21 वीं शताब्दी के हिंदी साहित्य का इतिहास

दोस्तों !!!

आज देश के कोने कोने में सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं ।साहित्य की विभिन्न विधाओं में सिर्फ़ हिंदी साहित्य से बी ए ,एम ए किए हुए विद्यार्थी या विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफेसर ही नहीं लिख रहे हैं बल्कि आज गाँव से शहर तक के लोग ,मज़दूर,व्यापारी,महिलाएँ, किसान,अधिकारी,पत्रकार,डॉक्टर इंजीनियर आदि भी साहित्य की अलग -अलग विधाओं में लगातार लिख रहे हैं ।इसमें अधिकतर लोगों के पास न कोई लॉबी है और न ही पहुँच या प्लेटफॉर्म जिससे उनके योगदान को साहित्य में दर्ज़ किया जा सके ।

हिंदी साहित्य के अब तक के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डालने पर यह पता चलता है कि यह भौगोलिक और सामाजिक रुप से बहुत सिमटा हुआ है ।यह देश के हर वर्ग ‘हर क्षेत्र ,हर इंसान का प्रतिनिधि नहीं करता है ।कुछ विशेष तबकों को छोड़कर यह अधिकाँश लोगों को रेकॉग्ननॉइज़ नहीं करता ।साहित्य एकडेमी पुरुस्कार की सूची ही यदि देखी जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है ।इसी की प्रतिक्रिया में दलित साहित्य का उदय हुआ लेकिन दलित साहित्य केवल दलित तबके द्वारा लिखे गए साहित्य को माना जाता है ,शायद दलित साहित्यकारों ने साहित्यिक षड्यंत्रों से ख़ुद को बचाने के लिए यह किया होगा।

साहित्य को साहित्य तभी माना जा सकता है जब वह सभी की बातों को समाहित कर पाए ,सभी के हितों का ध्यान रख पाए ।यहाँ सभी का मतलब देश की अधिकतम जनसंख्या के हित से है ,क्यों कि अधिकतम के हित में कुछ लोगों को लगेगा कि उनका अहित हो रहा है ।यहाँ अधिकतम को बुद्ध के शब्दों में बहुजन भी कह सकते हैं

ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि एक मुहिम चला कर लोगों को एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जाए ,जहाँ लोग संगठित तरीके से अपनी बात रख सकें।अपनी अभिव्यक्ति को पर दे सकें । परिवर्तन इस दिशा में काम कर रहा है जिसके तहत ,वार्षिक काव्य पत्रिका मशाल का प्रकाशन किया जा रहा है जिसमें स्थान पाने की एक ही शर्त है रचनाओं की क्वालिटी ।दूसरा है the parivartan.co.in जहां लेेेखक मंच पर जाकर आप ख़ुद ही रचनाएँ प्रेषित कर सकते हैं ।

लेकिन तीसरी सबसे ज़रूरी चीज़ है वह लेखकों के इतिहास को बिना किसी भेदभाव के सामने लाना जो दुष्कर और श्रम साध्य कार्य है।अलग- अलग भौगोलिक परिवेश और अलग अलग कार्यक्षेत्रों के लेखकों की गिनती करके उन्हें इतिहास की किताब में स्थान देना थोड़ा मुश्किल ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं ।

ऊपर वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अलग -अलग जगहों से स्वयंसेवकों की ज़रूरत है जिन्हें दूरदराज और आसपास के लेखकों ,साहित्यकारों को गुमनामी के अँधेरों से निकालकर साहित्य के आकाश में हमेशा- हमेशा के लिए स्थापित कर देना है। जिससे आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें पढ़ सकें ,सहेज सकें।

यदि साहित्य के महती कार्य में आप सहयोग देना चाहते हैं तो अपना नाम और संपर्क parivartan20142014@gmail.com पर मेल कर सकते हैं ।

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