यादें
सीमा पटेल
अंतिम क्षणों में पिताजी ने कांपते हाथों से पत्र लिखा था, वो पत्र मैंने बहुत सहेज कर रखा था। जब भी उनकी याद आती थी उसको निकाल कर पढ़ लिया करती थी। उनकी आवाज तो नही सुन पाई परन्तु उस पत्र को पढ़ कर ऐसा महसूस होता था कि वो मुझ से बात कर रहे हों। हमेशा मेरे पर्स में रखा रहता था।
एक बार ऐसे ही मेरे घर पर बहुत खास रिश्तेदार आये, जिनको मैंने बताया कि पिताजी ने मुझे अस्पताल से एक पत्र लिखा था।
उन्होंने बेहद आश्चर्य चकित होकर मेरे से पूछा…
“क्या तुमको पत्र लिखा था… क्या लिखा था?”
उस वक़्त मेरे आसुँ भर आये । कयोंकि सिर्फ मुझे ही अपनी सारी जिम्मेदारी सौपी थी उस पत्र में लिख कर।
“बेटी, अब तुमको ही मेरा सारा ध्यान रखना है। सुबह का ब्रुश कराने से रात को खाने तक कि सारी जिम्मेदारी और मेरी दवाइयाँ वगैरह सब तुमको ही देनी है।”
उस समय पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा था कि पिताजी ने सिर्फ मुझे ही चुना इस खास जिम्मेदारी दारी के लिये जबकि घर पर और भी सदस्य मौजूद थे।
मैं पिताजी का अस्पताल से घर आने का इंतजार करती ही रह गयी।
क्योंकि,जब उनका घर आने का वक्त हुआ उस से पहले ही मैं अस्पताल में भर्ती हो गई। मेरी 5 महीने की pregnancy थी। Doctor ने टोटल bedrest करने को बोला था बहुत ही critical condition थी मेरी, लेकिन मन में उम्मीद थी कि मैं ठीक हो जाऊंगी तो जरूर उनके पास जाकर अपनी सारी जिम्मेदारी निभाऊंगी। परन्तु वो समय बहुत दुःखद और दुविधाजनक था। इधर मेरी भी हालत बिगड़ती गयी उधर मेरे पिताजी की भी।
मेरी pregnancy के सात महीने पूरे हो रहे थे, लेकिन हालात में कोई सुधार नही। Doctor ने बताया कि आप और आपके पेट मे पल रहे बच्चे, दोनों का ही बहुत risk है।
मैं घर जाने की जिद्द करती थी क्योकि 2 महीने से hospital के bed पर एकदम सीधा लेटने की हिदायत दी गयी थी। दायी और बाई करवट से भी लेटना मना था। खाना पीना सब सीधे लेटकर। मैं बहुत ऊब चुकी थी। लेकिन उस कठिनतम और चुनौतीभरी घड़ी में धैर्य का साथ छोड़ना जीवन से हार जाने के बराबर था ।
ये बात सच हैं कि ” कर्म के साथ भाग्य अपने पूर्व-निर्धारित पथ पर गतिशील रहता है।
21 फरवरी 2005 को करीब सुबह 6 बजे मेरे बड़े भाई का फोन आता है कि “Father has passed away”, सुनते ही मेरी चीख निकल गयी “क्या पिताजी चले गए?!” Maternity ward में मेरे बिल्कुल सामने कुर्सी लगा कर बैठी हेड nurse दौड़ कर आई “क्या हुआ, ma’am?” … शायद उन्होंने पिताजी चले गए… कहते सुन लिया था। Nurse बहुत सख्त नज़रें मुझ पर डालते हुए बोली , “मैंम आपको बिल्कुल भी रोना नही है पेट पर जोर पड़ेगा , खतरा और बढ़ जाएगा। आप अपना ख्याल रखिये।”
उनकी भी बात सही थी, क्योंकि उस समय मेरे पास और भी जिम्मेदारियाँ थी। अपने गर्भ में पल रहे शिशु और साथ मे मेरी दो नन्ही बेटियां एक 4 साल की दूसरी 8 साल की।
मेरी जो उस वक्त स्थिति थी, उसको बयान करना बहुत मुश्किल है। बेटे को जन्म देने की जिम्मेदारी में पिताजी को खोने का दर्द भी महसूस न कर सकी न ही उनके अंतिम दर्शन ही मुनासिब हो सके ।
आज भी आँखे नम हो जाती है वो दिन याद कर के।
शायद इस वेदना की हिस्सेदारी मेरे जीवनपर्यंत रहेगी ।
__सीमा पटेल