श्रवण यादव की कविताएँ

श्रवण यादव जी उतर प्रदेश के संतकबीर नगर जनपद के मूल निवासी है तथा वर्तमान में दिल्ली में सरकारी सेवा में रत है | साहित्य में इनकी गहरी अभिरुचि है और अपने कठिन सरकारी दायित्वों का निर्वहन करते हुए भी सामयिक विषयों पर गद्य और पद्य दोनों विधाओ में निरंतर लेखन के कार्य के कार्य से जुड़े हुए हैं ।

【प्रकृति का वेलेंटाइन…】

पुलक रही आभा वसंत की चहक रहा संसार।
उमडा प्रेम पयोधि का स्नेह-प्रेम-सत्कार।।

मदनोत्सव की धूम है, सजे खेत और बाग़ !
क्यों न जले धू-धू करे लगी जो दिल में आग !!

चटकीले से हो उठे सेमल ढांक, पलास !
मन में उठती गुदगुदी, दिल में उठे हुलास !!

धरती उद्धत हो उठी करने को श्रृंगार !
छोड़ पुराना आवरण सज-धज हो तैयार!!

महुआ मद से फूल रहा, ढीले अंग-प्रत्यंग !
बौराया लहरा रहा , मानो पीकर भांग !!

ठण्ड गयी, जड़ता गयी, चटख हुआ संसार !
सूरज ठिठुरन छोड़कर, लड़ने को तैयार!!

बौर भरे आमो में भी, जगी चेतना नव्य !
भौरे मचल रहे बागो में, पीकर मादक द्रव्य!!

फूट रही गेंहू की बाली में कितना उल्लास !
मधुमय मादक गंध से तृप्त धरा आकाश !!

कूक-कूक कर बाग में कोयल करे आवाज!
दुनिया सारी लग रही बहकी-बहकी आज||

मंद-मंद मोहक सुगंध ने रचा मृदुल संसार।
आलिंगन को आतुर वसंत दोनों हाथ पसार।।

मित्र

दिवस काल से परे मित्र है,हृदय पटल का भित्ति चित्र है।
वह दिव्य शक्ति का आराधन,ना केवल निज हित का साधन।
त्याग भरा अनुराग मित्र है,मन का सुखद निनाद मित्र है।।

जब-जब जीवन लगता दुष्कर,आ जाए वह संबल बनकर।
वात्सल्यपूर्ण-स्नेहिल मिश्रण,सदपथ का सुंदर दर्पण।
जीवन के हर रंग हैं फीके,ऐसा मधुमय स्वाद मित्र है l
त्याग भरा अनुराग मित्र है,मन का सुखद निनाद मित्र है।

धड़कन है सासों के स्वर का विपति काल में कवच हृदय का।
शक्ति, प्रेरणा का उद्गम है,गंगा-यमुना का संगम है।
परम पवित्र प्यार का बंधन,गीता का संवाद मित्र है….l
त्याग भरा अनुराग मित्र है,मन का सुखद निनाद मित्र है।।

सूर्योदय….】

नीड़ में सहमे जो खग थे,सो रहे, सिमटे, विहग थे,
ज्यों मिली उषा की आहट हो चुके सारे सजग थे।
तम हरण को आज तत्पर भा रहा प्रभात था,
विहंगो के स्वर में क्या गा रहा प्रभात था।।

कुमुद ने थे होठ खोले,कौन अपना मधु उड़ेले?
ओस से फिसला पतंगा रात भर तड़पा अकेले।
लुट गया मकरंद सारा भ्रमरों का साथ था,
विहंगो के स्वर में क्या गा रहा प्रभात था।

हौसलों की ये उड़ाने, ले कहाँ जाये न जाने,
ओस के मोती सँजोए मिट गए सारे खजाने।
रात का स्पर्श शीतल तृप्त मन और गात था
विहंगो के स्वर में क्या गा रहा प्रभात था।।

स्वर्ण का कलश लिए, दिग्विजय का यश लिए,
तिमिर के तिलस्म को, दबोचे विवश किये,
बादलो को चीरकर आ रहा प्रभात था,
विहंगो के स्वर में क्या गा रहा प्रभात था।।

【मेरी गीतावली 】
चाहा था कुछ गीत लिखू जब कुमकुम,रोली, चन्दन हो |
गढूं मैं कौतुक कोमलता, जब मलय पवन सुरभित मन हो ||
परवाह बहुत थी कलियों की,भौरों के अल्हड़पन की |
कानो में कुछ कह जातीं रंगीन तितलियाँ उपवन की ||
पर मन मे तो दावानल था,दृग से झर जाते थे निर्झर।
प्यासे मन से कैसे चातक गा सकता था कोमल मृदु स्वर।
फिर राष्ट्र-धर्म का आप्लावन, विप्लव बन छीन लिया यौवन |
ले गया उदधि का ज्वार हमें, कवलित होते सुष्मित बचपन ||
हो गए शमित मन-स्वप्न सजे, तृष्णा ने विकट विराम लिया |
प्रण खातिर प्राण लुटाने को, हाथों में तिरंगा थाम लिया ||
अब करके मन का परित्राण, परिपूर्ण न हो सकता है प्रण |
पक जाने दो पग-छालों को बनने दो इन्हे जीवन का ब्रण ||
बस एक सोच, विश्वास एक अरदास एक हो साँसों में |
हो सदा तिरंगे की छाया, अभिलाष एक हो साँसों में ||

【वीरों के नाम एक दीप जलाना… 】

सीना तान खड़े सरहद पर फौजी हिंदुस्तान के |
बार- बार है नमन हमारा,सन्मुख वीर जवान के ||
वतन के खातिर हो शहीद, जो अपना फर्ज निभाते हैं |
लहू की अंतिम बूंद देश के नाम सौंप सो जाते हैं ||
भारत हो चहुँओर सुरक्षित,मन में यह अरमान लिए |
अपना सुख-दुःख भूल खड़े है,दिल में हिंदुस्तान लिए ||
शीश कटे तो वह भी समर्पित पूजा की पावन थाली में |
वीरों के नाम एक दीप जलाना अबकी बार दिवाली में ||

झेल रहे जो धूप, छाँव, सैलाब, तूफानी रातों को |
हम आप मना ले दिपावली,इसलिए झेलते घातो को||
हम पर तनिक आँच न आये,पर वे तोपों को झेल रहे |
खुश रहे हमारे प्रिय-परिजन,इसलिए मौत से खेल रहे ||
भले हो उनके घर हो मातम,पर भारत खुशहाल रहे |
इतने फौलादी है इरादे, तो देश ना क्यों निहाल रहे ||
हम भी उनका बनें हौसला,खलल ना हो रखवाली में |
वीरों के नाम एक दीप जलानाअबकी बार दिवाली में ||

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