महेश वर्मा की कविता ‘माँ की गोद’

 महेश वर्मा की कविता ‘माँ की गोद’

लेखक  अपर जिला जज के रूप में  अपनी सेवाएं दे रहे हैं ।साहित्य में गहरी अभिरुचि है ।

जन्नत तो नहीं पता,
पर ये माँ!
तेरी गोंद से ज्यादा,
शुकून कहीं भी नहीं।

नहीं चाहिए हमें,
कहीं हो भी कोई स्वर्ग तो।
माँ तेरे साये में ही,
सारी क़ायनात नज़र आती है।

दुनिया के प्यार में भी
वो अपना पन नहीं।
जो तेरे थप्पड़ में भी
मिला करता था।

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