जितेंद्र राज चावला की कविताएँ

 जितेंद्र राज चावला की कविताएँ

जितेंद्र राज चावला एक लेखक, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक, राजनीतिक विचारक हैं जो समाज में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं।

 दिल्ली विश्वविद्यालय (किरोड़ीमल कॉलेज) से शिक्षा प्राप्त की है ।
भारतीय संचार संस्थान दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता किया है । इतिहास के अध्यापक है ।

【1 】

इक तेरे, जहन में मेरे ख्यालों का गोते खाना,

इक तेरा सपनें में आना, मेरा दिन बन जाना !!

इक तेरा आईने में देख,सोचना..मुस्कराना,

चहरें पर मेरा नाम उभर आना, आईने का पढ़ना !!

एक पल का समय, मेरी याद को देना,

बस यही तो है, मेरी मोहब्बत का मुक्कमल होना !

【 इश्क लिखता हूँ…】

पढ़ी लिखी,डिप्लोमाधारी बेरोजगारी से दगा कर

इश्क में जीता हूँ, बेरोजगारी में मर-मर कर !!

प्यार करती लड़कियाँ, गढ़ता हूँ पर्दे पर

पर्दों से झाँकती, नज़रों ही नज़रों में जमी में धंसती

प्यार में झुलसती, बेटियां देखता हूँ,घरों की छतों पर !!

जुल्म सहते, चू तक न करते

अपनों को ही अपने गिराते, पैसे कमाकर उच्च समझते

अधिकारों बराबरी से महरूम, हर आदमी में न जाने कितने मज़लूम देखता हूँ !!

वोट बेचते, वोट खरीदते

इंसानों की मंडी देखता हूँ

दलालों को पनपाते, आजाद-गुलाम देखता हूँ !!

राजा की लिख यश बटोरता, टाइपराइटर देखता हूँ

दो रुपये की कलम से भी, सच लिखा देखता हूँ

जिंदा इंसानों का भी,ऐसा हाल देखता हूँ !!

बेरोजगारों में, परत-दर-परत छुपा इश्क खोजता हूँ

इश्क का काम देकर,उनमे हुनर खोजता हूँ

इश्क लिखता हूँ, इश्क खोजता हूँ…

सौदा

प्यार,आज़ादी,बराबरी चाहनेवाली-प्रेमिका

ढूंढने लगती, गले तक नोटों से भरा पति

क्रांति-पंसद प्रेमिका…

पेन-किताबें,नारें निकाल फेकती,झोले-से

ढूढ़ने लगती, गुलाबी नोट

ईमादार नेता पर, कंगूरा बनाने वाली पार्टी

दफ़न कर देती है नीव में उसकी दशकों की भक्ति

पार्टी फंड, बड़े नेता चाहतें,लक्ष्मीदर्शन

वोट की क़ीमत,जाननेवाले

एक रात में,कमा लेते है हफ़्तों का राशन

अभावों में जीने वाले,इस रात पीते छक-कर

भूला देते,पीड़ा-उसूल और दुःखों के साथी, उस नेता को

हरा देते,अपने ही चले दाव

तभी-से,एक कौड़ी के इक्के से मात खाता रहा बादशाह

नशा उतरने पर

चाय की टपरी,चौराहों,चौपालों पर

उसूल खड़े किये जाते

फिर अंधेरी रात में उनका सौदा

【  मुर्दा, दीवार फांद गया…】

तुमने “उजालों” को ही बिकते देखा है

कौन है वो?, जो “अंधेरा” भी बेच गया !!

उजाले का चोर, उसे ही मुक़र्रर कर दो

अन्धेरें के विरुद्ध, जो जुगनुओं में हिम्मत भर गया !!

जात-धर्म के गुणा-भाग सुन, कांधों को अचम्भित कर गया

ये कौन-सा मुर्दा है, जो दीवार फांद गया !!

देखों-देखों एक और मर गया, कौन जात? कौन धर्म?

मुर्दा उठा,रुपयों की गठ्ठरी दी, जात-धर्म को लड़ा खत्म कर गया !!

जिंदा इंसानों को जो न सूझी, एक मुर्दा कर गया

शमशानों की दीवारें तोड़, उन्हें एक कर गया !!

संपर्क : jitendrarajchawla@gmail.com