शेली किरण की कविताएँ

【सुनो मित्र】


ताश का महल मत होना
कि कुछ दिलजलो की अंगुलियाँ
आतुर रहती हैं चुटकी बजाने को

खोल को तोड़
हो जाना बेहतर चारपाया
कुछ नामुरादों की अंगुलियाँ
आतुर रहती हैं
अंडो की जर्दी चुराने को

थप्पड़ को दिल से लगाओगे
तो उठ न फिर पाओगे
कुछ नमूनों की अंगुलियाँ
आतुर रहती हैं
यहाँ मुक्का हो जाने को ,

दर्द हो कराहना मत
मुस्कुरा देना
ये शहर इस कदर जालिम है
अंगुलियाँ भाड़े पे मिलती हैं यहाँ
जख्मो पर नमक लगाने को

【कह दो जमाने से】


कह दो जमाने से
मैं तुम्हारी बाढ़ हूं
बेशक मैं कांटेदार हूं
शिशु को उठाए मां वानर
मैं खाते या रोते हुए भी
हर क्षण होशियार हूं।

बेशक पांबदी मैं लगा रही
मैं तुम्हें इंसानी भेडियों से बचा रही
मैं लडाकू खडाकू जो सही
पर नहीं लाचार हूं।

तुम मेरा पौधा हो
जिसे हृदय का लहू दिया
पर तुम्हारी अनुभवहीनता
की साक्षी
मैं तुम्हारे और दुख के सांड
के बीच की खाई
और दीवार हूं।
”मैं आतिश हूँ ,
न छेड़ो मुझकों ,
आतुर अंगुलियाँ झुलसेगी ,
बढेगी मेरी तरफ जो झुलसाने को !

【फिर बनाऊँगी तस्वीर】


दुनिया के जहर को
और माधुर्य चाहिए अभी
करूणा को हृदय अंजुरी भर
बुद्ध को अर्पित की है खीर
सूली पर लटक कर
सहन करनी है पीर
चलो पत्थर उठाओ
देख लो बिष बुझे तीर
हिम्मत है तलवार चलाओ
मैं चट्टान हूं चलो टकराओ
मैं फिर भी प्रेम लिखूंगी
फिर बनाऊंगी तस्वीर।

【मेरी लड़ाई】


मेरी लडाई बस इतनी है
कि बहन को बहन
बेटी को बेटी
बेटे को बेटा
मां को मां
पिता को पिता
प्रेमी को प्रेमी
गांव को गांव
शहर को शहर
देश को देश
सब कह और मान सकें
अपनों को अपना
मेरी तरह।

मैं सांस लेना
चाहती हूं
मैं विश्वास
देना चाहती हूं
मैं नहीं चाहती
प्रेम के प्रति घृणा
मैं तोड़ देना चाहती हूं
दोहरेपन की बेडिया
मैं करना चाहती हूं
अधिकार के लिए
जिरह।

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