समझ का खेल

 समझ का खेल

आकांक्षा दत्ता

समझ का ये खेल है,
कि तेरा मेरा क्या मेल है ।

तू धूप सा मैं छांव सी ,
तू है बिसात मैं दाँव सी ।

तू रंगों से भरा मैं श्वेत सही ,
तू पर्वत सा अडिग मैं रेत सही ।

तू सागर है गहरा सा ,
मैं आसमान हूँ ठहरा सा ।

तू आग तो मैं पानी ,
तू एक कविता तो मैं कहानी।

समझ का ये खेल है,
तेरा मेरा क्या मेल है ।

तू पंख मैं परवाज़,
तू लफ़्ज़ मैं आवाज़ ।

तू बूँद मैं बारिश,
तू सपना मैं ख़्वाहिश।

मैं लम्हा तू वक़्त है,
मैं मिट्टी तू दरख़्त है ।

समझ का ही ये खेल है ,
कि तेरा मेरा क्या मेल है ?

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