रिहा करो कवि वरवर राव को

कवि वासुकि प्रसाद “उन्मत ” की कविताएँ जन पक्षधरता की कविताएँ हैं जिनमे गहरे प्रतिरोध के स्वर दिखते हैं । आप भी पढ़िए ।


जनता की जनवादी आवाज़ को
रिहा करो
रिहा करो जनता की कविता को
जनता के कवि को

रिहा करो जनता के साहसी प्रतिपक्ष को

षडयंत्र के तहत जनता की अभिव्यक्ति को
सीखचों में जकड़ कर
ख़ुद के हत्यारी मुहिम को आज़ाद रखने वालों
तुम जनता की आंखों को
जनता की जीभ को
नहीं फोड़ सकते नहीं काट सकते

सबसे ताक़तवर ,सबसे ईमानदार
जनता के ह्रदय को
उसके शरीर के साथ क़ैद कर
बीमार बना बना कर
तिल तिल कर मारनेवालो दरिंदों अफ़सोस है
जनता अपनी ही मुक्ति को नहीं पहचान पा रही है
वह जानती ही नहीं है व्यापक पैमाने पर
अपने ही क़ैदी विवेक की
तिल तिल होती हत्या को

जनता शिकार है तुम्हारे अविवेक का
तुम्हारी सोच का जनता शिकार है
लगातार दलदल में हाथी की तरह
डूब रही जनता
दलदल तुम्हीं हो
तुम्हीं हो आततायी!

जनता की मेधा हैं क्रांतिकारी कवि वरवर राव
खींचने की रस्सी हैं
दलदल से जनता को
इसलिए उनकी सांसों की सूक्ष्म रस्सी को
तोड़ देना चाह रही हो कीचड़ की सत्ता!

हो सकते हैं दंगाई रिहा आगलगाऊ साम्प्रदायिक
देश को तोड़नेवाले, जो तुम्हारे ख़ास हैं
फिर क्यों नहीं रिहा हो सकते हैं महाकवि वरवर राव
जनता की आवाज़

रिहा करो रिहा करो सशरीर ज़िंदा
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कवि वरवर राव को
अहंकारी विद्धवंसक भारतीय सत्ता।

वासुकि प्रसाद ” उन्मत्त “

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