विजय ज़ख़्मी की कविताएँ
विजय ‘ज़ख़्मी’ अमृतसर
शिक्षा: प्राचीन कला केंद्र यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से संगीत में स्नातक की डिग्री
विजय ज़ख्मी पिछ्ले कई वर्षों से हिंदी और उर्दू की 500 से अधिक कविताएँ, ग़ज़लें और नज़्में कलमबध कर चुके हैं ! उनको दैनिक भास्कर के शब्द भास्कर प्रोग्राम , साहित्य कलश के ऑनलाइन काव्य गोष्टी तथा अन्य कई कार्यक्रमों में सन्मानित किया जा चुका है ! इसके इलावा वह 35 सालों से जालंधर दूरदर्शन अथवा आकाशवाणी जालंधर के स्वीकृत कलाकार हैं और पिछले 25 वर्षों से इनके नाटक और काव्य गोष्टी का हिस्सा बन चुके हैं ! वह पार्श्व गायक भी हैं और अनेक गीतों को अपनी मधुर आवाज़ में स्वरबद्ध कर चुके हैं !!
【1】
मैं अपने दिल मेँ, इक एहसास लेकर जीता हूँ
कभी ग़मों की, बरसात हो तो पीता हूँ
कभी दर्दो-अलम से, घबरा भी जाता हूँ
तो गहरे ज़ख्मों को, खुद ही सीता हूँ
जब कोई किसी की, ख़बर नहीं लेता
अपने अश्क़ों को, मै बार बार पीता हूँ
क्यों किसी को, कोई रुलाता है
मैं कोई वक़्त नहीं, आया हूँ और बीता हूँ
मैं अपने दिल में, इक एहसास ले के जीता हूँ………
कभी ग़मों की, बरसात हो तो पीता हूँ………!!
【 कर्म गती 】
कोई क़िस्मत मेँ उलझा है
कोई तक़दीर कहता है
लकीरों मेँ लिखा क्या है
कोई नसीब कहता है
कोई किस्मत …………..
किसी की राहों मेँ कांटें हैं
किसी का मन गुलाबी है
किसी के आंसू छलकते हैं
किसी के ग़म शराबी हैं
कोई दूरी को सेहता है
कोई करीब रहता है
कोई किस्मत ……………
कोई फ़लक को छत समझे
कोई धरा पे लेटा है
कोई लहू को पीता है
कोई कुर्सी का नेता है
कोई खाई मेँ लटका है
कोई साग़र मेँ बहता है
कोई किस्मत…………….
किसी के टूटे सपने हैं
किसी के कोई न अपने हैं
वक़्त चलता ही रहता है
न रुकने को ये कहता है
हंसी नहीं है चेहरे पे
क्यों मन उदास रहता है
कोई क़िस्मत……………
जो बरसों पहले रौनक थी
कहाँ छुप गई है वो सारी
सभी के बंद दरवाज़े
कहाँ चिड़िआं गई प्यारी
ख़लकत मेँ निराशा है
क्यों हर कोई ज़ुल्म सेहता है
कोई क़िस्मत…………..
जहाँ मेँ आज इक ऎसा दौर आया है
हर तरफ कोरोना ने, ज़िन्दों को जलाया है
अपना हो के भी उसका
न कोई क़रीब आया है
कहीं नेगेटिव को टेस्टों ने
पॉज़िटिव बताया है
यही उलझन है किस्मत की
लकीरों मेँ क्या ऱखा है
ख़ुदा ने केहर ये, सब के लिए बनाया है
कोई क़िस्मत मेँ उलझा है
कोई तक़दीर कहता है
लकीरों मेँ लिख़ा क्या है
कोई नसीब कहता है !!
【 अतीत की परछाइयां 】
ख़्वाबों मेँ अतीत की परछाईं का,आभास हो रहा है
कभी वो मिले थे, अब वो कहाँ हैं, एहसास हो रहा है
ख़्वाबों मेँ अतीत की ……………..
घबरा के अपने वतन से, क्यों दूर हो गए हैं
न जाने किस ख़्वाहिश के लिए, मज़बूर हो गए हैं
ये सोच सोच के दिल, उदास हो रहा है
ख़्वाबों में अतीत की…………….
क्यों वो रिश्ते पुराने हो गए हैं
अब न जाने कहाँ, उनके ठिकाने हो गए हैं
दीवारें वही, आशिआने वही
गालियां वही, अफ़साने वही
शायद कहीं फिर से मिलें, क़यास हो रहा है
ख़्वाबों मेँ अतीत की………………
कभी याद आता उनका, चेहरा खिलखिलाता
कभी उनके ग़म मेँ, कोई गीत गुनगुनाता
यह अधूरी मोह्बत, अधूरी कहानी
वो मिल जाएँ कहीं तो, उनको सुनाता
दर्दो-अलम का, आगाज़ हो रहा है
ख़्वाबों मेँ अतीत की ….!!
【 4 】
वो कौन सी आफ़त है,
जो मोहोबत को दग़ा देती है
जिन निगाहों मेँ तड़प थी
वो अश्क बहा देती है
वो कौन सी………….
क्यों जुदा हो गए लम्हेँ, वो ख़ुशी की रातें
दूरियां हो गयी कैसे, न रही वो बातें
धड़कने दिल की, क्यों रुक रुक के, सदा देती हैं
वो कौन सी………….
घर की दीवारें भी अब, सूनी नज़र आती हैं
अब भी कानों मेँ वो, पायल की खनक भाती है
मेरी किस्मत मुझे, क्यों सज़ा देती है
वो कौन सी………….
आशिआने में मेरे, फूल खिले रहते थे
दिल दरयाओं की तरह, रोज़ बहते रहते थे
किनारे टूट गए, रस्में रुला देती हैं
वो कौन सी आफ़त है, जो मोहोबत को दग़ा देती है
जिन निगाहों मेँ तड़प थी, वो अश्क बहा देती हैं
【5 】
ज़िन्दगी ने सबको
परेशान सा कर दिया है
क्या बड़ा क्या छोटा
हैरान सा कर दिया है
ज़िन्दगी ने सबको…………..
दौलत की अहमियत
क्या से क्या ये बन गई है
इक दूसरे की कैसे
आपस में ठन गई है
इनसानीयत को छोड़
शैतान सब को कर दिया है
ज़िन्दगी ने सबको…………..
हालात किस तरह के थे
किस तरह के हो गए हैं
रहबर ज़माने भर के
कहाँ जा के सो गए हैं
कुछ ओर था आदमी पहले
अब हैवान सा कर दिया है
ज़िन्दगी ने सबको…………
वो मोह्बत वो इबातत अब नहीं है
रिश्ते जो थे पहले वो अब नहीं हैं
हर दिल में तड़प सी क्यों है
तूफ़ान सब को कर दिया है
ज़िन्दगी ने सबको ।