सीमा अहिरवार ‘ज्योति’ की कविताएँ – 2
【मजदूरों के दिन】
कई दिनों फांके किए,
कोई न आया सामने.
मिन्नतें की, गिडगिडाए
कोई न आया सामने.
एक दिन रोटी मिली,
थे कौए हजारों सामने.
कई दिनों चलते रहे,
सुनसान सूनी राह पर.
पथ पर थे काँटे बहुत,
चुभते रहे, टूटे बहुत
फिर मिला सीधा सा रास्ता
कितने खड़े थे सामने.
कई दोनों रोते रहे,
कमजोरियाँ ढोते रहे,
सबको बढ़े अच्छे लगे.
एक दिन जब जागे हम,
इल्ज़ाम के गुलदस्ता लिए,
सब ही खड़े थे सामने.
【मुश्किल सफर】
है बहुत मुश्किल सफर
चारों तरफ़ तूफ़ान है
हलचले कंपन बहुत है
जाने कैसी गर्जना है
साँसों में अजीब उफान है,
डगमगाती ही रही
कश्ती पड़ी मजधार में
है बहुत मुश्किल सफर
चारों तरफ़ तूफ़ान है
जर्रे जर्रे में अंधेरा
उड़ रही पतवार भी
है घना मौसम बहुत
ओलों की जैसे मार भी
विजली चमकी दिख गए हम
है बहुत मुश्किल सफर
चारों तरफ़ तूफ़ान है
सब तरफ़ ही बाढ़ है
डव डबाई कश्ती मेरी
पानी में हिचकोले लिए
हाथ छोड़े
कैसे निकले उस पार हम
है बहुत मुश्किल सफर
चारों तरफ तूफान है.
【चलना पड़ेगा..】
तुम्हें चलना पड़ेगा
आज और कल में
ढलना पड़ेगा
तुम्हें चलना पड़ेगा .
उठते है ज्वार भाटे
है चुंबकीय तरंगे
उठ उठ के वो है गिरते,
चाँद की कलाओं से
गुजरना पड़ेगा,
तुम्हें चलना पड़ेगा.
दिल दर्द से है भारी,
थकन की है खुमारी,
बोझिल है सारा आलम,
बेदर्द है जमाना
जीवन दरख़्त पतझड़
नए पत्तों में ढलना पड़ेगा
तुम्हें चलना पड़ेगा.
न दो मखमली बिछौने
न स्वप्न वो सलोने
न वो मीठी नींदे
न वो फुर्सती फसाने
अब धार बीच में
मझधार में खड़े है.
जीवन नदी में तैरना पड़ेगा
तुम्हें चलना पड़ेगा.
आज और कल में ढलना पड़ेगा,
तुम्हें चलना पड़ेगा.
【रात】
ये रात घनी लंबी लगती है,
शायद कुछ तो कमी लगती है.
मैं चुप चाप हूं, ख़ामोश जमी है,
शांत आसमा, अवाज थमी है.
आज अकेली लहर बन के जो निकलू
कितने सागर उमड़ेगे,
ग्रास बना लेंगे वो मुझको,
अस्तित्व न मेरा होगा.
सोच किनारे बैठी हूँ मैं,
कल भोर की बेला होगी.
ये रात घनी लम्बी लगती है,
शायद कुछ तो कमी लगती है.
छम छम नाचूँ गीत सुनाऊँ,
उड़ उड़ परी परी बन जाऊँ,
जो भीतर है बाहर लाऊँ,
दुनिया भर में आऊँ जाऊँ,
कैसे मैं मन को समझाऊँ,
कितनी सुंदर जमीं लगती है,
ये रात घनी लंबी लगती है,
शायद कुछ तो कमी लगती है.
【अमावस】
जीवन रात अमावस है
कुछ दीप जलाने है.
आँखो में चमक आ जाए,
इतने उजाले लाने है.
सुर ऐसे सजे संगीत बजे,
धुन ऐसी मधुर हो,
कुछ अच्छे नगमे गाने है.
जीवन रात अमावस है,
कुछ दीप जलाने है.
पहले से बनी कुछ आकृतियां,
अब जाने क्यों विकृत लगती है.
इन धुंधली धुंधली दीवारों पर,
सुंदर चित्र लगाने है.
जीवन रात अमावस है,
कुछ दीप जलाने है.
खुले असमा और छते हों,
रोशनदानी खिड़की हों.
मीठे सपने सजाने है.
जीवन रात अमावस है,
कुछ दीप जलाने है.
नहीं नींद है जिन आँखो में,
नहीं चैन है जिन रातों में,
कुछ अच्छी बातों से,
उनके दिल बहलाने है.
जीवन रात अमावस है,
कुछ दीप जलाने है.
5 Comments
बहुत अच्छी कविता हैँ
Nice✨
very nice poems
amazing
Nice poem