सीमा अहिरवार ‘ज्योति’ की कविताएँ – 3

 सीमा अहिरवार ‘ज्योति’ की कविताएँ – 3

 [ व्यथा ]

नौजवाँ  खून  जब  चला  जाए  दुनिया  से

मजबूत  कांटे  सा  टूटता  है  तन  में

वो  गलता  नहीं

निकलता  नहीं

धसता  जाता  है

अंग अंग  में

चीरता  जाता  है

दिल  के हर एक  कोने  को

आंख  से पानी  नहीं

खून  टपकता  हो जैसे

नौजवाँ खून  जब चला जाए  दुनिया से

मजबूत  कांटे सा  टूटता है  तन में

कौन  किसको  दिलासाऐ  दे  अब

एक  मौन  है  खामोशी  है

हर शब्द  ले गया  जैसे

याद  ही  याद  उसकी  बाकी  है

ढूंढ  के लाएं  हम  उसे

न उम्मीद  कोई  बाकी  है

नौजवाँ  खून जब चला  जाए दुनिया से

मजबूत  कांटे सा टूटता  है तन में

बोझिल  कदमों  से  चल  रहे  है  सब

याद  नहीं  क्या  करें   अब

साथ  है  सब   मगर  कितने  अधूरे

जैसे  सब  का  साथ  बाकी  है  अभी

जैसे  सब  का  साथ बाकी  है अभी

कितने  दिन  लग  जायेंगे

भूलने  में  उसे

अभी  तो  ये सबाल  बाकी  है

नौजवाँ  खून जब  चला जाए  दुनिया से

मजबूत  कांटे सा  टूटता है तन में.

 [ शबनम ]
आज ऐसे  लग रही  हो

जैसे  शबनम  में  नहा  आई  हो  तुम

होंठ  लग  रहे  हैं ऐसे  गुलाबी

पंखुड़ियां  लगा  आई हो तुम

गालों  के है  उभार  ऐसे

कुछ  अपने  अंदर  भरके  लाई  हो तुम

आंखो में  रंग  गहरे

कैसे  चुरा  लाई  हो तुम

है घनेरी जुलफे  तुम्हारी

बदली  सी उङती  आई  हो तुम

है चमक चेहरे  पे इतनी

चाँदनी  सी छाई हो तुम

आज  ऐसे  लग रही हो

जैसे  शबनम  में नहा आई  हो तुम.

    [बुद्ध सा हो जाना]

कविता  की  जननी  क्या  है?

पीड़ा  प्रेम   या बुद्ध  सा हो जाना

अपने सुख  दुख  से हटकर  एक

नया  उजाला  फैलाना

ये जीवन  सुख  की  खातिर  है

पर  सुख  ही  दुख की  माता

चीजें  सुख  का कारण  है

यही  दुखों  की  दाता  है

कविता की जननी क्या है?

पीड़ा   प्रेम  या   बुद्ध सा हो जाना

दुनिया  भरा  समन्दर  है

कितना  सुन्दर  मंजर  है

सब कुछ  पाना  आसा  है

पर  खुद  को  पाना  मुश्किल  है

जिस  दिन  तुम  खुद को पाओगे

स्वयं   बुद्ध  हो  जाओगे

कविता की जननी क्या है?

पीड़ा   प्रेम  या बुद्ध सा हो जाना

दया  याद का  कारण  है

त्याग  तपस्या  जैसा

जीवन  शांत  सुगंधित  हो

सो  हलाहल  भी  पी  जाना

हाँ  शायद  शिव  सा  हो जाना

कविता  की जननी क्या है?

पीड़ा  प्रेम  या बुद्ध सा हो जाना

 [ सफ़र ]

सफर  को चलने दिया  जाए

ये  जो मटमैला  धुआं  धुआं  सा  है

इसे  घुलने  दिया  जाए

सफर  को  चलने दिया जाए

ये अजीब  सी  उलझनें

वेवजह  की  खामोशी

वेबात  के  सदमे

इन्हें  टलने  दिया  जाए

सफर  को  चलने दिया जाए

ये वेसबब  से  सपने

जो  होते  नहीं  हैं  पूरे

ख़्वाहिशों  में  उनको  भी

पलने  दिया  जाए

सफर  को  चलने दिया जाए

1 Comment

  • अतिसुन्दर हैँ

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