साइकिल और पर्यावरण

इंजीनियर दिनेश कुमार सिंह बता रहे हैं साइकिल का महत्च !!

60 और 70 के दशक में या कह लो 80 के दशक तक देश मे जनता की आम सवारी साइकिल ही हुआ करती थी तब तक फटफटी आम आदमी की सवारी नही बन पायी थी मोटर कार तो सपना हुआ करती थी।सार्वजनिक यातायात तो न के बराबर थे।हवाई जहाज़ तो कभी कभार आसमान में उड़ता दिख जाता था।आज लगभग बहुत लोगो के साथ साथ मेरे पास भी फटफटी,मोटरकार है और हवाई जहाज़ की भी यात्रा कर चुका हूं,पर आज सोचता हूँ अगर साइकिल नही होती तो मेरे जैसे गांव -गवई में रहने वाले आदमी का क्या होता?
मैं और मेरे जैसे बहुत से नौजवान पांचवी, आठवीं या बहुत बहुत दसवीं से आगे नहीं पढ़ पाते।
मैं अपने गांव से 15 किलोमीटर दूर इंटर कॉलेज पढ़ने नहीं जा पाता।
मैं आलमबाग लखनऊ में किराए का कमरा लेकर 13-14 किलोमीटर दूर लखनऊ विश्वविद्यालय में बीएससी नही कर पाता।
न ही इंजीनियरिंग कालेज से बी.टेक.की डिग्री ले पाता न ही सरकारी नौकरी मिलती और न ही विश्वबैंक और यूनिसेफ जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थानों के साथ काम करने का मौका मिलता।
आज मैं जो कुछ भी बन पाया वो केवल उस एटलस सायकिल के कारण जो पिता जी ने 1978 में ख़रीद कर दी थी अगर वो नही होती तो आज मैं लम्बी – लम्बी रेल यात्रा सपने में भी नहीं सोचता।
हवाई यात्रा करना तो दूर बस दूर से ही जहाज को निहारा करते।
भारत भ्रमण की तो बात ही छोड़ दीजिये गांव से शहर नही आ पाता।
न ही अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर भारत सरकार में अधिकारी बना पाता और उनसे मिलने दिल्ली,मुम्बई कैसे जा पाता।
यदि एटलस साइकिल नहीं होती तो मेरी तो दुनिया ही उजड़ जाती।
आज हम सब पर्यावरण पर बहुत बड़ी बड़ी बातें करते पर उसे सन्तुलित करने के लिए क्या कर रहे है?
आज लोग साइकिल से चलने में अपना अपमान समझते है।चीन की बहुत बाते करते है पर ये नही समझते चीन का हर व्यक्ति साइकिल से चलना पसन्द करता है!
यूरोप साइकिल से चलता है।
इंग्लैंड, फ्रांस व जापान तक साइकिल से चलता है,पर हम सब झूठी शान शौकत के लिए साइकिल को लगभग त्याग चुके है।
नई नई विदेशी चमचमाती मोटरसाइकिल और कारों के दीवाने बन गये है,
मगर हमारी व हमारे देश की शान एटलस साइकिल कम्पनी बन्द हो जाती है और हज़ारो लोग बेरोज़गार हो जाते है आखिर क्यों?
बड़ा सवाल है?
क्या वास्तव में हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हैं ?
इसका उत्तर हम सबको देना है कि हमारे देश में पर्यावरण की रक्षक गर्भवती हथिनी बारूद खिलाकर मार दी जाती है। एटलस साइकिल आर्थिक कारणों से बंद हो जाती है।पर्यावरण दिवस में पेड़ लगाने के झूठे आंकड़े देकर सरकार बस कोरी वाहवाही लूटती रहती है।ये दैवीय और कॅरोना जैसे आपदाएं सब पर्यावरण असंतुलन के कारण है।
अगर अब भी हम सब सचेत नही हुए तो आगे परिणाम गंभीर होंगे।

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