यूज़ एंड थ्रो

डॉअनुराधा ‘ओस
शिक्षा– पी-एच.डी.

(मुसलमान कृष्ण भक्त कवियों की प्रेम सौंदर्य दृष्टि)
प्रकाशित काव्य कृति – ‘ओ रंगरेज’

सम्पादन– ‘शब्दों के पथिक’
(सांझा काव्य संकलन. इंक पब्लिकेशन)
‘परिवर्तन साहित्यिक मंच’ के वेबसाइट पर कविताएँ प्रकाशित..
‘मेरा रंग :वेबसाइट पर कविताएँ प्रकाशित
‘हमारे स्वर आपके शब्द’ (सृजनलोक प्रकाशन)पर कविताओं का प्रकाशन और प्रसारण..
‘बिजूका ब्लॉग पर कविताएँ प्रकाशित’
‘छत्तीसगढ़ मित्र वेबपोर्टल पर कविताएँ प्रकाशित’
‘गूँज पर कविताएँ’
कवियों की कथा में कविताएँ (शिरोमणि महतो द्वारा)..
परिवर्तन साहित्यिक मंच के कार्यक्रम ‘आग़ाज़-ए-सुख़न’ का संचालन..
‘हस्तांक ब्लॉग पोस्ट’पर कविताएँ प्रकाशित..
महिला विषयक,और सामाजिक कविताओं पर विशेष कार्य,
प्रकाशन – वागर्थ, आजकल, अहा!जिंदगी, वीणा, उत्तर प्रदेश पत्रिका, विपाशा, पाठ,छपते-छपते, संवेद वाराणसी, मॉरीशस से प्रकाशित ,हिंदी प्रचारिणी सभा की पत्रिका ‘पंकज’कनाडा से प्रकाशित, विश्व हिंदी संस्थान की पत्रिका ‘प्रयास ‘में अभिनव प्रयास, आगमन ,गुफ़्तगू, समकालीन
स्पंदन, सरस्वती सुमन, कर्मनिष्ठा, अनन्तिम,वनिता महिला पत्रिका,अधूरी ग़ज़ल, प्राची,सोच विचार,युग गरिमा आदि अनेक पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
अनेक पुस्तकों की समीक्षाएँ प्रकाशित,
सम्मान-
सहित्यायन मिर्ज़ापुर द्वारा ‘युवा लेखन
सम्मान।
डॉ दयाराम स्मृति सम्मान सोनभद्र।
गुफ़्तगू साहित्यिक संस्था द्वारा ‘सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान’2016।
म.प्र. तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा’ तुलसी सम्मान’2016।
आगमन संस्था द्वारा’युवा प्रतिभा सम्मान’2016।
भारतीय साहित्यिक संस्था सिरुगुप्पा वल्लारी, कर्नाटक द्वारा ‘भारतीय भाषा रत्न सम्मान’।
आगमन संस्था द्वारा 2019 में फैंटास्टिक फीमेल अवार्ड।
परिवर्तन संस्था द्वारा 2019 में ,छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री माननीय श्री भूपेश बघेल जी द्वारा ,काव्य कृति ‘ओ रंगरेज’ को सम्मान।

अनेक पुस्तकों की समीक्षा ।

प्रसारण-आकाशवाणी वारणसी केंद्र से।

सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन।
ई मेल–anumoon08@gmail.com

    कहानी 

उसने लोकल ट्रेन में दातुन के बड़े -बड़े दो गट्ठर पटके और अपनी मैली साड़ी को समेटा फिर चैन की सांस ली .जबकि ट्रेन चलने वाली थी पहले गट्ठर फेंका फिर बेटे को चढ़ाया .कमर सीधी करके नीचे ही बैठ गई.जबकि लोकल ट्रेन की तमाम सीटें खाली थी.एक मैला-कुचैला झोला भी हाथ मे था .कुछ खाने की सामान रहा सम्भवतः होगा.मैंने सहयात्री महिला से कहा सीट खाली है फिर ये बैठ क्यों नही रही है.’ये लोग नही बैठतीं पता नही क्यों. पता नही क्यों हमेशा हमारे आस पास चक्कर काटता रहता है,और कुछ न होने पर यहीं जुमला उछाल दिया जाता है ‘पता नही क्यों’ पता नही क्यों ट्रेन लेट हो रही है, थकान से बोझिल वो तो सो गई मगर मैं?पता नही कितने सवाल चक्कर काट रहे थे मन में. शायद मैं उस पर कोई कविता लिखने की सोच सकती थी.गोमो एक्सप्रेस छोटी दूरी के सफर के लिए स्थानीय सांसद के प्रयास से चल रही थी. सफर का एक सस्ता साधन उपलब्ध करवाया था बस समय बहुत लग जाता था.एक दम मन्थर गति से.हर स्टेशन पर 15 मिनट जरूर रुकती मैं बार-बार कलाई घड़ी देख रही थी.लगता है रात के बारह बजे घर पहुँचूंगी.जब सारी दुनिया मीठी नींद ले रही होगी मैं उनींदी आंखे लेकर अपना स्टेशन आने की इंतजार कर रही थी कब का चली थी भूख जोरों की लग रही थी .पर्स में बिस्किट थे.पैकेज फाड़ा और निकाल कर खाने लगी. घर से मैसेज आ रहे थे .पति का गुस्सा सातवें आसमान पर था.ज्यादतर मजदूर औरतें वहीं नीचे ही बैठती थी,लोकल ट्रेन से जाने का फायदा
था कि एक तो किराया बहुत कम 30 रुपये में 70 किलोमीटर का सफर काट लेती थीं, और कुछ धुंधलके ही स्टेशन पर उतर जाती थी.जानती थी थोड़ा सा पिछड़ना मतलब धंधे में कोई और बाजी मार ले जाएगा .कमाने -धमाने वाले कहां बुरुश लेकर घूमेंगे दातुन किया और फेंका.यूज एन्ड थ्रो का जमाना है, आजकल इंसान भी तो यहीं करता है. पारो का पति उसे छोड़कर न जाने कहाँ भाग गया.तबसे उसके टोले की रानी.मीनू और जाने कितनी औरतें उसे रोज समझाने आती आगे की सोचने को कहतीं. ये औरतें दोपहर जंगल मे जाकर मुलायम लकड़ियां चुनती और काट लेती हैं. पारो भी इसी धंधे में आ गयी आजकल.शाम तक इतने पैसे इकठ्ठे हो जाते की नमक. तेल एकाध भाजी उसके झोले में होते.जंगल में भी भेड़ियों का खतरा रहता था मगर.पेट की आग से बढ़कर कोई आग नही होती है.मैं मन ही मन उस औरत से अपनी तुलना किये जा रही थी.संघर्ष तो दोनों ही कर रही हैं .कम से कम उससे कोई पूछता नही होगा इतनी देर क्यों हुई.वो अनपढ़ होकर स्वतंत्र थी और मैं झोला भर डिग्रियां लेकर? महिला विमर्श पर लिखने वाली औरतें क्या घर मे अपना हक रख पाती हैं जिसकी वो अधिकारी होतीं हैं.औरत ही उसकी मुखालफत पहले करती है.सास हो जेठानी देवरानी,या ननद कोई भी हो सकता है.ट्रेन अपने गंतव्य पर भागी जा रही है और मैं बेचैनी से बार-बार घड़ी…

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