रजनीश संतोष की ग़ज़लें

शायर रजनीश संतोष की समय से बातें करती हुईं ग़ज़लें

【आठ बजेंगे】
तीनों लोकों में चर्चा है, आठ बजेंगे,
आज ये फिर ऐलान हुआ है, ‘आठ बजेंगे’…

मुफ़लिस के चौबीसो घंटे आठ बजे हैं,
और अब जब तक वो ज़िंदा है, आठ बजेंगे…

परबत गुमसुम नादिया है ख़ामोश हवा चुप,
सूरज दहशत में बैठा है, आठ बजेंगे…

गूंज रही हैं केवल धक-धक की आवाज़ें,
जंगल में कोहराम मचा है, आठ बजेंगे…

घड़ियों के दिल बैठे जाते हैं सीनों में,
सुइयों को चलने की सज़ा है, आठ बजेंगे…

अब तक चेहरों पर बारह बजते आए हैं,
ख़ौफ़ का यह उन्वान नया है, ‘आठ बजेंगे’…

घर छीना रोटी छीनी जिस बेरहमी से,
सोच के भी अब डर लगता है आठ बजेंगे…

कुछ की जान अभी अटकी है, वह भी ले ले,
उससे और उम्मीद भी क्या है, आठ बजेंगे…

दुआएँ दीजिए

बेशक हमें फिर आप दुआएँ न दीजिये,
पहले कोई हुज़ूर तमन्ना तो कीजिये…

गिरने लगा है खून हमारी ज़बान से,
कैसे अजीब शख्स हैं?? कुछ तो पसीजिये…

ताउम्र हम रहेंगे खड़े बिन मरे हुज़ूर,
लाइन में पहले लगने की ट्रेनिंग तो दीजिये…

सरकार का ये हुक्म है बाँटेंगे आज से,
सर्टीफिकेट तमीज़ का, लम्पट तमीजिये…

इतना ही बस है आपको अभिव्यक्ति का अधिकार,
चुपचाप घर में बैठिये दिन-रात खीजिए…

मति मारी जाएगी

जिस दिन आदम की मति मारी जाएगी,
सबसे पहले दुनियादारी जाएगी …

पहले तुम पर ज़ुल्म करेगी ख़ुद सरकार,
फिर तुम तक राहत सरकारी जाएगी …

बेकारी से जिनकी शान-ओ-शौक़त है,
उनके रहते क्या बेकारी जाएगी ?

अब तो बीमारों को दफ़नाना होगा,
अब तो ऐसे ही बीमारी जाएगी …

अक्सर

मेरा देखा हुआ होता है अक्सर,
यही होते हुए देखा है अक्सर…..
.
लगा है जब, कि अब होगा नहीं कुछ,
उसी के बाद हो पाया है अक्सर…..
.
बुरा होना भला होना है जब-तब,
भला होना बुरा होना है अक्सर…..
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जो होना हो वो होता है बहुत कम,
न होना हो जो, वो होता है अक्सर…..
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न होने की दुआ जिसकी करो, वो
‘हुआ बैठा’ हुआ मिलता है अक्सर…..
.
ये मेरे साथ कैसी ज्यादिती है,
न होना, होने से लड़ता है अक्सर…..

लगे हैं

वाह वाही में लगे हैं,
सब गवाही में लगे हैं …

हर्फ़ बाकी फ़र्श पर हैं,
कुछ सियाही में लगे हैं …

पहले बाँटा लीडरों ने,
अब उगाही में लगे हैं …

हक़ कुचल देगा तुम्हारा,
खुर सिपाही में लगे हैं …

लोकशाही के ही दुश्मन,
लोक शाही में लगे हैं….

मर के जीने वाले तौबा,
किस तबाही में लगे हैं …

जिंदगी दोनों तरफ है,
आप ‘या’ ही में लगे हैं…

शेख़ जी हम मर रहे हैं,
आप इलाही में लगे हैं…

क़ीमती लाखों बहाने,
इक मनाही में लगे हैं…

माँ के कानों के दो कुंडल,
इक कड़ाही में लगे हैं …

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