श्वान कथा

एक साधारण परिवार में जन्मे और ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े इं दिनेश कुमार सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. किया, और देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज आई. ई. टी. लखनऊ से बी.टेक.हैं ।अन्ना आंदोलन से प्रभावित होकर उत्तर प्रदेश सरकार की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जंग में कूद पड़े,व्यवस्था परिवर्तन और समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।सम्प्रति लखनऊ से प्रकाशित डे टू डे इंडिया दैनिक के उप सम्पादक!
समाज के दबे कुचले उपेक्षित वर्ग की सहायता करते रहते है।

जैसा कि होता है हर आदमी को कोई न कोई शौक जरूर होता और उसे येन केन प्रकारेण पूरा करने का प्रयास भी करता है। जो आदमी जिस परिवेश पला बढा होता उसके शौक भी वैसे ही होते है ।मैं गांव गवई में पला बढा था तो मुझे कुत्ते पालने का शौक बचपन से था पर गांव में देशी पाल लेता था।
1989 में जब नौकरी में आया, सुबह सुबह सड़क पर टहलने निकलता तो देखता लोग अलग -अलग नस्ल के विदेशी कुत्ते टहलाते मिलते उनको देखकर मुझे विदेशी कुत्ते पालने का शौक चर्राने लगा ।फिर क्या था, मैं उन श्वान प्रेमियों से दोस्ती गाँठने का प्रयास करने लगा।उनसे उनके रखरखाव और कीमत के बारे पूछता जब वो उसकी कीमत और रख रखाव के बारे में बताते तो मैं मन मसोस कर रह जाता।उस समय मुझे सब कटकटा के मुश्किल से 2800 रू वेतन मिलता था।और अच्छी नस्ल का विदेशी पिल्ला 5 से 10 हज़ार में मिलता था। मै पिल्ले देखता और उनकी कीमत सुन चुप बैठ जाता।अब किसी से उधार मांगता तो क्या बताता ? कुत्ता खरीदना है।उस समय कार्लटन होटल में डॉग शो होता था और पूरे देश से कुत्ते आते थे मै उनको देखकर मन मार के रह जाता था क्योकि मेरे पास उन्हें खरीदने भर का जुगाड़ नही बन पा रहा था।उस समय कार्लटन होटल के मालिक राजा अजीत सिंह के पास अलग- अलग नस्ल के बहुत कुत्ते थे।
जिनमें मुझे ग्रेटडेंन और जर्मन शेफर्ड बहुत पसंद था। उस समय ग्रेटडेंन का पिल्ला करीब 10 हज़ार और शेफर्ड का 6 हज़ार में का मिलता था। मेरे लिए यह बहुत बड़ी रकम थी।मैंने बचत करने की सोची अपने मासिक खर्चो की सूची बनानी शुरू की और सोचा कि गैर जरूरी कोई खर्च नही करूँगा,काफी काट
छाट के बाद इस नतीज़े पहुँचा कि मैं 500रु से ज्यादा की बचत नही कर सकता और मुझे चाहिए थे लगभग 10 हज़ार। मैंने सोचा इतनी बड़ी रकम तो जल्दी जोड़ नहीं सकता इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि कैसे मेरा ये शौक पूरा हो? फिर एक दिन दिमाग मे आया कि सरकारी अफसर हूँ क्यो न राजा अजीत सिंह से दोस्ती की जाय। मैं कार्लटन होटल में आने जाने लगा ।उनके यहां एक अली था जो केवल कुत्तों की देखभाल करता था, मै रोज़ ऑफिस के बाद होटल पहुंच जाता और कुत्तों के बाड़े के पास टहल के उन्हे देखता रहता था।इस तरह अली से मेरी दोस्ती हो गई। कुत्तों के बाड़े के पास ही राजा साहब का आलीशान काटेज था।एक दिन वो किसी को डांट रहे थे तो मैंने अली से पूछा ,” किसको डाट रहे है ?”
तो उन्होंने बताया, ” साहब के लड़के को एक बंगाली दादा पढ़ाने आते थे वो बीमार हो गए है पढ़ाने नही आ रहे है तो लड़का बिना उनके होम वर्क नहीं कर पाता, तो स्कूल से शिकायत आती है और कक्षा 12 का बोर्ड एग्जाम सिर पर है इसलिए उसे डांट रहे है।”

मैंने कहा,” मै उसका होम वर्क करा सकता हूं ।”
इतना सुनते ही वो राजा साहब के पास गया और मेरे बारे में बताया।उन्होंने मुझे बुलाया ।मैंने अपना परिचय बताया ,तो बोले ,”ठीक है देख लो मै बहुत परेशान हूं,इंजीनियर तो था ही और अपने विद्यार्थी जीवन मे कभी कभी जरूरत बस ट्यूशन भी पढ़ा लिया करता तो ।”

मैंने उसे बहुत मेहनत से पढ़ाना शुरू किया ।अब धीरे धीरे मेरी उनसे दोस्ती हो गई।
महीना पूरा हुआ तो बोले, “भाई आपको कितनी फीस दे दे ? “

मैंने कहा ,” घर का बच्चा है कोई फीस नहीं लेंगे।”
तो वो बोले,” बंगाली दादा 1500रू लेते थे आप को कुछ तो लेना पड़ेगा!”

उस समय मेरे दिमाग में पैसे नही कुत्ते के पिल्ले घूम रहे थे। इंटर का रिजल्ट आया और कुंवर साहब फर्स्ट डिवीजन पास हो गए।अब मेरा सम्मान और बढ़ गया और मैं एक तरह से उनका पारिवारिक मित्र बन गया।एक दिन वो पूछ बैठे,” लगता है आपको कुत्तों का बहुत शौक है ।”

हमने कहा, “है तो बहुत, पर मै इतने महगे नहीं खरीद सकता ।”
उन्होंने तुरन्त अली को बुलाया और कहा,” अबकी जब बच्चे हो और इन्हे जो पसंद हो दे देना।”

उसके दो महीने बाद मै ग्रेट डेन और शेफर्ड की प्यारी सी दो पिलिया लेे आया।
एक का नाम रखा रोजी और दूसरी का लिली।
इस तरह से मेरा ये शौक पूरा हुआ।उसके बाद राजा अजीत सिंह से वर्षों दोस्ती चली।फिर पारिवारिक विवाद में होटल बिक गया और राजा साहब मसूरी शिफ्ट हो गए। इधर कई वर्षों से उस परिवार से कोई संपर्क नहीं है।

इति श्री श्वान शौक कथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *