका अगला शिकार–अघोरी बाबा हैं । मैंने कहा आप आगे निकलिए,मैं आपके पीछे-पीछे आता हूं।
भाभी पहुंची और बाबा ने जोर से कहा-सौभाग्यवती भव बच्ची। तुम्हारी पांच बच्चे होंगे,घर भरपूर रहेगा। बाबा के लिए कुछ खाना-पीना और दक्षिणा लाओ । थोड़ी हिचक हुई और बाबा ने अपने झोले से मानव-मुण्ड निकाला और उसपर कुछ(फास्फोरस) छिड़का और आग की लपट निकली और डर के मारे वापस भागी ।मैं रास्ते में मिला और साथ में वापस बाबा के पास ले आया।और बाबा के समक्ष षाष्टांग दंडवत होकर लेट गया और कहा ,बाबा आप पहुंचे हुए भविष्य ज्ञानी और अघोरी लगते हैं और मैं बेरोजगार भटक रहा हूं । नौकरी का कुछ प्रबंध कीजिए ।बाबा पहले कुछ हिचकिचाये शायद मेरा हेअरकट देखकर।पर मैंने उन्हें बेरोजगारी का भरोसा दिलाया । फिर बाबा खुल पड़े ।कहा..तुम बड़ा अफसर बनेगा ।जब लोगों के साथ चलते हो तो उसे अपने बांये रखो ।सब मंगलमय होगा ।
उसी समय भैया गंगा स्नानकर घर पहुंचे । मैंने कहा, बाबा थोड़ा इनका भी कुछ भविष्य बताइये ।बाबा ने कहा कि इनको दो बच्चे होंगे । फिर क्या था,बाबा मेरे जाल में फंस चुके थे । मैंने कहा,बाबा ये मेरे भैया है और भाभी के पति हैं ।ये कौन सा आलौकिक ज्ञान है जिससे आपने भैया के दो और भाभी के पांच बच्चे बताया । बाबाजी की बोलती बंद ! मैंने उसकी झोला-झपटी सब छीन ली ।कहा, ये टीका-चंदन,भभूत लगा कर, जटाधारी बन लोगों को मूर्ख बना कश्र ठगते हो ।कुछ मेहनत करो और पैसे कमा ओ । उसके कैई जबाव नहीं मिलने पर मैंने उसके सारे सामान छीन लिया और भगा दिया । वह रोता हुआ गया और टोले के चबूतरे पर बैठकर रोने लगा ।एक -डेढ़ घंटे बाद अपने लोगो के कहने पर उसका पूरा सामान लौटा दिया और कहा इस गांव की तरफ दोबारा नजर मत आना ।

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