मोनिका राज की कविताएँ

मोनिका राज
मुरलीगंज , मधेपुरा , बिहार
शिक्षा- एम. ए. (इतिहास)

युवा कवयित्री एवम स्वतंत्र लेखक ।
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविताएं एवम आलेख प्रकाशित।

【आज की लड़की】

थोड़ा थमना पर रुकना नहीं,

मिले ठोकर पर संभल जाना ।

तुमको है अब आगे बढ़ना,

मंज़िल को अपने है पाना ।।

पर अपने फ़ैलाकर तुम,

आसमान में ऊँचा उड़ो ।

हर बाधा को पारकर,

जीवन-डगर में आगे बढ़ो ।।

अपने अस्तित्व को पहचानो,

अपनी क़ाबिलियत को जानो ।

कोई कितना भी प्रलोभन दे,

समझौता अब करो मत तुम।।

तो क्या हुआ गर लड़की हो

नहीं किसी से कम हो तुम ।।

तुम दुर्गा हो तुम काली भी,

आदिशक्ति का रूप हो तुम ।

तुम लक्ष्मी हो और शारदा भी,

उम्मीद की इक धूप हो तुम ।।

लड़की होना इक ‘नेमत’ है,

कमज़ोरी इसे मत मानो तुम ।

तुम त्याग की मिसाल हो,

पर आज त्याग करो मत तुम ।।

तो क्या हुआ गर लड़की हो

नहीं किसी से कम हो तुम ।।

बहुत निभाया अबतक तुमने,

माँ-बहनों के किरदार को ।

अब आया समय पहचान लो,

अपने सर्वस्व के आधार को ।।

पुरातनता की बेड़ी में,

अब खुद को न जकड़ो तुम ।

हर बंधन को तोड़ आज,

खुद को आज़ाद करो तुम ।।

तो क्या हुआ गर लड़की हो

नहीं किसी से कम हो तुम ।।

आँचल में दूध आँखों में पानी,

हुई अब ये बात पुरानी ।

‘अबला’ नहीं ‘सबला’ हो तुम,

हर सीमा से ऊपर हो तुम ।।

हर वाज़िब ख़्वाहिश पूरी करो,

अपने सपनें मत मारो तुम ।

अपनी आवाज़ बुलंद करो,

अब अत्याचार सहो मत तुम ।।

तुम आज की लड़की हो

नहीं किसी से कम हो तुम ।।

【तेरी लाडो 】

दुआओं को आँचल में लेकर ,

क्यों हुई मेरी विदाई माँ ?

लाँघकर दहलीज़ को तेरे ,

क्या मैं हुई पराई माँ ??

जिस आँगन में बरसों खेला

जिस मिट्टी में मैं पली-बढ़ी ।

उस बगिया को छोड़कर

क्योंकर मैं ससुराल चली ??

कन्यादान औ’ पगफेरे की ,

जाने किसने रस्म बनायी ?

कलतक जो ‘बिट्टो’ थी तेरी ,

आज क्यूँ वो हुई परायी ??

निभाऊंगी हर वादे सारे ,

नहीं पराया धन हूँ मैं ।

मत छोड़ो तुम साथ मेरा, माँ

अब भी तेरी ‘लाडो’ हूँ मैं ।।

【मंज़िल मुझे मिलेगी ज़रूर】

एक सपना जब टूटता है ,

एक साथ जब छूटता है ,

टूटती हैं लाखों उम्मीदें ,

बिखरती हैं हज़ारों ख्वाहिशें ।

कब सोचा था मैंने कि ,

वो सपने टूट कर बिखर जाएंगे ।

सोचा तो यही था कि ,

वो बढ़कर साकार रूप ही पाएंगे ।।

शायद कुछ मुश्किलों से डरकर ,

हमने वो सपना तोड़ दिया ।

या कुछ उलझनों में फंसकर ,

हमने वो साथ छोड़ दिया ।।

दिल में गर सच्ची लगन हो ,

हर मुश्किल होगी दूर ।

बस यही कहती है “मनु”

मंज़िल मुझे मिलेगी ज़रूर ।।

【मैं हार नहीं मानूँगी 】

हा! ये कैसा अजीब संकट है आया

जिसमें मेरा पूरा अस्तित्व है थर्राया

आजतक जो सुन रही थी समाचार में

उसका प्रमाण है मेरे आंगन में आया

इक डॉक्टर के रूप में

आपने अपनी हर जिम्मेदारी निभाई

अब उसको पूरा करने की

मेरी बारी है आई

एक तरफ़ मेरे माँग का सिंदूर है

दूजी तरफ़ हमारे प्यार का अंश

आपके उदास चहरे को देख

मैं टूट चुकी हूँ अन्दर से

पर आँसू बहाकर आपको कमज़ोर नहीं पड़ने दूँगी

हाँ ये वादा है मेरा

मैं हार नहीं मानूँगी

माना शत्रु अदृश्य है हमारा

पर मैंने भी कर ली तैयारी है

चाहे जितनी तक़लीफ़ बढ़े

चाहे जितना संघर्ष हो

नहीं टूट कर बिखरूँगी

मैं हार नहीं मानूँगी

फिर से मुस्काएँगी खुशियाँ हमारे आंगन में

आएगा फ़िर से वसंत हमारे जीवन में

बस कुछ दिन की यह दूरी है

हाँ ये दूरी बहुत ज़रूरी है

माना ये कठिन परीक्षा है

पर मन में मैंने ठाना है

हर इम्तिहान की तरह

इसमें भी सफल होऊँगी

बस यही कहती है ‘मनु’

मैं हार नहीं मानूँगी

मैं हार नहीं मानूँगी ।।

【ज़िन्दगी के इम्तिहान 】

केवल मेरा चेहरा ही नहीं ,

शख़्सियत भी तुमसे मिलती है l

माँ मेरी दुनिया अब भी,

बस तेरे पीछे चलती है ll

जब फंसती हूँ अंतर्द्वंद्व में ,

रुक कर बस यही सोचती हूँ ,

गर तुम होती तो क्या करती ?

फिर लेती हूँ निर्णय जीवन के

लोगों को ऐसा लगता है ,

कि कैसे हर बार मैं सही होती हूँ ?

चाहे रहूँ कहीं भी इस दुनिया में ,

तुम्हारे आँचल की छांव महसूस करती हूँ l

बेरंग दुनिया के धूप की इस तपिश में ,

शीतल मरहम-सी यह लगती है l

ज़िन्दगी के हर इम्तिहान में माँ ,

“मनु” जीत कर ही दम लेती है ll

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