यू पी शासन में मंत्री रहे ‘स्मृतिशेष चेतराम गंगवार जी ‘ पर संस्मरण-भाग 1

यह संस्मरण उनकी बेटी विमलेश गंगवारदिपिद्वारा लिखा गया है ,जो वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार हैं ।


वह अपने पर ही कुठाराघात करते थे
हमलोग एक सप्ताह हरिद्वार रह कर लखनऊ लौटे तो पिता श्री बोले
कैसा रहा हरिद्वार भ्रमण ?हमने कहा बहुत सुन्दर रहा पर
गंगा घाट के इर्द गिर्द बैठे भिखारियों को देखकर बहुत दुख हुआ ।किसी के हाथ नहीं किसी के पैर नही ।कोई ऑखो से लाचार तो कोई इतना रुग्ण कि तुरन्त अस्पताल में भर्ती कर दिया जाये।सामने रखा कटोरा और उसमें पड़े कुछ सिक्के और पड़ी कुछ थोड़ी बहुत खाद्य सामग्री
वह हम ही सब लोग बैठे हैं वहां ! अपने अपने कर्मों के फल भुगत रहें हैं गंगा किनारे बैठ कर !!
मैं आश्चर्य से उनके चहरे को देखने लगी ।
आप तो यहाँ खड़े हैं कालिदास मार्ग में । अभी जाकर असेम्बली में बैठेंगे । भाषण देंगे लम्बी लम्बी बहस करेंगे वहां …….
वह हंसे और अपने चिर परिचित अंदाज में बोले …
मरने के बाद जो अगला जन्म मिलेगा , उसमें वहीं गंगा किनारे बैठेंगे जाकर
कभी कभी वह अपनी बात को विषम पद्धति से कहते थे
कटोरी में अधिक सब्जी परोस दो तो कहते ….थोड़ा और भर देती कटोरी को ।
उनके स्टाफ़ का कोई सदस्य देर से आता तो कहते
इतनी जल्दी कैसे आ गये भाई ?
पर गंगा किनारे बैठने की बात अभी भी हमारी समझ में नहीं आई ।
आप क्यों बैठेंगे उनकी तरह वहां गंगा किनारे ?
अरे बेटा दिन भर न जाने कितने अनुपयोगी कार्यों की सहमति देते रहते हैं ।जो बात ज़रा भी नहीं पसंद है उस पर भी काम करते रहते हैं ।कई योजनाएं बहुत लाभ कारी होती हैं पर पूरी तरह से आम आदमी तक नहीं पहुंच पाती हैं, हम नहीं पूछते कि ऐसा क्यों हुआ ।चूक कहाँ हो गई ?
बस अपने आकाओं की हाॅ में हाँ मिलाते रहते हैं ।
कौन हैं आप के आका ? मैंने पूछा ।
तो वह बोले __
अरे वही जो चुनाव लड़ने के लिए हम लोगों को टिकट देते हैं ।वही जो हम लोगों को मंत्री बनाते हैं ।
विपक्षी दल फिर भी चिल्लाते रहते हैं सदन में भी और जनता के सामने भी ….. पर हम सत्ता धारी तो मुंह में दही जमाये बैठे रहते हैं ।न्याय का कोड़ा अन्तर्मन पर बार बार पड़ता रहता है पर हम मुंह नहीं खोलते ।
यह पाप सत्ता धारी ही करते आये हैं ।
वह लोग अगले जन्मों में प्रायश्चित कर रहे हैं गंगा किनारे बैठ कर ।
कभी इन्होंने जनता की नहीं सुनी थी आज जनता इनकी नही सुन रही है ।
अब बेटा कर्म तो सबको अपने अपने भुगतने पड़ते हैं ना । राजा हो या रंक ।
उनके संपर्क में रहे लोग ठीक ही कहते हैं कि वह बहुत स्पष्ट वादी थे ।

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