यह चोरी ही तो है (संस्मरण-3)
यू पी के पूर्व मंत्री स्मृतिशेष चेत राम गंगवार जी पर उनकी बेटी विमलेश गंगवार ‘दिपि‘ द्वारा लिखा संस्मरण जो कथाकार और उपन्यासकार हैं ।
सी .5 दारूलशफा लखनऊ । पिता श्री का लम्बी समयावधि तक आवास रहा । सी .6 में आमों के गुच्छों से लदा वृक्ष जो दूसरे माननीय विधायक जी के ऑगन को सुशोभित कर रहा था । आम की पूरी जड़ आवास 6 में और कुछ आमों से लदी टहनियां सी .5 में
विधान सभा सत्र समाप्त हो जाने के कारण दारुल शफा में एकदम सन्नाटा ।रोज उन गुच्छों को देखकर लालच आता । लम्बा डंडा उठाया और गुच्छे पर प्रहार कर दिया ।पूरा गुच्छा टूट गया पर सारे आम सी 6 में गिरे बस दो आम सी 5 में ।
पिता श्री की तमाम पुस्तकों में से गीतान्जलि (महान रचयिता रवीन्द्र नाथ जी द्वारा रचित) पढ़ रही थी आजकल ।उसकी पंक्तियाँ मस्तिष्क में घूमने लगी ……..
चुन लो मुझे वृन्त से चुन लो , और विलम्ब नहीं कर
जी में जगता है भय , जाऊं कहीं न माटी में झर ।
तोड़ो तोड़ो और और विलम्ब नहीं कर …..
कई प्रयास किये ।परन्तु परिणाम वही ।पूरा गुच्छा उधर , दो एक आम इधर ।
हमें लगा क्या फायदा!!! डंडा फेंक दिया ।ऑगन में बिखरे आमों को उठाने लगे ।
पांच मिनट बाद घन्टी बजी ।जाकर गेट खोला , माननीय विधायक जी आमों से भरी टोकरी लिये खड़े थे ।
मैं निशब्द ……मेरे शब्द कोष में कोई शब्द ही नहीं था जो मैं बोलती ।
लो बेटा पकड़ो यह डलिया ।
गंगवार साहब घर गये होंगे ।वह बोले ।
जी कल ही चले गये थे ।
मुझे एहसास हो रहा था मानो वह स्पष्ट रूप से कह रहे हों कि वह यहां होते तो तुम यह आम कभी न तोड़ती ।
लो बेटा पकड़ो ।मैं भी चार बजे की ट्रेन से घर जा रहा हूँ ।
पता नहीं आज ऐसा क्यों किया मैंने ……मेरे मुंह से निकल गया ।
वह कक्ष में आये ।डलिया मेज़ पर रख दी उन्होंने ।और बोले ।क्या किया तुम ने ।अपने आंगन से ही तो तोड़े हैं ।वह विरोधी पार्टी के दवंग नेता अपने जनकल्याणकारी भाषणों से सरकार को हिलाकर रख देते थे पर पडोसी
विधायक के परिवार से मर्यादा पूर्ण व्यवहार बखूबी जानते थे ।
काश आज के सभी दलों के नेता मर्यादित आचरण करें तो आधी वैमनस्यता एवं कटुता शत्रुता तो यों ही दूर हो जायेगी ।और जनकल्याण के कार्यों के विषय में ठंडे दिल से सोचने का मौका मिलेगा ।
आज भी आमों से लदे वृक्ष को मैं देखती हूँ तो मुझे माननीय विधायक जी का शिष्टाचार से परिपूर्ण व्यक्तित्व याद आ जाता है ।