नीना छिब्बर की कविताएँ

 नीना छिब्बर की कविताएँ

गृह स्थान.. जोधपुर
शिक्षा..एम.ए (हिंदी,अँग्रेजी)बी.एड
पी.एच.ड़ी हिंदी
सेवानिवृत्त अँग्रेजी व्याख्याता

संप्रति…स्वतंत्र लेखन। विधा..लघुकथा, कविता, हाइकु, पिरामिड, सायली, बाल साहित्य, समसायिक आलेख, । 50 से अधिक साझा संकलनो में लघुकथाएं, कविताएं और आलेख।
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन ।
मीरा भाषा सम्मान लघुकथा विधा 2020
रक्तदान निबंध ..उत्कर्षटता सम्मान

टिप्पणी -नीना छिब्बर की कविताओं में ज़िन्दगी का तज़ुर्बा दिखता है ।इनकी कविताओं में आधुनिक समाज की त्रासदी तो दिखती है लेकिन ज़िन्दगी के प्रति आस्था भी बिल्कुल कम नहीं होती है । इनकी कविताएँ उम्मीद की कविताएँ हैं जो यादों के संदूक से कुछ न कुछ निकाल लाती हैं जो मानवीय रिश्तों के प्रति आस्थावान होने को प्ररित करती है और इस संदूक से केवल एहसास नहीं निकलते हैं बल्कि शब्दों के ऎसे फूल झरते हैं जो मन को मोह लेने की क्षमता रखते हैं ।मानवीय रिश्तों की टूटन शब्दों के फेविकॉल से जुड़ने से लगते है ।

【 चुप क्यों हो ? 】

.अंधकार ने पूछा सूरज से
छाए हैं स्वार्थ के घनघोर बादल
जल थल नभ सब विचलित
पवन विषाक्त लेते सब जीव
जल में मिलते निशदिन मृत जीव
धरा हो रही बेकल , बेबस, बेजार
दिखला अब अपना सात्त्विक रूप
भर दो कण -कण में उर्जा अशेष
दो किरणों से उमंग तरंग उजास
प्राण दो, त्राण दो, जीव को प्रकाश दो
चुप क्यों हों?
प्रकृति ने पूछा मानव से
कटे -छटे सब वन -उपवन पर्वत
फूल भूले रंग -गंध, भंवरे भूले गूंजन
शाखाओं पे नहीं दिखते मीठे फल
पेड़ों पर नहीं पाखी कलरव सुबह शाम
भूले पाखी पंख फैला कर नृत्य गान
. हे बुद्धिमान ,ज्ञानी मानव अब जाग
सुध ले ,वचन ले, फिर कर धरा से संवाद
पेड़ों को, पौधों को, जंगल की हर राह को
प्यार दे, दुलार दे, रक्षक बन,संरक्षक बन
चुप क्यों हो ?
ईश्वर ने पूछा मानव से
बच्चों का बचपन छीना तकनीक ने
बड़ो का चैन लूटा धनलिप्सा ने
युवाओं को नशे ने किया बेहाल
वृद्धों ने खोया ,अपना ही घरबार
रिश्तों ने खोई भीतर घुलती मिठास
मन पर भारी है बुद्धि की गतिमान चालें
बुद्धि पर भी चलती है सोने की छड़ी
उतम जीवन बना खंड़ित खंडहर
मेरी तुम उतम कृति ,जाग और जगा
लौटो फिर से संस्कारो की ओर
लाओ मधुरता, कोमलता,भोलापन
निर्मल मन, निर्मल हास्य,निर्मल व्यवहार
अंश तुम मेरे उठो, बढ़ो, बढ़ाओ संसार
चुप क्यों हो ?

【घर बसेरा ना रहा 】

बढ़ने लगे पंख ज्यूँ-ज्यूँ
उगने लगे नव स्वपन त्यूँ -त्यूँ
फैलाने लगे नन्हें अपने अरमान
ढूंढ़ने लगे तब नया आसमां
सच है घर तब से बसेरा ना रहा ।।

भीतर ही जब भाव ना हो
अंतस की गर्माहट लुप्त हो
मन में खिची दीवार जब हो
बातों में तकरार जागे पल पल
साँसो में घुटन बढे़ जब तब
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।

मौन फैले हर दिशा में
क्रूरता दिखे ममता में
अबोले शब्दों की भरमार हो
दृष्टि में भी घृणा पनपे हर बार
जुबां पर कड़वाहट बसे
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।

. खून के रिश्तों में धार दिखे
आपसी बातें भी व्यापार लगें।
छोटे मुद्दे जंग बने जब
आँखो की हया हटे जब
चेहरे की नरमाई लुप्त हो
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।

बड़ों का मान घटे जब
बातों में तूफान झलके पल पल
संबंध भी बंधन लगे जब जब
घर की दीवारो दर ड़रे जब
हाथ ही हाथ को ना थामे जब
सच है घर तब से बसेरा ना रहा।।

【 माँ का संदूक】

मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का
बडके की पैंट का लाल बटन
छुटके की शाला का नंबर कार्ड
मझली बहुरिया की बिंदिया का पता
और अपनी पुरानी फोटु का एक टुकड़ा
मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का ।।

उनकी पेंशन और मृत्यु पंजीकरण का कागद
बिटिया की शादी का कार्ड व बिल
नन्हे के हाथो की छोटी मुंदरी
गुडिया के पैरों की झुनकती एक पायल
सुख दुख के टुकड़ो मे बटा लंबा जीवन
मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का ।।
अपनी अम्मा के हाथो बनी
बहुत पुरानी खेसल का टुकड़ा
मखमल की गुत्थी मे पुराने
गिट्टे, ऊन,डोरे, एवं सुए सिलाईयाँ
बुनती है यादें, सीती फटे रिशते
बनाती अदृश्य ऊन के छोटे -छोटे मोजे
सूखे चेहरे पर गीली सी आँखे
मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का ।।

संदूक की अखबार के नीचे
जिंदगी के हिसाब किताब की
फटी पुरानी कापी पर अनेको आँँकडे
जमा घटा,जोड बाकी अपने तरीकें के
रखती है हिसाब इस असार संसार का
पाती है हिम्मत संदूक के ऊपर लिखे
अपने बाबा के नाम से
मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का।।

थके हारे चेहरे पर रूठी सी मुस्कान
झुर्रियां भरे हाथों की बीटी
कुछ घुंघरू बेआवाज़ और सिक्के खनकदार
दिखाती है धूप ,निकलती हैं टीसें
समझाती है दिल को ,दे कर आशीषें
मेरी माँ के संदूक मे
एक खजाना है यादों का ।

【 उम्मीद 】

उम्मीद
मात्र एक शब्द नहीं है
इसमें छिपा है एक संपूर्ण संसार
यह है आशा का इतिहास और जीत का विज्ञान
उम्मीद है भूखे के लिए स्वादिष्ट रोटी
प्यासे के लिए ओक भर पानी
थके हुए के लिए पेड़ की छाया
अकेले के लिए साथी अनजान।।
उम्मीद
मात्र एक शब्द नहीं है
यह जगाता है मरूस्थल में हरियल आस
सागर में मीठ्ठे पानी का विश्वास
चिलचिलाती गर्मी में बादल का टुकड़ा
घोर वर्षा में सर पर टूटी छत
अंधेरी रात में दिए का प्रकाश।।
उम्मीद
मात्र एक शब्द नहीं है
यह है जादू की बंद पुड़ियाँ
जिस में छिपी हैं लाखों आशाएं
खोलोगे तो अदृश्य हो जांएगी
बस रखों इसे जेब में सुरक्षित
कूच करो ,जीत लो जग।।

【बेटी 】

हृदय में धड़कन की तरह
धड़कन में साँसों की तरह
साँसोंं में सम -लय की तरह
लय में राग- ताल की तरह
होती है बेटी ।।
मस्तिष्क में भावों की तरह
भावों में जीवन की तरह
जीवन वन में जी की तरह
जी में आस-आल्हाद की तरह
होती है बेटी।।
शरीर में रक्त सी बहती है
रक्त में संस्कारों सी चलती है
संस्कारों में संस्कृति सी बढ़ती है
संस्कृति में उन्नत भाल सी
होती है बेटी ।।
घर में गीत सी गूंजती है
गीत में धुन सी रचती है
धुन में सुर सी सजती है
सुर में सौरभ भाव सी
होती है बेटी ।।
परिवार में नींव बन खपती है
नींव में ठोस मजबूती बन बसती है
मजबूती में हिम्मत की धार सी
हिम्मत में आत्मविश्वास सी
होती है बेटी।।
समाज में शक्ति रुपा बन
शक्ति में भक्ति संग रच- बस
भक्ति में ज्योति सी जल
ज्योति में उर्जा सी प्रकाशवान
होती है बेटी ।।
देश में उन्नति बन छाती
उन्नति में साहस के अंकुर लाती
साहस में उज्ज्वलता बढ़ाती
उज्जवलता में सकारात्मकता सर्जक
होती है बेटी।।
एक ही जीवन में कई रुप धरती
रुपों में अनेकों सच -झूठ छुपाती
साथ मिले, हाथ मिले, विश्वास मिले तो
सायना, इंदिरा, कल्पना चावला, सरोजिनी
होती है बेटी ।।

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