श्राद्ध
तेज प्रताप नारायण ,समकालीन कविता के प्रमुख रचनाकारों में से एक हैं ।इनकी रचनाओं में इंसान और इंसानियत के साथ समूची प्रकृति को बचाने की जद्दोजहद दिखाई पड़ती हैं ।उनकी चिंता हाशिए के लोग हैं । वे समाज मे उनका खोया हुआ स्थान दिलाना चाहते हैं। उनकी कविता संघर्ष की कविता है,प्रकृति की कविता है ।
श्राद्ध की परंपरा पर उनकी यह रचना देखिए।
जब तक ज़िंदा रहे
पिता और माता
तब तक उनके साथ निभाया एक ज़िंदा नाता
थोड़ी नाराज़गी ज़रूर हुई होगी
रिश्तों में थोड़ी मिठास भी घुली होगी
गर कभी ऊँची आवाज़ में उनसे बोला होगा
उसे पछतावे के पानी से धोया होगा
ध्यान रखा उनके एहसासों का
उनकी हर आती जाती साँसों का
कि उन्हें स्वच्छ ऑक्सीजन मिले
रहने को स्वच्छ वातावरण मिले
उनके लिए जो प्रेम है मन में
उसके लिए ज़रूरत नहीं
किसी पितृ या मातृ पक्ष की
वे तो हर पक्ष में मेरी यादों में रहते हैं
मेरी धमनियों में ख़ून जैसे बहते हैं
मैं नहीं मानता
उनकी आत्मा की शांति के लिए
दान या तर्पण ज़रूरी है
किसी क्रिया कर्म का श्रम ज़रूरी है
उनके हर अंश को प्रकृति के उपयोगी बनाया
उनकी चिताओं की राख को पौधों की जड़ो में डाला
जहाँ उनका भौतिक अस्तित्व ख़त्म हुआ
वहीं समाधि बना दिया
और उनके नाम का एक पेड़ लगा दिया
जिस राख को नदी में बहाते है लोग
उसे नए पौधों की खाद बना दिया
अब उन पौधों से कोपलें निकलती हैं
और हवा में हिलती है
तो महसूस होता है
ये वही लोग हैं
जो अपना हाथ हिला रहे हैं
आशीष दे रहे हैं
मानों कोपलों के अंदर असंख्य परमाणु
उनके अंदर के इलेक्ट्रान, प्रोटोन
ख़ुश होकर नर्तन करते हों
हमसे कहते हों
बेटा !
बड़ा अच्छा किया
जो तुमने हमारे लिए
पेड़ों की हत्या नहीं की
नदियों को मलिन नहीं किया
यह जान लेना
यह पौधे नहीं हैं
हम ही हैं
जो तुम्हारे साथ बढ़ते रहेंगे
तुम्हारे साथ चलते रहेंगे
हम तुम्हे ही नहीं
तुम्हारी कई पीढ़ियों को छाया देंगे
जीने का हौसला देंगे
जब जब तुम्हें मेरी याद आए
एक पेड़ लगा देना
किसी प्यासे को पानी पिला देना
किसी बच्चे को पढ़ा देना
यही हमारे लिए श्राद्ध है
हमारे जीवन का साध्य है !
1 Comment
तेज सर को सुनना और पढ़ना दोनों ही बचपन मे जैसे और जानने का कौतूहल रहता है और खत्म नही होता था वैसा ही आज उनको सुनने या पढ़ने के बाद भी कौतूहल रहता है कि अब क्या रचना आएगी।
तेज सर प्रकति और इंसानियत के प्रति काफी संवेदनशील है और यही दोनों बातें उनको सो कॉल्ड लेखक या कवि से अलग बनाती है।
कोई भी प्रकृति और मानवता वादी व्यक्ति उनको पढ़ के उनका मुरीद हो जाता है ,
मैंने कभी पिछले 10 सालों से पढ़ने कि रुचि या समय का बहाना बना के खत्म ही कर किया था। लेकिन तेज सर की रचनाएं पढ़ी उनसे मिला तो पढ़ने के लिए रुचि और समय दोनों आ गई।
बस सर ऐसे की लिखते रहे और हम जैसे पौढ़ावस्था वाले लोगो मे पढ़ने की रुचि जगाते रहे ,इससे अभी भी बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। और मानवता और प्रकति को देखने का नज़रिया ही बदल गया है।
संदीप उत्तम
फरीदाबाद।