तेज प्रताप नारायण किसी देवी देवता की आरती ,पूजा करनामूर्तियों के सामने हाथ जोड़नाखुदा के सामने सजदा करनाही प्रार्थना नहीं होती असली प्रार्थनाएक शुभकामना होती हैकिसी प्रिय के स्वास्थ्य और सफलता कीमानसिक कामना होती है असली प्रार्थना के लिएकिसी मंदिरमस्जिद या गिरजाघर की ज़रूरत नहीं होती हैसच्ची प्रार्थना की जा सकती हैकभी भीकहीं भी एक […]Read More
सतीश कुमार सिंह पुराना काॅलेज के पीछे , जांजगीरजिला – जांजगीर-चांपा ( छत्तीसगढ़ ) 495668मोबाइल नंबर- 94252 31110 छायावाद और छायावादोत्तर काल से लेकर समकालीन हिंदी कविता तक लंबी कविताओं का एक दौर चलता रहा है और आज भी नये पुराने सभी रचनाकार समय समय पर इसमें हाथ आजमाते रहे हैं । इसमें कोई दो […]Read More
मयंक यादवज़ाकिर हुसैन हॉल,कैंपस बी जामिया नगर,नई दिल्ली-110025 दिसंबर। वो महीना जो अंतिम है। वो महीनाजो पतझड़ का है। वह महीना जो थक चुका है। जो अकेलापन देता है, पेड़ के सूखे पत्ते नीरसता देते हैं। सर्द हवाएँ और खाली सड़के जैसे कदमों को जड़ कर देती हैं। जिस महीने में मन के साथ-साथ तन […]Read More
By :Dr Ritu Rani, (Researcher & Assistant Professor ,Hindi ) भारतीय रंगमंच कहते ही हमारे जहन में शास्त्रीय रंगमंच की एक छवि उभरकर आती है । लेकिन ‘लोक’ को भारतीय रंगमंच का पर्याय बनाने में हबीब तनवीर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है । देखा जाए तो हबीब तनवीर ने अपने नाटकों में […]Read More
By: Tej Pratap Narayan,Author of dozens of Literary Books रक्षा बंधन एक अवसर है सोचने ,समझने और जानने का कि किसकी किससे रक्षा करनी है? आज किसको रक्षा की ज़रूरत है ? भाई को बहन की रक्षा करनी है ? या भाई को पहले अपनी रक्षा करनी है खुद के कुत्सित विचारों से जो अपनी […]Read More
_तेज प्रताप नारायण बक्सर, बिहार के #लक्ष्मीकांत मुकुल वैसे तो विधि स्नातक हैं लेकिन खेती-किसानी में ही उनका मन रमता है । ‘घिस रहा है धान का कटोरा’ उनकी एक लम्बी कविता है ।लम्बी कविताएँ वैसे भी इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में कवि कहाँ लिखते हैं और जो कुछ लिखी भी जा रहीं है वे […]Read More
सबके साथ होने को सहर कहें या गुमनाम होने को रात कहें 2019 की भीड़ में अकेलेपन की तलाश या 2020 में अकेलेपन का साथ करें आओ बात करें नकारात्मक बातों का अतिचिंतन करें या शेयर अपने जज़्बात करें डिप्रेशन रूपी विदाई को याद करें या फ़ोन पे वर्चूअल बारात करें आओ बात करें एक […]Read More
आज सुबह से ही चौधरी काका के चेहरे पर उदासी की पीड़ा और निराशा झलक रही थी। कुछ बताया तो नहीं पर, बिना खराई किए, सुबह से ही बाबू जी की बैठक मे अकेले ही हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे । कई बार कुरेदने पर भी सिर्फ चुप रह गये थे।आज तो काकी ने भी सुबह […]Read More
२००७ , जयपुर,की तपती मई की दोपहरी में , मैंने परिक्षा भवन से बाहर निकल कर छाँव के लिए एक बरगद के पेड़ की शरण ली,तो पास ही तपती धुप में खड़े एक ठेले वाले पर नजर पड़ी और वहीं टीक गयी। संभवत: पेड़ के नीचे लगी स्थायी दुकानों और लोगों की भीड़ में ठेले […]Read More
साहित्य , समाज एवं कला को समर्पित साहित्यक संस्था परिवर्तन साहित्यिक मंच , दिल्ली लगातार नई उपलब्धियां प्राप्त कर रहा है। इसी कड़ी में हाल ही में दिनांक 13 जुलाई को हुए परिर्वतन के लोकप्रिय पाक्षिक ‘वार्ता’ कार्यक्रम ने अपने 100 भाग पूरे कर लिए हैं। इस ख़ास एपिसोड का विषय ‘बुद्ध जैसा कोई नहीं’ […]Read More