ख़ून

 ख़ून

महेश वर्मा

खून
नहीं बाँटता है
हमें खून।
बल्कि बांटता
और काटता है ,
ये धर्म-मजहब, लिंग
जाति और नस्लवाद का
क्रूर व अमानवीय
भेद-भाव युक्त जुनून।
ऊपर से हाँकते है
अपने-अपने बड़प्पन की
बढ़-चढ़कर के डींग।
जान को जब
आये संकट।
और खून की जब
पड़े जरूरत ।
तब सब खून
लगे इक रंग।
न कोई न हिन्दू,
न कोई मुस्लिम ।
न इसाई और यहूदी।
न कोई काला
न कोई गोरा।
नर हो या नारी
सब का खून
लगे हैं न्यारा।
सब में बहता
इक ही खून ।
हर मानव
लगाता है प्यारा।
-महेश वर्मा/12-01-2020/औ

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