यू पी के पूर्व मंत्री स्मृतिशेष चेत राम गंगवार जी पर संस्मरण-2
यह संस्मरण उनकी पुत्री विमलेश गंगवार ‘ दिपि ‘ द्वारा लिखे गए हैं जो प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कथाकार हैं ।
बरेली से नैनीताल जायेंगे तो आटामांडा रेलवे स्टेशन से थोड़ा आगे बहुत चहल पहल वाला गाँव है या यों कहें कि बहुत उपयोगी बाजार है, नाम है जादोंपुर ।आम जनता के शादी व्याह से लेकर दैनिक जीवन की हर चीज उपलब्ध है ।सोने चांदी फरनीचर से लेकर गरमागरम समोसे जायकेदार रसगल्ले और ताजे फलों के ठेले ।
एक समय था वहां कुछ नही था ।दलदल भरा रास्ता था ।बरसात में आना जाना दूभर ।गाँव वासियों के लिये बहुत कष्ट कारी स्थति ।न सड़क , न पुल , न बाजार । रेलवे लाइन थी काठगोदाम तक । पैसे वाले रईस लोग या साहव लोग गर्मियों में नैनीताल जाते थे या जाड़ों में कई गुने ज्यादा कपड़े पहन कर स्नो फाल देखने जाते थे ।तव यहाँ के लोग जाड़ों में कम कपड़ों के कारण ठंड से कांपते थे ।मजदूर, गरीब, किसान क्या जाने कि नैनीताल क्या है ! कहाँ है ! वहां क्यों जाते हैं लोग ।
पचपेड़ा गाँव है विधान सभा क्षेत्र नबाव गंज का आखिरी गाँव ।दूसरा बिलकुल सटा हुआ गाँव है सेड़ा जो विधानसभा क्षेत्र भोजी पुरा में पड़ता है ।
इन दोनों गाँवों के बीच में बहती हैं एक नदी ।जो बरसात में खूब कहर ढाती है ।
सर्वप्रथम जब पुल निर्माण की बात उठी ।तब लोगों ने कहा इसको बनवाने क्या लाभ?
पर वह तो किशोरावस्था से ही सपना देखतेआये थे कि यदि इस नदी का पुल बन जाये तो बरेली तो पास हो ही जायेगी और आदर्श निकेतन इंटर कालेज में लड़कियों भी पढ़ने जाने लगेगी ।
लड़के तो एक जोड़ी कपड़े बैग में रख कर ले जाते थे ।नदी पार की और सूखे कपड़े पहन कर स्कूल अटैन्ड कर लिया पर लड़कियों के लिये ऐसा करना असम्भव था।
कहते हैं ना अच्छे परोपकारी सपने देखो तो ईश्वर भी मदद करने लगता है ।अनन्य मित्रों ने समझाया कि लोग नाराज होगे अपने क्षेत्र में काम करो ।
पर कुछ लोगों की मदद से पुल बनने लगा सड़क भी बनी ।जादोपुर मसीत सेड़ा पचपेड़ा हिमकर पुर चमरौआ मुझैना लामी खेड़ा सेंथल आदि गाँव सड़क से जुड़ गये ।
अगला चुनाव आया तो सेड़ा वालों ने नबावगंज के सभी अपने रिश्तेदारों को आगाह कर दिया कि वोट इन्हें ही दिया जाय ।
जनता जनार्दन है ।वह खुश होकर अपने मन से भी वोट देती है ।
पुल और सड़क का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि अब वहां की बेटियाँ भी पढ़ने लगी ।बाजार के कारण पैसा भी आने लगा ।रोज गार भी मिलने लगा ।
आज जितनी बार उस पुल से गुजरती हूँ तो पिता जी का प्रफुल्लित चेहरा नज़र आता है ।
इन्सान के ना रहने पर भी उसका विकास कार्य जगमगाता है ।बताने की जरूरत नहीं पड़ती ।