अफीम

 अफीम

Vijay Gautam ‘मूकनायक’

विज्ञान कई दिनों से जागा किसी लैब में जूझ रहा था.
समस्या जटिल थी,
संसाधन कम थे,
और उस से भी कम था समय.
खोज के लिए समय चाहिए था ,
समय लाशों के दाम मिल रहा था.
धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को कहीं बेच दिया था,
सो मानव-सेवा छोड़ चुपचाप कहीं सो रहा था.
अफ़वाह उड़ी कि समस्या विज्ञान की गलतियों का परिणाम है.
धर्म के ठेकेदारों ने पंडाल खोल लिए,
धरती पर पाप एकाएक बढ़ गया था.
विधाता प्रकोप प्रकट कर रहा था,
डर का व्यापार ज़ोर पर था,
हर पल होती मौत सबूत था,
हर तरफ़ डर ही डर.
हर मौत पर पंडालों में भीड़ बढ़ रही थी.
प्रशासन ने विज्ञान का हाथ थाम रखा था,
विज्ञान को हल तो नहीं मिला , लेकिन बचने के कुछ तरीके बताए,
विज्ञान ने कहा वायरस मेल-जोल से और फैलेगा,
पंडालों से लोगों को निकालो.
घरों में रख कर सुरक्षित करो.
प्रशासन ने समझाया,
लेकिन अफीम लोगों की समझ खत्म कर देती है,
प्रशासन ने डंडे चलाना शुरू किए,
व्यक्ति महत्वपूर्ण थे उसके लिए,
पंडाल टूटे, धर्म के ठेकेदार जागे,
एक शातिर खिलाड़ी की तरह,
उन्होंने प्रशासन और विज्ञान को हेय दृष्टि से देखा,
जैसे दोनों तुच्छ हो, निम्न और कमजोर हो,
उन्हें अच्छे से मालूम था कि लगाम कैसे लगाई जाय,
राजनीति को तलब किया गया,
निकम्मी राजनीति खुद मुँह छुपाए बैठी थी,
हॉस्पिटल, डॉक्टर, प्रयोगशालाएं सिर्फ कागजों और चुनावी पोस्टरो में थे,
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, लोगों को घरों से बाहर धकेल रही थी,
धर्म अच्छा तरीका था, इन सभी के इलाज का,
राजनीति धर्म के आगे नतमस्तक हो गयी.
प्रशासन कुछ नाकारा तो था ही,
अब राजनीति के दबाब में मजबूर भी हो गया.
अगले दिन, प्रशासन की डंडे पर पकड़ कमजोर हो गयी,
न्यूज चैनल के एंकर भाट बन गए,
अख़बार तारीफों के पुल बाँधने लगे,
कुछ लैब जिनकी रातभर बिजली जलती थी अब नहीं जलती,
हजारों साल पुरानी तर्कहीन किताबों से कुछ नुस्खे पैदा किए गए,
और पंडाल के नीचे अफीम पिए लोगों को पिला दिए गए.
तर्कहीन नुस्खों और पद्धतियों को विज्ञान घोषित कर दिया गया,
धूर्त और लंपट मार्गदर्शक बन बैठे,
मौतें तय थी, सो हो गयीं.
मौतों को पाप का परिणाम बता दिया गया.
पंडालों में लोगों की संख्या बढ़ने लगी,
अफीम जीने की जरूरत बन गयी,
धर्म के ठेकेदारों का व्यापार फलने-फूलने लगा.
अजीब सौदागर थे, मौतों में भी मुनाफ़ा खोज लिए.
अब विज्ञान की लैब नौ से पाँच की शिफ्ट में चलती है, सिर्फ चलने के लिए.
लाचार विज्ञान लहूलुहान हुआ किसी अंधेरे कोने में पड़ा कराह रहा था .
चेतना और तर्क अफीम से एक बार फिर हार गए.

Religion_is_opium_of_the_masses__Karl_Marx