यह जो जीवन है

 यह जो जीवन है

शालू शुक्ला

अच्छा आप एक काम करिए गूगल पर फलाने से जुड़ी तस्वीरें खोजिए। बेहतरीन तस्वीरें। बॉस ने अपने जूनियर से कहा। जूनियर पत्रकार ने गूगल पर तमाम तस्वीरें देखीं और सभी को नाम सहित एक फोल्डर में सहेजा। बॉस ने अगले दिन फोल्डर देखा। डिजाइनर के साथ मिल कर पेज तैयार करवा लिए गए। पत्रिका छपने के लिए जाने ही वाली थी कि जूनियर पत्रकार ऑफिस में दाखिल हुई। उसने बॉस की अफ़रा तफ़री में हिस्सा लिया, देखा की सब तैयार है। उसने कहा बॉस सभी तस्वीरें ठीक थीं। बॉस ने कहा हां आप देखिए ये पेज कितना जच रहा है। जूनियर पत्रकार ने सर हिलाया और आशंका जताई फोटोग्राफरों के नाम भी थे लिस्ट में? बॉस ने कहा ,हाँ अब पेज बन चुके है आप देर से आई हैं। अभी समय नहीं है। अगली बार ध्यान रखेंगे।

जूनियर पत्रकार को कॉपीराइट के कानून की चिंता नहीं थी। उसे बस इस बात की चिंता थी कि कहीं वे फोटोग्राफर इस पत्रिका में अपनी बेनाम तस्वीरें न देख लें। खैर वक्त बीता और जूनियर पत्रकार भी इस बात को भूल गई। कुछ महीने गुज़रे। दिन बीते। पत्रकार की पत्रकारिता कहीं दब सी गई। लेखन कम हो गया। सोच विचार अपनी जगह चलता रहा। एक दिन घर में टहलते वक्त फोन की घंटी बजी। फोन उठाया तो पता चला एक बड़े पुराने मित्र ने एक लंबे समय बाद याद किया। याद किया क्योंकि एक काम था। काम का कोई दीन धर्म नहीं होता। कहीं भी कभी भी किसी भी शक्ल में आ धमकता है। अब इस पुराने मित्र नें अपनी बेबसी जताई समय की किल्लत के चलते अपने अधूरे काम जूनियर पत्रकार के संग साझा किए। जूनियर पत्रकार राजी हो गई। अब इतने समय बाद किसी मित्र के मुश्किल समय में भी साथ न दे सकी तो मित्रता किस बात की इंसानियत किस बात की।

डेडलाइन अगले दिन की थी। जूनियर पत्रकार अब पत्रकार नहीं थी। फिर भी पत्रकारिता की आत्मा को जीवंत रखे हुए थी। पुराने मित्र को एक लेख लिखवाना था। खानापूर्ति के लिए। ये शब्द जूनियर के दिमाग से फिसल गया। उसे ये अंदेशा था कि मित्र की मदद में कोई कोताही न हो जाए। उसने मन लगाकर अगले दिन डेडलाइन पूरी होने से पहले ही लेख मेल कर दिया। मित्र खुश। जूनियर भी खुश। एक उपहार भी तय हुआ।

उपहार मिलनें में समय था। रात को फोन में नोटिफिकेशन आई। एक विडियो में जूनियर का लिखा हुआ लेख किसी की आवाज़ के जरिए जन मानस के साथ साझा किया जा रहा था। जूनियर ने अंत तक सुना। विडियो शांत हुआ और वो शांति जूनियर के मन में घर कर गई। तभी कुछ गिरने की आवाज़ आई। उसने पलट कर देखा कि अलमारी की छत से वही पत्रिका गिरी है जिस पर उन फोटोग्राफरों की बेनाम तस्वीरें छपी थीं। उसकी आंखें पंखे की हवा से पलटते पन्नों को देख कर खौल उठीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *