एकलव्य

 एकलव्य

कानपुर के युवा कवि और कथाकार अभिषेक पटेल ‘अभी ‘ सम्प्रति इलाहाबाद बैंक में कार्यरत हैं ।’ एकलव्य ‘सामाजिक यथार्थ की एक समसामयिक कविता है ।

तुम बने रहो एकलव्य !
पूजते रहो द्रोणाचार्य !
बलि देते रहो अपने अंगूठे की !

तुम क्यूँ नही समझते ,

कि
तुम्हारी योग्यता ,
तुम्हारी कला प्रवीणता ,
तुम्हारा साहस और धैर्य ,

किसी प्रतीक के आगे अभ्यास करने से नहीं आया |
ऐसे गुरु को पूजने से नही आया जो भेदभाव करे |

बल्कि

वो आया है ,पसीने से अपनी
योग्यता को परिष्कृत करने से |
वो तो मिला है कई राते भूखे सो करके  |
परिस्थिति की पीड़ा में अकेले रो करके ||
मुफलिसी को ताकत बनाने से |
स्थापित पूर्वाग्रह को मिटाने से ||
सफल होने को जीवन मृत्यु का प्रश्न बनाने से |
स्थापित सिंघासनों को योग्यता से हिलाने से ||
तभी
वो मांग लेते है, तुझसे गुरुदाक्षिणा के नाम पर योग्यता की बलि |
ताकि संसार में अर्जुन बने रहे कथित श्रेष्ठ और तेरा नाम हो धूमिल ||
ऐसा कब तक चलेगा ?
एक अयोग्य को योग्य से श्रेष्ठ साबित करने,
की  कुटिलता से बुरा ,
कुछ नहीं हो सकता !

तुम बने रहो एकलव्य !
पूजते रहो द्रोणाचार्य !
बलि देते रहो अपने अंगूठे की !

तुम क्यूँ नही समझते।।।